Budget 2023: बजट से आम आदमी को आयकर में छूट समेत ये 10 उम्मीदें, आज खुलेगा वित्त मंत्री का पिटारा – Aaj Tak

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज वर्ष 2023-24 का बजट पेश करेंगी. मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण के साथ ही बजट सत्र की शुरुआत हो गई है. राष्ट्रपति मुर्मू ने मोदी सरकार के 8 साल के कामकाज का ब्योरा रखा और सशक्त, समृद्ध, आत्मनिर्भर बन रहे भारत के अमृतकाल की तारीफें कीं. इसके बाद आर्थिक सर्वेक्षण रखा गया जिसमें भारत को दुनिया में सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बताया गया है और साढ़े 6 फीसदी की विकास दर का अनुमान जताया गया है. 

अब सबकी नजरें आज पेश होने जा रहे केंद्रीय बजट पर है. बता दें कि ये बजट केंद्र सरकार का आखिरी पूर्ण बजट है. इस लिहाज से लोग ये जानना चाह रहे हैं कि आम चुनाव से पहले इस बजट में सरकार लोगों की जिंदगी बेहतर करने के लिए क्या तोहफा देने जा रही है?

क्या मोदी सरकार के इस कार्यकाल का आखिरी संपूर्ण बजट समावेशी होगा? क्या दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था का श्रेय लेकर मोदी सरकार जनता की वाहवाही नहीं लेना चाहेगी? लेकिन महंगाई, बेरोजगारी, ओल्ड पेंशन स्कीम ऐसे मुद्दे हैं जिस पर विपक्ष हमलावर है. इन मुद्दों पर सरकार क्या नई चीजें लेकर आती है इस पर लोगों की नजरें टिकी हैं.  

सरकार ने संसद में आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट पेश की गई तो पता चला कि आने वाले वित्त वर्ष में जीडीपी विकास दर 6.5 प्रतिशत रह सकती है. वित्त वर्ष 22-23 में विकास दर 7 प्रतिशत रही, भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती रहेगी. लेकिन चालू खाते का घाटा बढ़ सकता है. रुपये की कीमतों में गिरावट होने का खतरा बना हुआ है. 

आज पेश होने वाले बजट से आम जनता को कई उम्मीदें हैं.

1. सरकार का अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले आखिरी पूर्ण बजट है. ऐसे में मध्यवर्गीय परिवार को उम्मीद है कि इस बार वित्त मंत्री के पिटारे में टैक्स छूट का तोहफा होगा. इससे पहले सरकार साल 2020 में नया टैक्स स्लैब पेश किया था. महंगाई से परेशान मिडिल क्लास को इनकम टैक्स में छूट की उम्मीद है. लोगों की मांग है कि 80c का दायरा बढ़ाकर 2 लाख रुपये तक किया जाए. 

2. इस बार के बजट में आत्मनिर्भर भारत मुहिम को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई बड़े ऐलान कर सकती है. इन एलानों का मकसद देश को और देश की जनता को आत्मनिर्भर बनाना है. इसके लिए ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ पर सरकार अपना फोकस बढ़ा सकती है. इसका मकसद आम आदमी और इकोनॉमी को राहत देना है. अनुमान है कि सरकार ‘वोकल फॉर लोकल’ को बढ़ावा देने के लिए बजट में जिला स्तर पर एक्सपोर्ट हब बनाने का एलान कर सकती है. इसके लिए करीब साढ़े 4 हजार से लेकर 5 हजार करोड़ रुपये तक के फंड का ऐलान किया जा सकता है.  

3. जानकारों का मानना है कि भारत जिस तरह से अगले 10 साल में दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकत बनने की क्षमता रखता है, उसे देखते हुए सरकार को अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए हर सेक्टर पर ध्यान देना होगा. इसके साथ ही सरकार इस बजट में ‘मेक इन इंडिया’ पर भी अपना फोकस रखने वाली है. इसके लिए हर जिले में One District One Product यानी ODOP के तहत एक्सपोर्ट हब बनाने की तैयारी की जा रही है. 50 जिलों में पायलट प्रोजेक्ट से इसकी तैयारी शुरू होगी. आगे चलकर ऐसे 750 क्लस्टर बनाए जाएंगे. इसके लिए सरकार लॉजिस्टिक्स और मल्टी मोडल कनेक्टिविटी बनाएगी.

4. उत्तर प्रदेश सरकार ने जनवरी 2018 में ODOP को लॉन्च किया था. इसका मकससद राज्य के सभी जिलों में पारंपरिक शिल्पकारों और उद्यमियों को बढ़ावा देना था. बाद में इस योजना की सफलता को देखते हुए केंद्र सरकार ने भी इस योजना को अपना लिया और आज देश के 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों में इस योजना को पहुंचा दिया गया है. ऐसे में उम्मीद है कि बजट के बाद ये योजना नई छलांग लगा सकती है.

5. भारत में दुनियाभर के कई देशों के मुकाबले इलाज कराना काफी सस्ता है, जिसकी वजह से यहां का मेडिकल टूरिज्म भी काफी लोकप्रिय है. लेकिन भारतीयों की औसत आमदनी के हिसाब से यहां पर इलाज कराना काफी महंगा हैय ऐसे में सरकार की आयुष्मान भारत योजना से लेकर हेल्थ इंश्योरेंस तक इलाज को सस्ता कराने में काफी मददगार साबित होता है. 

