UNGA में भारत ने तुर्की को दिया कड़ा जवाब, एर्दोगन ने कश्मीर मुद्दा उठाया तो जयशंकर ने साइप्रस पर घेरा – Navbharat Times

हाइलाइट्स

  • भारत ने तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के कश्मीर मुद्दा उठाने पर दिया कड़ा जवाब
  • एस जयशंकर ने साइप्रस पर यूएनएससी के प्रस्तावों पर अमल करने की अपील की
  • 1974 में तुर्की ने साइप्रस के बड़े हिस्से पर अवैध कब्जा किया था

न्यूयॉर्क
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र के दौरान भारत ने तुर्की को कड़ा जवाब दिया है। दरअसल, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने अपने भाषण के दौरान कश्मीर का मुद्दा उठाया था। इसी के जवाब में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साइप्रस का मुद्दा छेड़ दिया। तुर्की ने साइप्रस के बड़े हिस्से पर कई दशक से अवैध कब्जा जमाया हुआ है। इस मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव भी पारित किया हुआ है, लेकिन तुर्की इसे नहीं मानता है।

जयशंकर ने साइप्रस को लेकर तुर्की को सुनाया
एस जयशंकर ने साइप्रस के अपने समकक्ष निकोस क्रिस्टोडौलाइड्स के साथ द्विपक्षीय बैठक की। इस दौरान उन्होंने साइप्रस के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रासंगिक प्रस्तावों का पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया। जयशंकर ने क्रिस्टोडौलाइड्स के साथ अपनी मुलाकात के बारे में बुधवार को ट्वीट किया कि हम आर्थिक संबंधों को आगे बढ़ाने पर काम कर रहे हैं। मैंने उनकी क्षेत्रीय अंतर्दृष्टि की सराहना की। सभी को साइप्रस के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रासंगिक प्रस्तावों का पालन करना चाहिये।

एर्दोगन ने यूएन में कश्मीर पर क्या कहा?
एर्दोगन ने मंगलवार को सामान्य चर्चा में अपने संबोधन में कहा कि हमारा मानना है कि कश्मीर को लेकर 74 साल से जारी समस्या को दोनों पक्षों को संवाद तथा संयुक्त राष्ट्र के प्रासंगिक प्रस्तावों के जरिये हल करना चाहिये। अतीत में भी एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मुद्दा उठाया था, जिसपर भारत ने आपत्ति जताई थी।

साइप्रस विवाद की कैसे हुई थी शुरुआत?
साइप्रस में लंबे समय से चल रहे संघर्ष की शुरुआत 1974 में यूनान सरकार के समर्थन से हुए सैन्य तख्तापलट से हुई थी। इसके बाद तुर्की ने यूनान के उत्तरी हिस्से पर आक्रमण कर दिया था। भारत संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के तहत इस मामले के शांतिपूर्ण समाधान की वकालत करता रहा है।

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भारत विरोधी गतिविधियों का केंद्र बना तुर्की
तुर्की अब पाकिस्तान के बाद ‘भारत-विरोधी गतिविधियों’ का दूसरा सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, केरल और कश्मीर समेत देश के तमाम हिस्सों में कट्टर इस्लामी संगठनों को तुर्की से फंड मिल रहा है। एक सीनियर गवर्नमेंट अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि तुर्की भारत में मुसलमानों में कट्टरता घोलने और चरमपंथियों की भर्तियों की कोशिश कर रहा है। उसकी यह कोशिश दक्षिण एशियाई मुस्लिमों पर अपने प्रभाव के विस्तार की कोशिश है।

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मुस्लिम देशों का नेता बनना चाह रहे एर्दोगन
एर्दोआन ने पिछले साल ऐतिहासिक हगिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में बदल दिया जो सन 1453 तक एक चर्च रहा था। एर्दोआन मुस्लिम जगत में सऊदी अरब की बादशाहत को चुनौती देने की लगातार कोशिशों में लगे हैं। पिछले साल उन्होंने मलयेशिया के तत्कालीन पीएम महातिर मोहम्मद और पाकिस्तान पीएम इमरान खान के साथ मिलकर नॉन-अरब इस्लामी देशों का एक गठबंधन तैयार करने की कोशिश की थी।

(एजेंसी से इनपुट के साथ)

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विदेश मंत्री एस जयशंकर और एर्दोगन

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