2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से भाजपा ने पलटकर कभी पीछे नहीं देखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने हर विपत्ति को अवसर में बदला और सात राज्यों में विपक्ष से छीनकर सरकार बनाई। राजस्थान में कांग्रेस की अंदरुनी उठापटक पर मोदी-शाह ने भले ही कुछ प्रतिक्रिया न दी हो, पर मामले पर उनकी करीबी नजर है। आइये जानते हैं कि 2014 के बाद से मोदी-शाह की जोड़ी ने किस तरह विपक्ष में सेंध लगाकर सरकार बनाई।
अरुणाचलः मुख्यमंत्री ही विधायकों के साथ भाजपा में आ गया
- 37 वर्षीय पेमा खांडू ने 17 जुलाई, 2016 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तब वे कांग्रेस में थे। पार्टी के पास 60-सदस्यों वाली विधानसभा में 47 विधायक थे। दो महीने बाद खांडू समेत 43 विधायकों ने क्षेत्रीय पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) की सदस्यता ले ली जो भाजपा के नेतृत्व वाली नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एऩईडीए) का सदस्य थी।
- 29 दिसंबर 2016 को पीपीए ने भी खांडू को सस्पेंड कर दिया। एक दिन बाद खांडू 33 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने पूर्वोत्तर में 12 साल बाद दूसरी नॉन-इलेक्टेड सरकार बनाई।
- इसका कारण यह था अरुणाचल और पूर्वोत्तर के अन्य राज्य फाइनेंशियली पूरी तरह से दिल्ली पर निर्भर हैं। केंद्र की सरकार के साथ गठबंधन में रहना चाहते हैं ताकि अपनी जनता के लिए काम कर सके।
- 2019 के विधानसभा चुनावों में पेमा खांडू के नेतृत्व में भाजपा ने 60 में से 41 सीटें जीतकर अपनी सरकार बनाई।
बिहारः भ्रष्टाचार के मुद्दे पर फिर मिली दो बिछड़ी पार्टियां
- 2014 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले जून 2013 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ नाता तोड़ दिया था। आपत्ति भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की ताजपोशी से थी।
- 2015 के विधानसभा चुनावों में नीतीश ने लालू प्रसाद यादव के आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और भाजपा को शिकस्त दी। लेकिन यह महागठबंधन ज्यादा चला नहीं। 20 माह में यानी जुलाई 2017 में नीतीश फिर भाजपा के साथ लौट गए।
- नीतीश ने महागठबंधन तोड़ने के बाद कहा था कि मौजूदा परिस्थितियों में जब डिप्टी सीएम और लालू के बेटे तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं तो उनके साथ मिलकर सरकार चलाना मुश्किल हो रहा है।
- इस सरकार को बनाने में मोदी-शाह की जोड़ी न केवल सक्रिय रही बल्कि मोदी ने ही बिहार में नीतीश के साथ जाने के फैसले को आगे बढ़ाया। मोदी ने लिखा- भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारे प्रयासों में शामिल होने पर नीतीश कुमार को बहुत बधाई।
- सीबीआई ने तेजस्वी यादव, लालू यादव और बहन मीसा यादव के खिलाफभ्रष्टाचार के केस दर्ज किए थे। तब से ही मुख्यमंत्री पर दबाव बन रहा था कि वे तेजस्वी को डिप्टी सीएम पद से हटाएं।
- 243 सदस्यों वाली विधानसभा में उस समय नीतीश की जेडीयू के पास 71 और भाजपा के पास 53 विधायक थे। उनके सहयोगी रामविलास पासवान की एलजेपी के पास दो विधायक थे। यानी बहुमत उनके पास था। 2019 के लोकसभा चुनाव जेडीयू और भाजपा ने मिलकर लड़े और अब 2020 में विधानसभा चुनाव भी मिलकर लड़ने की संभावना कायम है।
गोवाः कांग्रेस सोचती रह गई और भाजपा ने रातोंरात सरकार बना दी
- 40 सीटों वाली गोवा विधानसभा के चुनाव में किसी को भी बहुतम नहीं मिला था। कांग्रेस ने 17 और भाजपा ने 13 सीटें जीती थी। ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस की ही सरकार बनेगी। लेकिन हुआ इसका उलट।
- तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने रातोंरात ऐसी रणनीति बनाई कि रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर को राज्य में मुख्यमंत्री के तौर पर भेज दिया। इससे छोटी पार्टियां और निर्दलीय साथ आ गए और भाजपा ने बहुमत हासिल कर लिया।
- 2019 में रही-सही कसर मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कांग्रेस को जोर का झटका जोर से दिया। जब कांग्रेस के 10 विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। उन्हें सरकार में शामिल किया गया और अब गोवा में 27 विधायकों के साथ पार्टी अपने दम पर बहुमत में है।
