शिंदे ने छीन ली उद्धव से सत्ता, जानें ‘शिवसेना के नाथ’ कैसे बन पाएंगे एकनाथ! – Aaj Tak

स्टोरी हाइलाइट्स

  • सत्ता के बाद अब लड़ाई शिवसेना के कब्जे की है
  • एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे में कौन पड़ेगा भारी?
  • कानूनी दांवपेच में भी उलझेगी शिवसेना की जंग

महाराष्ट्र की सत्ता उद्धव ठाकरे के हाथों से छीनकर एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन चुके हैं और विधानसभा के पटल पर बहुमत की परीक्षा भी पास कर ली है. एकनाथ शिंदे समेत सभी बागी विधायक सदन में यह साबित करने में फिलहाल सफल रहे कि वो शिवसेना के विधायक हैं, लेकिन मामला देश की सबसे बड़ी अदालत में पहुंच चुका है. इस तरह शिंदे खेमे का दावा बाला साहेब ठाकरे की बनाई गई पार्टी शिवसेना पर बना हुआ है, जिसे उद्धव ठाकरे के हाथों से वो छीनने की कवायद में हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि शिवसेना की कमान कैसे एकनाथ अपने हाथों में ले पाएंगे?

बीजेपी-शिंदे गठबंधन सरकार ने सदन के पटल पर विश्वास मत जीत लिया है. इसी के साथ अब अगली लड़ाई शिवसेना को कब्जे की है. इस तरह चुनाव आयोग तक शिवसेना पार्टी और सिंबल धनुष और तीर पर दावा करने की जंग होगी. हालांकि, विधायकों की संख्या के आधार पर विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने एकनाथ शिंदे को शिवसेना विधायक दल का नेता माना है, क्योंकि उद्धव ठाकरे खेमे से ज्यादा उनके पास विधायक हैं. इस तरह से शिवसेना में व्हिप का पद भी उद्धव खेमे के बजाय शिंदे गुट के पास चला गया.

शिवसेना पर कब्जा जमाना आसान नहीं!

स्पीकर के इस फैसले के खिलाफ उद्धव खेमे ने सुप्रीम कोर्ट जाकर अपनी गुहार लगाई है, जिसके चलते मामला कानूनी पेच में उलझ गया है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में 11 जुलाई को सुनवाई करेगा. हालांकि, उद्धव से भले ही एकनाथ शिंदे ने सत्ता छीन ली हो, लेकिन शिवसेना पर कब्जा जमाना आसान नहीं है. इसीलिए एकनाथ शिंदे स्पीकर के फैसले से शिवसेना पर अपना दावा ठोक रहे हैं तो शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे तमाम तरह के कानूनी दांवपेचों को समझ कर अपनी पार्टी को बचाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं.

शिवसेना का संविधान है अहम

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता ध्रुव गुप्ता ने कहा कि विधानसभा स्पीकर नार्वेकर ने विधायकों की संख्या बल के आधार पर एकनाथ शिंदे और उनके साथी बागी विधायकों को शिवसेना के विधायक की मान्यता दे दी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि शिवसेना पार्टी पर शिंदे का अधिकार हो गया. शिवसेना का जो अपना पार्टी संविधान है, उसके आधार पर ही सारे फैसले होंगे. इसलिए यह कहना मुश्किल होगा कि शिवसेना की कमान वर्तमान पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के हाथ से खिसक कर किसी दूसरे के पास जा सकती है.

ध्रुव गुप्ता कहते हैं कि हर पार्टी का अपना एक संविधान होता है जो चुनाव आयोग के पास रहता है. ऐसे में पार्टी की कमान सिर्फ एक आधार पर नहीं बल्कि कई पहलुओं को ध्यान में रखकर ही तय की जाती है. किसी राजनीतिक पार्टी के विवाद की स्थिति में चुनाव आयोग सबसे पहले यह देखता है कि पार्टी के संगठन और उसके विधायी आधार पर विधायक-सांसद सदस्य किस गुट के साथ कितने हैं. राजनीतिक दल की शीर्ष समीतियां और निर्णय लेने वाली इकाई की भूमिका काफी अहम होती है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ 

पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी भी कहते हैं कि किसी भी पार्टी का निशान और उसका नेतृत्व सिर्फ विधायकों और सांसद की संख्या के आधार पर बदला नहीं जाता है. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों से लेकर पार्टी की प्रतिनिधि सभा और उनके अपने संविधान के अनुरूप तय की गई व्याख्या के आधार पर ही यह सब तय होता है. ऐसे में दावा करने वाले गुट को पार्टी के सभी पदाधिकारियों, विधायकों और संसद सदस्यों से बहुमत का समर्थन साबित करना होगा ताकि चुनाव चिन्ह आवंटित किया जा सके. 

