पूर्वी लद्दाख में Pangong Tso Lake पर एक और पुल बना रहा चीन, समझें क्यों अहम है ये झील? – Aaj Tak

स्टोरी हाइलाइट्स

  • पूर्वी लद्दाख में दो साल से भारत-चीन में तनाव
  • पैंगॉन्ग त्सो लेक पर दूसरा पुल बना रहा चीन
  • झील पर पहला पुल बनकर तैयार भी हो गया

India-China Border Dispute: चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है. अभी कुछ दिन पहले भारतीय सेना के पूर्वी कमांड के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल आरपी कलीता का एक बयान आया था, जिसमें उन्होंने बताया था कि चीन की सेना अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर अपनी ओर तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित कर रहा है. 

अब कुछ सैटेलाइट तस्वीरें सामने आई हैं, जिसमें सामने आया है कि लद्दाख की पैंगॉन्ग त्सो लेक (Pangong Tso Lake) में चीन पुल का निर्माण कर रहा है. पैंगॉन्ग त्सो झील पर चीन का ये दूसरा पुल है.

न्यूज एजेंसी के मुताबिक, पैंगॉन्ग त्सो झील पर चीन का पहला पुल बनकर तैयार हो गया है. नया पुल लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) से 20 किलोमीटर दूर है. 

LAC पर चीन की गतिविधियों पर नजर रखने वाले रिसर्चर डेमियन सिमोन ने ट्विटर पर कुछ सैटेलाइट तस्वीरें साझा की हैं, जिसमें दिख रहा है कि चीन झील पर एक और पुल बना रहा है. उन्होंने दावा किया है कि चीन पहले पुल के बगल में ही इस पुल को बना रहा है और ये काफी बड़ा पुल है, जिसे भारी हथियार और भारी सैन्य वाहनों को गुजारने के मकसद से तैयार किया जा रहा है.

हालांकि, भारत भी किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूर्वी लद्दाख में अपनी ओर पुल, सड़क और टनल बना रहा है. पूर्वी लद्दाख में मई 2020 से भारत और चीन की सेनाओं के बीच तनाव है. 

ये भी पढ़ें– अरुणाचल में चीन के साथ क्या है सीमा विवाद? भारत के किन-किन इलाकों पर है ड्रैगन की नजर

पूर्वी लद्दाख में क्यों है तनाव?

भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में तनाव को दो साल से ज्यादा गुजर गए हैं. जून 2020 में पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी के पास दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प भी हुई थी. तनाव कम करने के लिए दोनों देशों के बीच 15 दौर की बातचीत भी हो चुकी है, लेकिन अब भी मसला पूरी तरह शांत नहीं हुआ है. बताया जाता है कि अब भी LAC पर दोनों देशों के 50 से 60 हजार सैनिक तैनात हैं.

पूर्वी लद्दाख में कम से कम 12 जगहों पर दोनों देशों के बीच विवाद होने की बात कही जाती है. इन्हीं विवादित इलाकों में से एक पैंगॉन्ग त्सो को लेकर भी है. ये झील करीब 4,270 मीटर की ऊंचाई पर है. इसकी लंबाई 135 किमी है. इसका पूरा क्षेत्र 600 वर्ग किमी का है. इस झील के दो-तिहाई हिस्से पर चीन का कब्जा है. भारत के पास 45 किमी का हिस्सा आता है. 

पैंगॉन्ग झील अहम क्यों?

पैंगॉन्ग झील के फिंगर 8 तक भारत अपना अधिकार क्षेत्र मानता है, जबकि चीन फिंगर 4 तक पर दावा करता है. पूरी LAC पर सिर्फ पैंगॉन्ग झील पर ही भारत-चीन के बीच जल सीमा है. 

पैंगॉन्ग झील की अहमियत इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि रणनीतिक तौर पर ये बहुत अहम है. ये झील चुशूल के पास है. चुशूल एक ऐसा इलाका है जिसका इस्तेमाल जंग की स्थिति में लॉन्च पैड के रूप में किया जा सकता  है. 1962 में चुशूल के रेजांग दर्रे में ही भारत और चीन की सेनाएं भिड़ी थीं.

बताया जाता है कि पैगॉन्ग के पास चीन ने जबरदस्त तरीके से इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया है. यहां पुल तो बनाया ही है. इसके अलावा सड़क भी बना ली है. 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान चीन ने फायदा उठाते हुए भारतीय इलाके में 5 किमी सड़क बना ली थी. जानकार मानते हैं कि चीन ऐसा इसलिए करता है ताकि इलाके पर अपनी पकड़ मजबूत कर सके.

ये भी पढ़ें– India China Border Dispute: लद्दाख से अरुणाचल तक चीन दो मोर्चों पर दे रहा टेंशन, भारत की ये है तैयारी

भारत और चीन के बीच क्या है सीमा विवाद?

भारत की चीन के साथ 3,488 किमी लंबी सीमा लगती है. इसके भी तीन हिस्से हैं. पहला हिस्सा ईस्टर्न सेक्टर का है जो सिक्किम और अरुणाचल में है. दूसरा हिस्सा मिडिल सेक्टर है जो हिमाचल और उत्तराखंड में है. तीसरा हिस्सा वेस्टर्न सेक्टर का है जो लद्दाख में आता है. 

सिक्किम और अरुणाचल से लगने वाली सीमा की लंबाई 1,346 किमी है. हिमाचल और उत्तराखंड से सटी सीमा 545 किमी लंबी है. जबकि, लद्दाख के साथ चीन की 1,597 किमी लंबी सीमा है. 

केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किमी के हिस्से पर दावा करता है. इसके अलावा लद्दाख का करीब 38 हजार वर्ग किमी का हिस्सा चीन के कब्जे में है. 1963 में पाकिस्तान ने एक समझौते में पीओके का 5,180 वर्ग किमी चीन को दे दिया था. कुल मिलाकर भारत के 43,180 वर्ग किमी पर चीन का कब्जा है. 

भारत और चीन के बीच कई सालों से सीमा पर विवाद है. जनवरी 1959 में चीन के तब के राष्ट्रपति झोऊ एन-लाई ने दावा किया था कि उसका करीब 13 हजार वर्ग किमी का इलाका भारत के कब्जे में है. ये पहली बार था जब चीन ने आधिकारिक तौर पर सीमा विवाद को उठाया था. झोऊ ने तब ये भी कहा था कि वो मैकमोहन रेखा (Macmahon Line) को नहीं मानते.

मैकमोहन रेखा 1914 में तय हुई थी. तब ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन ने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किमी लंबी सीमा खींची थी. इसे ही मैकमोहन रेखा कहा जाता है. इसमें अरुणाचल को भारत का ही हिस्सा बताया गया था. लेकिन आजादी के बाद चीन ने कहा कि अरुणाचल तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा है. चीन ने कहा था कि तिब्बत पर उसका कब्जा है, इसलिए अरुणाचल भी उसका हुआ.

Related posts