- अमृता शर्मा
- बीबीसी मॉनिटरिंग
दशकों की जंग के बाद अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का दोबारा नियंत्रण होने के साथ ही बदले हालात में अमेरिका के साथ पाकिस्तान के संबंधों पर अनिश्चितता के बादल मँडरा रहे हैं.
अपने सैनिकों को अफ़ग़ानिस्तान से वापस बुलाने की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की घोषणा के बाद से ही पाकिस्तान की रवैया असमंजस वाला रहा है.
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने हाल ही अपनी भड़ास ये कहकर निकाली है कि ”अमेरिका के लिए पाकिस्तान तभी उपयोगी होता है, जब वहाँ के बिगड़े हालात ठीक करने की बात होती है.”
इस बीच विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा है कि पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान में दूसरों की नाकामी के लिए बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकेगा.
लेकिन पाकिस्तान की नेशनल सिक्योरिटी कमेटी (एनएससी) ने सैन्य वापसी के अमेरिकी फ़ैसले को ‘टकराव का तार्किक अंत’ बताते हुए अनुमोदन किया है.
पाकिस्तान अब अफ़ग़ानिस्तान में समावेशी राजनीतिक समाधान सुनिश्चित करने के दिशा में साथ मिलकर काम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय का आह्वान कर रहा है. पाकिस्तान का ये क़दम अमेरिका के साथ भावी संबंधों की दिशा बदल सकता है.
जो बाइडन और इमरान ख़ान में बातचीत न होना
तालिबान के साथ पाकिस्तान के संबंधों की प्रकृति की वजह से अमेरिका-पाकिस्तान रिश्तों में लंबे समय से तनाव रहा है. पाकिस्तान ने हमेशा इस बात से इनकार किया है कि वो तालिबान की मदद करता है.
ट्रंप प्रशासन के दौरान पाकिस्तान पर झूठ बोलने, धोखाधड़ी करने और चरमपंथियों को सुरक्षित पनाहगाह देने के आरोप लगे, जिनकी वजह से तत्कालीन राष्ट्रपति ने अरबों डालर की सुरक्षा मदद वापस ले ली थी.
हालाँकि पाकिस्तान को नए राष्ट्रपति बाडइन के साथ संबंध सुधरने की उम्मीद थी, जो राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल के दौरान उप-राष्ट्रपति थे.
अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारी पाकिस्तान के संपर्क में थे, लेकिन बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से उनकी बातचीत की कभी कोई ख़बर नहीं आई.
राजनयिक स्तर पर बात यहाँ तक पहुंची कि नेशनल सिक्योरिटी एडवाइज़र (एनएसए) मोइद युसूफ़ को कहना पड़ा कि ”सिगनल को हम समझ नहीं पा रहे हैं.”
बहरहाल अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने आश्वासन दिया कि ”अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान की अहम भूमिका बनी रहेगी.”
अफ़ग़ानिस्तान पर अलग-अलग राय
अफ़गानिस्तान के बारे में पाकिस्तान और अमेरिका के विचार अलग-अलग रहे हैं.
ख़बरों के मुताबिक, अमेरिका ने तालिबान को आगे बढ़ने से रोकने में मदद के लिए पाकिस्तान से बार-बार कहा. लेकिन पाकिस्तान ने तालिबान पर अपने किसी प्रभाव से इनकार किया.
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने यहाँ तक कहा कि तालिबान जो कर रहे हैं, उससे उनका कोई लेना-देना नहीं है. इसके लिए पाकिस्तान ज़िम्मेदार नहीं है ना ही हम तालिबान के प्रवक्ता हैं.
इसी साल जुलाई में अमेरिकी प्रसारक पीबीएस को दिए साक्षात्कार में इमरान ख़ान ने कहा था कि ”तालिबान कोई सैन्य समूह नहीं हैं. वो सामान्य नागरिक हैं.”
भारत, चीन की भूमिका
पाकिस्तान के अन्य प्रमुख देशों, ख़ासतौर पर भारत और चीन के साथ भू-राजनीतिक संबंधों की भूमिका अहम होगी. भारत के साथ जहाँ पाकिस्तान का ऐतिहासिक रूप से टकराव रहा है वहीं चीन के साथ उसके संबंधों में गरमाहट बढ़ती जा रही है.
इमरान ख़ान ने हाल ही में पत्रकारों से कहा था, ”मुझे लगता है कि अमेरिका ने तय कर लिया है कि भारत एक रणनीतिक साझेदार है. शायद यही वजह है कि पाकिस्तान के साथ अलग तरह से बर्ताव किया जा रहा है.”
पाकिस्तान इस बात को भी अच्छी तरह से जानता है कि चीन के प्रति उसके झुकाव की वजह से अमेरिका सहज नहीं है. फ़ाइनेंशियल टाइम्स को दिए साक्षात्कार में पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोइद युसूफ़ ने कहा था, ”अगर एक फ़ोन कॉल रियायत है, अगर सुरक्षा संबंध रियायत हैं तो पाकिस्तान के पास भी विकल्प हैं.”
उनके इस बयान का सीधा संदर्भ चीन से जोड़कर देखाा गया.
चीन ने अपने बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में अरबों डॉलर का निवेश किया है जिसमें चाइना-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर भी शामिल है. चीन अफ़ग़ानिस्तान में शांति वार्ता के लिए मध्यस्थता में भी शामिल रहा है.
दोनों को लाभ पहुँचाने वाले संबंधों की ज़रूरत
पाकिस्तान अपने पड़ोसी देश के मौजूदा हालात के असर को अनदेखा नहीं कर सकता, जिसकी साथ उसकी लंबी सीमाएँ लगती हैं.
शरणार्थियों की लहर को देखते हुए पाकिस्तान को अमेरिका के साथ मिलकर काम करने की ज़रूरत होगी. पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने हालिया अमेरिका यात्रा के दौरान इस चिंता को ज़ाहिर भी किया था.
अमेरिका को भी ये पता है कि वो अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान के प्रभाव और चीन से उसकी नज़दीकी को अनदेखा नहीं कर सकता है.
पाकिस्तान ने अमेरिका को आश्वासन दिया है कि अफ़ग़ानिस्तान में शांति के लिए अमेरिका को ध्यान में रखा जाएगा.
एक्सप्रेस ट्रिब्यून के एक आर्टिकल में पत्रकार कामरान युसूफ़ ने अमेरिका के दो रिटायर्ट जनरलों का हवाला दिया है जो पाकिस्तान के साथ पारस्परिक लाभदायक संबंधों की बात कर रहे हैं.