Explained: दुनिया भर में कोरोना वैक्सीन भेजने वाला भारत अब आयात को क्यों हुआ मजबूर, क्यों है यह दुनिया के लिए भी बुरी खबर, समझें – नवभारत टाइम्स

देश में दिन ब दिन कोरोना की प्रचंड होती दूसरी लहर के बीच कई राज्यों से वैक्सीन की कमी की रिपोर्ट्स आ रही हैं। हालत यह है कि डब्लूएचओ से मंजूरी मिल चुकीं सभी विदेशी वैक्सीनों को भी भारत ने अपने यहां लगाने की इजाजत दे दी है भले ही उनका यहां पर क्लीनिकल ट्रायल हुआ हो या नहीं। आखिर ऐसी स्थिति क्यों आई? भारत से कहां चूक हुई? क्यों यह उसके लिए ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए भी बुरी खबर है? आइए समझते हैं।

ऐसा क्या हुआ जो इतनी तेजी से बदल गई सूरत?



जिस भारत ने फाइजर जैसी विदेशी दिग्गज कंपनियों को दो टूक कह दिया था कि उनसे वैक्सीन तभी ली जाएगी जब उनका यहां ट्रायल हो, उसी भारत को अब वैक्सीन इम्पोर्ट को फास्टट्रैक करने के लिए अचानक नियमों में बड़ी ढील देनी पड़ी। इसी महीने से वह रूस की स्पूतनिक V वैक्सीन का इम्पोर्ट शुरू करने जा रहा है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि दुनिया का वैक्सीन हब अब खुद की जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहा है? आइए इसे समझते हैं।

भारत में कोरोना की ‘सूनामी’



दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले भारत के लिए विशाल मात्रा में वैक्सीन की जरूरत है, यह तो किसी से छिपा नहीं था। जनवरी में ही यहां वैक्सीनेशन भी शुरू हो गया। लेकिन किसने सोचा था कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर इतनी विकराल हो जाएगी। गुरुवार को पहली बार भारत में एक दिन में आने वाले नए केस के आंकड़े ने 2 लाख को पार कर दिया। कोरोना की इस सूनामी ने भारत के सामने जल्द से जल्द अपनी विशाल आबादी को वैक्सीनेट करने का जबरदस्त दबाव बना दिया है लेकिन अब वैक्सीन की कमी आड़े आ रही है।

कच्चे माल की कमी बड़ी वजह



वैक्सीन की सप्लाई और उसकी व्यवस्था से जुड़े सूत्रों ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि ऐसे कई फैक्टर हैं जिससे भारत को टीके की कमी से जूझना पड़ रहा है। एक बड़ी वजह कच्चे माल की कमी है। दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता पुणे की सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया चाहकर भी अपनी निर्माण क्षमता नहीं बढ़ा पा रही है। अमेरिका ने वैक्सीन निर्माण से जुड़े महत्वपूर्ण उपकरणों और कच्चे माल के निर्यात को एक तरह से बैन कर दिया है। शुक्रवार को ही सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अडार पूनावाला ने ट्विटर पर अमेरिकी राष्ट्रपति से वैक्सीन के कच्चे माल की आपूर्ति बहाल करने की गुजारिश की। SII के पास अभी महीने भर में 7 करोड़ वैक्सीन डोज बनाने की क्षमता है जिसे वह बढ़ाकर 10 करोड़ करना चाहता है। लेकिन कच्चे माल की आपूर्ति प्रभावित होने से प्रोडक्शन में देरी हो रही है।

इन्वेस्टमेंट की कमी



वैक्सीन निर्माण क्षमता बढ़ाने के लिए जाहिर सी बात है कि पूंजी की भी जरूरत पड़ेगी। उत्पादन क्षमता तेजी से बढ़ाने के लिए सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ने भारत सरकार से 3 हजार करोड़ रुपये की मांग की है लेकिन सरकार की तरफ से अभी तक कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई गई है। (तस्वीर सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अडार पूनावाला की है)