मणिपुरः छोटी पार्टियों को साथ लेकर कांग्रेस के अरमानों पर पानी फेरा
- पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में भी गोवा को दोहराया गया। कांग्रेस को 60 में से 28 सीटें मिली थी और वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। भाजपा को 21, नागा पीपुल्स फ्रंट को 4 और बाकी सीटें अन्य दलों को मिली थी।
- मणिपुर में कांग्रेस बड़ी पार्टी थी, लेकिन यहां भी बीजेपी ने दूसरी छोटी पार्टियों से गठबंधन करके कांग्रेस को सरकार बनाने से रोका। 2016 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा से जुड़े पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया।
मेघालयः सिर्फ दो सीटों के साथ 60 सदस्यों वाले सदन में पाई सत्ता
- केंद्र में सत्तारुढ़ बीजेपी को 60 सदस्यों वाली मेघालय विधानसभा में महज 2 सीट मिली। लग रहा था कि राज्य में 21 सीट हासिल करने वाली कांग्रेस अपनी सरकार बना लेगी। लेकिन मोदी-शाह के नेतृत्व में भाजपा के चतुर रणनीतिकारों ने पासा ही पलट दिया।
- 60 सदस्यीय मेघालय विधानसभा चुनाव में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) 19, बीजेपी 2, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी) 6, एचएसपीडीपी 2, पीडीएफ 4 और 1 निर्दलीय के साथ आने से इस गठबंधन के पास 34 विधायकों का समर्थन हो गया है।
- वहीं सबसे ज्यादा 21 सीट जीतकर राज्य में सबसे बड़ी एकल पार्टी रही कांग्रेस बहुमत से महज 10 सीट दूर रही और फिर से सरकार बनाने की उसकी योजना नाकाम हो गई। इससे पूर्व लोकसभा स्पीकर पीए संगमा के बेटे कोनराड मुख्यमंत्री बन गए।
कर्नाटकः भाजपा को रोकने वाला कांग्रेसी गठबंधन ज्यादा नहीं चला
- 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भाजपा 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी। लेकिन उसके लिए सात विधायकों का समर्थन जुटाना भारी पड़ा। बीएस येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा देना पड़ गया।
- तब भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस (78) और जेडीएस (40) ने गठबंधन किया और कुमारस्वामी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनी। जुलाई में भाजपा ने राज्य में ऑपरेशन लोटस चलाया और फिर सत्ता में आ गई।
- भाजपा के ऑपरेशन में फंसकर कांग्रेस व जेडीएस के 17 विधायकों ने इस्तीफे दिए। भाजपा में शामिल हो गए। जुलाई 2019 में कुमारस्वामी सरकार गिर गई। बाद में बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनीं।
मध्यप्रदेशः युवा नेताओं की अनदेखी पड़ी भारी, सिंधिया आ गए भाजपा में
- मध्य प्रदेश में 2018 के चुनावों में 230 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन भाजपा भी बहुत ज्यादा पीछे नहीं थी। ऐसे में युवा कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजी का भाजपा ने फायदा उठाया।
- सिंधिया के समर्थक 22 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ीऔर भाजपा के साथ आकर सरकार बनाई। सिंधिया खुद भाजपा की सीट पर राज्यसभा पहुंच चुके हैं। हालांकि, उपचुनाव शेष हैं और कांग्रेस यदि सभी सीटें जीत लेती हैं तो उसकी वापसी संभव है।
हालांकि, महाराष्ट्र में भाजपा के पांसे उलटे पड़े
- भाजपा 2019 में महाराष्ट्र चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन चुनावपूर्ण गठबंधन में उसकी सहयोगी शिवसेना ने ही उसका साथ नहीं दिया। तब अजित पवार को साथ लेकर एनसीपी के समर्थन का दावा करते हुए देवेंद्र फडणवीस ने रातोंरात शपथ ली।
- हालांकि, चाचा शरद पवार के सक्रिय होने से अजित पवार की किरकिरी हुई और भाजपा की भी। उस समय सिर्फ शरद पवार ही थे, जिन्होंने किसी तरह भाजपा को सरकार बनाने से रोक दिया। वरना, कांग्रेस किसी भी स्थिति में शिवसेना के साथ सरकार बनाने को राजी नहीं थी।
- अभी भी, महाराष्ट्र से आए दिन शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के बीच आपसी उठापटक की खबरें आती रहती हैं। लेकिन फिलहाल उनकी सरकार सुरक्षित ही नजर आ रही है क्योंकि भाजपा के लिए इस समय किसी भी पार्टी को तोड़ पाना संभव नहीं दिख रहा।
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Source: DainikBhaskar.com