बाज नहीं आ रहा तुर्की, संयुक्त राष्ट्र में फिर किया कश्मीर का जिक्र; भारत दे चुका है कड़ी चेतावनी – Hindustan

कश्मीर के मुद्दे पर टिप्पणी करने के चलते भारत का कड़ा विरोध झेलने के बाद भी तुर्की बाज नहीं आ रहा है। एक बार फिर से तुर्की ने संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण में कश्मीर का जिक्र किया है। तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उच्च स्तरीय सत्र में वैश्विक नेताओं के नाम अपने संबोधन में एक बार फिर कश्मीर का मुद्दा उठाया। पिछले साल भी एर्दोआन ने सामान्य चर्चा के लिए अपने पहले से रिकॉर्ड किए गए बयान में जम्मू-कश्मीर का जिक्र किया था। भारत ने उस वक्त इसे ‘पूरी तरह अस्वीकार्य’ बताया था और कहा था कि तुर्की को अन्य राष्ट्रों की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए और अपनी नीतियों पर गहराई से विचार करना चाहिए। 

एर्दोआन ने मंगलवार को सामान्य चर्चा में अपने संबोधन में कहा, ‘हम 74 वर्षों से कश्मीर में चल रही समस्या को पार्टियों के बीच बातचीत के माध्यम से और प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के ढांचे के भीतर हल करने के पक्ष में अपना रुख बनाए रखते हैं।’ पाकिस्तान के करीबी सहयोगी तुर्की के राष्ट्रपति उच्च स्तरीय सामान्य चर्चा में अपने संबोधन में बार-बार कश्मीर का मुद्दा उठाते रहे हैं। उन्होंने पिछले साल पाकिस्तान की अपनी यात्रा के दौरान भी कश्मीर का मुद्दा उठाया था। उस समय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि एर्दोआन की टिप्पणी न तो इतिहास की समझ और न ही कूटनीति के संचालन को दर्शाती है और इसका तुर्की के साथ भारत के संबंधों पर गहरा असर पड़ेगा। 

भारत ने पाकिस्तान द्वारा ‘स्पष्ट रूप से किए जाने वाले’ सीमा पार के आतंकवाद को सही ठहराने के तुर्की के बार-बार के प्रयास को खारिज किया है। मंगलवार को अपने संबोधन में, तुर्की के राष्ट्रपति ने शिनजियांग में चीन के अल्संख्यक मुस्लिम उइगुर और म्यांमार के रोहिंग्या अल्पसंख्यकों का भी जिक्र किया। एर्दोआन ने कहा कि  चीन की क्षेत्रीय अखंडता के परिप्रेक्ष्य में हम मानते हैं कि मुस्लिम उइगुर तुर्कों के मूल अधिकारों के संरक्षण के संबंध में और अधिक प्रयासों को प्रदर्शित करने की आवश्यकता है।’ उन्होंने कहा, ‘हम रोहिंग्या मुसलमानों की उनकी मातृभूमि में सुरक्षित, स्वैच्छिक, सम्मानजनक वापसी सुनिश्चित करने का भी समर्थन करते हैं, जो बांग्लादेश और म्यांमार में शिविरों में कठिन परिस्थितियों में रह रहे है।’

कश्मीर पर टिप्पणी करके क्या साबित करना चाहता है तुर्की

दरअसल तुर्की की ओर से अकसर कश्मीर समेत कई मुद्दों पर राय जाहिर की जाती रही है। एक तरफ सऊदी अरब इस मुद्दे पर तटस्थ रहा है, लेकिन तुर्की बीते कुछ सालों से मुस्लिम जगत की रहनुमाई के नाम पर कश्मीर का मुद्दा उठाता रहा है। असल में तुर्की यह चाहता है कि वह सऊदी अरब के मुकाबले मुस्लिम जगत में खुद को लीडर के तौर पर पेश कर सके। बीते कुछ सालों में पाकिस्तान के रिश्ते एक तरफ सऊदी अरब से पहले के मुकाबले कमजोर पड़े हैं तो वहीं तुर्की से बेहतर हुए हैं। यह भी एक वजह है कि तुर्की की ओर से अकसर कश्मीर के मसले पर टिप्पणी की जाती रही है।

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