पंजाब में पहली बार दलित CM; जानें- 2002 से 2017 के बीच किस पार्टी को मिले दलितों के कितने वोट – Jansatta

कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे ने कांग्रेस को एक नया सीएम चुनने का मौका दिया और पार्टी ने चन्नी को पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करके अपने प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ा। फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि कौन सी पार्टी दलित वोट को अपने पक्ष में कर पाएगी, पर कई लोग इसे कांग्रेस पार्टी का मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं।

संजय कुमार।

पंजाब में कांग्रेस विधायक दल के नेता चरणजीत सिंह चन्नी ने सोमवार (20 सितंबर, 2021) को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वह पंजाब में मुख्यमंत्री बनने वाले दलित समुदाय के पहले व्यक्ति हैं।

यह दावा किया गया है कि चन्नी पार्टी की सर्वसम्मत पसंद थे (जो सच हो सकता है), पर इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि पंजाब के पहले दलित सीएम के नाते उनका चुनाव सूबे में बड़े दलित वोट बैंक को देखते हुए किया गया। साल 2011 की जनगणना के अनुमानों के अनुसार, पंजाब की कुल आबादी में अनुसूचित जातियां 32% हैं; इनमें एक तिहाई दलित सिख हैं।

प्रदेश में दलित वोट के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 54 विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां दलित कुल मतदाताओं का 30% से अधिक हैं। बाकी 45 विधानसभा क्षेत्रों में 20% से 30% मतदाताओं के बीच दलित हैं (टेबल-1)।

सूबे में कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल (शिअद), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच इस मुकाबले में एक तिहाई वोट (किसी एक समुदाय से) किसी भी राजनीतिक दल की जीत या हार में अहम भूमिका निभाने वाले हैं।

दलितों की महत्वपूर्ण संख्या ही वजह है जो बीते कुछ माह में सभी सियासी दलों ने उन्हें अपने पक्ष में लामबंद करने का प्रयास किया है। किसी न किसी तरह हर पार्टी ने संकेत दिया कि अगर वह सत्ता में आती है तो वह दलितों को सत्ता में एक अच्छा हिस्सा देगी, जबकि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप ने सत्ता में आने पर एक दलित को उप-मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करने का वादा किया था। शिअद ने तो दलितों को लुभाने के प्रयास में बसपा के साथ गठबंधन किया।

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कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे ने कांग्रेस को एक नया सीएम चुनने का मौका दिया और पार्टी ने चन्नी को पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करके अपने प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ा। फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि कौन सी पार्टी दलित वोट को अपने पक्ष में कर पाएगी, पर कई लोग इसे कांग्रेस पार्टी का मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं।

पंजाब के बीते कुछ चुनाव परिणाम बताते हैं कि गैर-दलित निर्वाचन क्षेत्रों की तुलना में किसी खास पार्टी ने अनुसूचित जाति-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन नहीं किया। 2017 के चुनावों में कांग्रेस ने 34 एससी-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में से 21 पर जीत हासिल की, पर इन क्षेत्रों में उसका वोट शेयर उसके औसत वोट शेयर से थोड़ा कम था। हालांकि, दूसरी ओर साल 2012 में एससी-आरक्षित और अनारक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस का वोट शेयर बराबर था, उसने कम आरक्षित सीटें जीतीं (34 में से केवल 10)। साफ है कि आरक्षित और अनारक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी का समग्र प्रदर्शन हमें यह समझने में मदद नहीं करता है कि पंजाब में दलितों ने विभिन्न चुनावों में कैसे मतदान किया (टेबल-2 और टेबल-3)।

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वैसे, सीएसडीएस के सर्वे के सबूत बताते हैं कि अतीत में भी कांग्रेस ने हिंदू दलित और सिख दलित दोनों वोटों को सफलतापूर्वक जुटाया है। निष्कर्ष यह भी संकेत देते हैं कि पार्टी को दलितों पर अपनी पकड़ बनाए रखने की जरूरत है, अगर उसका लक्ष्य 2022 के विधानसभा चुनाव जीतना है।

पूरे मामले में उन सबूतों पर भी ध्यान देना जरूरी है जो बताते हैं कि हिंदू दलितों में कांग्रेस शिअद से ज्यादा लोकप्रिय है। पंजाब के दलित हिंदुओं ने पिछले कुछ चुनावों में अकालियों की तुलना में अधिक संख्या में कांग्रेस को वोट दिया है। आप की एंट्री और यह तथ्य कि भाजपा अपने दम पर चुनाव लड़ रही है, संभावित रूप से कांग्रेस के हिंदू वोटबैंक को एक हद तक प्रभावित कर सकती है, मगर एक दलित सीएम होने से पार्टी को इस प्रभाव को कम करने और अपने हिंदू दलित वोट को बरकरार रखने में मदद मिल सकती है।

कौन हैं एक्सपर्ट?: संजय कुमार प्रोफेसर हैं और सीएसडीएस (सेंटर फॉर दि स्टडी ऑफ डेवेलपिंग सोसाइटीज) के रिसर्च प्रोग्राम लोकनीति को सह-निदेशक हैं। उनके शोध का कोर एरिया (केंद्र बिंदु) चुनावी राजनीति है, जबकि वह इसके अलावा सर्वे आधारित रिसर्च (भारतीय युवा, दक्षिण एशिया में लोकतंत्र की स्थिति, भारतीय किसानों का हाल, चुनावी हिंसा और दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ियां) से भी जुड़े रहे हैं।

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