भारत सरकार की तरफ से कीमत पर फाइनल डील में देरी



भारत सरकार ने सीरम की कोविशील्ड की प्रति डोज कीमत तय करने में बहुत देर की। वैक्सीन को भारत में इमर्जेंसी यूज की मंजूरी दिए जाने के करीब 2 हफ्ते बाद सरकार कीमत को फाइनलाइज कर पाई। इसके लिए महीनों तक चर्चा चली। सीरम इंस्टिट्यूट तो अक्टूबर से ही बड़े पैमाने पर वैक्सीन का प्रोडक्शन शुरू कर दिया था। हुआ यह कि एक समय उसके पास वैक्सीन की 5 करोड़ डोज का स्टॉक जमा हो गया। उसके पास वैक्सीन रखने की जगह ही नहीं बची। जनवरी में सीरम के सीईओ अडार पूनावाला ने रॉयटर्स से कहा था कि उन्हें 5 करोड़ डोज से ज्यादा वैक्सीन होने पर पैकिंग रोकने को कहना पड़ा था क्योंकि अगर उससे ज्यादा पैकिंग होती तो उन्हें वैक्सीन को अपने घर में स्टोर करना पड़ता। अगर सरकार उस दौरान सीरम के साथ खरीद का सौदा कर ली होती तो कंपनी को तब अपनी पूरी क्षमता के साथ उत्पादन को नहीं रोकना पड़ा होता।

भारत ही नहीं, दुनिया के लिए भी क्यों है चिंता की बात



एशिया के फार्मा पावरहाउस भारत में ही कोरोना वैक्सीन की किल्लत खुद उसके लिए तो बुरी खबर है ही, दुनिया के लिए भी चिंता की बात है। इससे दुनियाभर के 60 से ज्यादा गरीब देशों में वैक्सीनेशन अभियान बुरी तरह प्रभावित होगी। इनमें से ज्यादातर अफ्रीकी देश हैं। ये देश वैक्सीन के लिए बहुत हद तक भारत पर ही निर्भर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के समर्थन से चल रहा COVAX प्रोग्राम और Gavi Vaccine Alliance दुनियाभर के देशों तक वैक्सीन उपलब्ध कराने के लक्ष्य से काम कर रहे हैं। इसके लिए वह भारत पर निर्भर हैं। अब भारत में ही वैक्सीन की कमी से हालात बिगड़ सकते हैं।

भारत की प्राथमिकता में अब अपनी जरूरत



भारत की वैक्सीन स्ट्रेटिजी से वाकिफ एक अधिकारी के मुताबिक अब उपलब्ध खुराकों का देश में ही इस्तेमाल किया जाएगा क्योंकि हालात इमर्जेंसी वाले हैं। उसने कहा कि दूसरे देशों के साथ कोई कमिटमेंट नहीं है। विदेश मंत्रालय के आंकड़ों में भी यह बात साफ झलक रही है। जनवरी लास्ट से मार्च के बीच में भारत ने वैक्सीन की करीब 6.4 करोड़ खुराकों को एक्सपोर्ट किया था। लेकिन इस महीने में अब तक सिर्फ 12 लाख डोज का एक्सपोर्ट हुआ है।

अगस्त तक 40 करोड़ लोगों को वैक्सीन देने का लक्ष्य

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भारत ने शुरुआत में उच्च जोखिम वाली अपनी करीब 30 करोड़ आबादी को अगस्त तक वैक्सीनेट करने का लक्ष्य रखा था। यह भारत की कुल आबादी का करीब पांचवा हिस्सा ही है। लेकिन अब सरकार ने इस लक्ष्य को बढ़ाकर 40 करोड़ कर दिया है। इसे हासिल करने के लिए न सिर्फ देसी वैक्सीन के उत्पादन को तेजी से बढ़ाने की दरकार है बल्कि विदेशी वैक्सीनों के भी आयात को फास्ट ट्रैक करने की जरूरत है।

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