एक सर्वे के मुताबिक भारतीय हेल्थ इंश्योरेंस लेने में काफी फिसड्डी हैं. सर्वे का दावा है कि देश में महज 41 फीसदी परिवारों के पास ही हेल्‍थ इंश्‍योरेंस है. 59 फीसदी लोग बिना हेल्‍थ इंश्‍योरेंस के इलाज करा रहे हैं. वहीं NFHS-5 के आंकड़े से एक दिलचस्प जानकारी सामने निकलकर सामने आई है कि शहरी भारतीयों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपनी सेहत को लेकर ज्यादा संजीदा हैं यानी जहां शहरों में महज 38.1 फीसदी के पास हेल्थ इंश्योरेंस है. तो ग्रामीण आबादी में 42.4 परसेंट के पास स्वास्थ्य बीमा है. 

6. जानकारों का भी मानना है कि भारत में सरकार को हेल्थ इंश्योरेंस की पैठ बढ़ाने के लिए इस बार के बजट में कुछ प्रोत्साहनों का एलान करना चाहिए. वैसे एक राहत की बात ये भी है कि बीते 5 साल में स्‍वास्‍थ्‍य बीमा कराने वालों की संख्या 12 फीसदी बढ़ी है. लेकिन इसकी सबसे बड़ी वजह है कि ये बढ़ोतरी सरकारी योजनाओं के जरिए मिलने वाला मुफ्त हेल्‍थ इंश्‍योरेंस की वजह से हुई है. अगर बात करें राज्यों की तो राजस्‍थान में 87.8 फीसदी परिवारों में से किसी ना किसी 1 सदस्‍य ने हेल्‍थ बीमा कराया हुआ है. जबकि बिहार में महज 14.6 फीसदी परिवारों के पास हेल्‍थ बीमा है. 

7. कोविड के दौरान पड़ी मार से ऑटो सेक्टर अभी तक पूरी तरह से उबर नहीं पाया है. हाल में डिमांड बढ़ने से आउटलुक में थोड़ी सुधार देखने को मिली है. साथ ही सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों पर जोर दिया है. सरकार की कोशिश है कि इलेक्ट्रिक वाहनों की स्वीकार्यता लोगों के बीच बने. लेकिन बढ़ते इनपुट कॉस्ट की वजह से लोगों के लिए इलेक्ट्रिक व्हीक्ल्स महंगी साबित हो रही हैं.

ऐसे में जब बैटरी और ईवी से जुड़े अन्य कॉम्पोनेंट्स की कीमतों में कमी आएगी, तभी इलेक्ट्रिक गाड़ियां सस्ती हो सकेंगी. ईवी के लिए लाई गई FAME पॉलिसी मार्च 2024 तक लागू है. ईवी पर फिलहाल लगभग पांच फीसदी जीएसटी है, लेकिन इसके कॉम्पोनेंट्स पर जीएसटी 18 से 28 फीसदी है. जीएसटी में कमी से ही गाड़ियों की कॉस्ट में कमी आएगी. ऐसे में सभी की नजरें ईवी को लेकर बजट में होने वाले ऐलानों पर रहेगी. 

8. समाजसेवा से जुड़े लोगों का मानना है कि बीमा के साथ साथ इस बार के बजट में सरकार को महिलाओं और बच्चों की पढ़ाई और सेहत के लिए जरूर कुछ पहल करनी चाहिए. वैसे भी कोरोना काल में जिस तरह से सेहत को लेकर लोगों में जागरुकता बढ़ी है और हेल्थ इंश्योरेंस वक्त की सबसे बड़ी जरुरत बन गया है, उसे देखते हुए ये जरुरी है कि सरकारी योजनाओं और प्रोत्साहनों के जरिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को स्वास्थ्य बीमा लेने के लिए प्रेरित किया जाए.

9. देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन का बनाने के लिए सरकार की नजर फिस्कल डेफिसिट को घटाने पर होगी. क्योंकि इसके बिना 5 ट्रिलियन इकोनॉमनी की राहत नहीं तय नहीं हो पाएगी. पिछले बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राजकोषीय घाटा जीडीपी का अनुमान 6.4 फीसदी रखा था. सब्सिडी और तमाम कल्याणकारी योजनाओं की वजह से सरकार के खजाने पर बोझ बढ़ा है. 

10. इस समय ग्लोबल इकोनामी में मंदी दर्ज की जा रही है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व महंगाई दरों में काबू पाने के लिए ब्याज दरों को लेकर आक्रामक है. रिजर्व बैंक ने भी इस वित्त वर्ष में लगातार रेपो रेट में इजाफा किया है. इसलिए सरकार घटती खपत को बढ़ाने पर भी सरकार का फोकस रहेगा. साथ ही मंदी की आहट भर से ही कंपनियों में छंटनी देखने को मिलेगी. बढ़ती महंगाई की वजह से लोगों का जीवनयापन का स्तर गिरता जा रहा है. 

 

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