वहीं, कोई गुट चुनाव आयोग के आदेश से संतुष्ट नहीं है तो अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है. पार्टी के विभिन्न निर्णय लेने वाले निकाय, अन्य निर्वाचित शाखाएं जैसे कि इसकी ट्रेड यूनियन, महिला विंग, यूथ विंग, पार्टी के सदस्यों की संख्या, सक्रिय सदस्य, अन्य के अलावा सांसदों की संख्या का आधार भी अहम है. ऐसे में शिवसेना की बात जहां तक है, उसमें एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे दोनों ही खेमे को यह साबित करना होगा कि पार्टी के संविधान के मुताबिक उनका दावा सही है.

सिर्फ विधायकों का समर्थन नहीं आएगा काम

विशेषज्ञों का यह कहना है कि उद्धव ठाकरे को चुनाव आयोग के सामने यह दिखाने के लिए कि वह असली शिवसेना है और पार्टी के संविधान का पालन करने के लिए पार्टी और उसकी विभिन्न शाखाओं पर अधिक नियंत्रण रखने की आवश्यकता होगी, क्योंकि उन्हें सभी अधिकार देता है. वहीं, ऐसे ही एकनाथ शिंदे को भी यह साबित करना होगा कि शिवसेना पर कैसे उनकी पार्टी मानी जाए. शिवसेना के विधायकों की संख्या ही नहीं बल्कि प्रतिनिधि सभा और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों की संख्या और शिवसेना का अपना चुनाव आयोग में दिया गया संविधान से भी एकनाथ शिंदे को अपने पक्ष में साबित करना होगा. 

बता दें कि शिवसेना के संविधान के मुताबिक शिवसेना के प्रमुख का चुनाव पार्टी की प्रतिनिधि सभा को करना होता है. पार्टी की प्रतिनिधि सभा गांव स्तर से लेकर तालुका स्तर और जिला स्तर के तमाम संगठनात्मक वैधानिक प्रक्रियाओं के आधार पर है. इसमें सांसद और विधायकों के साथ-साथ पार्टी के कई विभागों के मुखिया होते हैं. साल 2018 में शिवसेना की प्रतिनिधि सभा में 282 लोग शामिल थे. इन सभी लोगों ने मिलकर ही उद्धव ठाकरे को शिवसेना का अध्यक्ष चुना था. ऐसे में शिवसेना की वर्तमान राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति अगले साल तक बरकरार रहेगी. 

शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी किस ओर?

महाराष्ट्र में शिवसेना के ज्यादातर विधायक एकनाथ शिंदे के साथ चले गए हैं, लेकिन शिवसेना पार्टी को संचालित करने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी और पार्टी संविधान के अनुरूप तैयार की गई रूपरेखा में उद्धव ठाकरे का वर्चस्व बरकरार है. शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आदित्य ठाकरे, मनोहर जोशी, लीलाधर डाके, दिवाकर रावते, सुधीर जोशी संजय राव, सुभाष देसाई, रामदास कदम और गजानन कीर्तिकर के साथ आनंद गीते, आनंदराव अडसूल और आनंद राव समेत एकनाथ शिंदे शामिल हैं.

शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल नेताओं की फेहरिश्त देखें तो उसमें से सिर्फ एकनाथ शिंदे को छोड़कर पार्टी का कोई दूसरा सदस्य राष्ट्रीय कार्यकारिणी से टूटकर नहीं गया है. इसीलिए शिवसेना संविधान के मुताबिक उसकी मजबूती के आधार वाले राष्ट्रीय कार्यकारिणी पर फिलहाल प्रमुख उद्धव ठाकरे का दबदबा दिख रहा है. इस लिहाज से उद्धव के हाथों से सत्ता भले ही एकनाथ शिंदे ने छीन ली है, लेकिन शिवसेना पर कब्जा जमाना आसान नहीं है? 

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