जानिए आखिर कश्‍मीर मुद्दे पर टर्की, क्यों दे रहा पाकिस्‍तान का साथ ?

भारत के साथ 2017 में किए वादे को टर्की ने नहीं किया पूरा गौरतलब है कि ये वहीं तुर्की के राष्‍ट्रपति है जिन्‍होंने 2017 में भारत यात्रा के दौरान भारत पुराने विवादों को भुलाकर नए सौहार्दपूर्ण संबंध स्‍थापित करने के कसीदें पढ़े थे। उस समय दोनों देशों ने इस पर राजी हुए थे। हालांकि तब भी भारत को पता था कि तुर्की अपने पाक प्रेम को छोड़ भारत की तरफदारी कभी नहीं करेगा। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण इस देश की यात्रा आज तक नहीं की। जबकि टर्की के कुछ पड़ोसी देशों की यात्रा पीएम मोदी कर चुके हैं। अगर आप पाकिस्‍तान में यहां काम कर रहे हैं तो नमाज नहीं पढ़ सकते हैं,जानें क्यों? इस मुद्दे पर सदा भारत के खिलाफ रहा तुर्की ये पहला मौका नहीं है जब तुर्की ने कश्‍मीर मुद्दे पर पाकिस्‍तान की पैरवी कर रहा है। तुर्की कश्मीर मुद्दे पर तुर्की हमेशा से ही पाकिस्तान का पक्षधर रहा है। 1991 में 20वें इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक में उसने भारत के दृष्टिकोण की निंदा की थी। बता दें उस समय कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था और कश्मीरी पंडितों को अपने घरों को छोड़कर जाना पड़ा था। 1993 में सेनेगल में आयोजित इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक में पाकिस्तान के अनुरोध पर तुर्की ने बाबरी मस्जिद का मुद्दा उठाया था। इसके बाद कई अवसरों पर तुर्की ने पाकिस्‍तान का कश्‍मीर मुद्दे पर साथ दिया। पाकिस्‍तान को किया इस मुद्दे पर सपोर्ट इतना ही नही तुर्की ने हमेशा से भारत के परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) का सदस्य बनने का विरोध करता रहा है। जबकि तुर्की, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में पाकिस्तान की सदस्यता की वकालत करता रहा है। बता दें तुर्की ने 1998 में भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों पर चिंता जताई थी।। वहीं पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण किया तो तुर्की ने पाकिस्‍तान का समर्थन करते हुए इसे भारत की प्रतिक्रिया में उठाया गया कदम बताया था। तुर्की ऐसा इसलिए करता आया कि वह भारत को पाकिस्‍तान से कमजोर होता नहीं देखना चाहता था। पाकिस्‍तान का साथ देने की ये हैं सबसे बड़ी वजह तुर्की और पाकिस्तान एक दूसरे के आतंरिक मामलों में समर्थन करते रहे हैं। दोनों देशों की दोस्ती आर्मेनिया के खिलाफ भी है। पाकिस्तान दुनिया का एकमात्र देश है जिसने आर्मेनिया को संप्रभु राष्ट्र की मान्यता नहीं दी है। वहीं अज़रबैजान आर्मेनिया के नागोर्नो-काराबाख़ पर अपना दावा करता है और पाकिस्तान भी इसका समर्थन करता है। पाकिस्तान आर्मेनिया में तुर्की द्वारा किए गए नरसंहार में भी तुर्की के पक्ष में खड़ा था। बता दें कि 1914 से 1923 के बीच तुर्की की फौज ने अर्मेनियन मूल के लगभग 40 लाख लोगों की हत्या कर दी थी। बहुत बड़ा ये भी कारण है कि टर्की पाकिस्‍तान का सदा सगा बना रहता है। वहीं पीएम मोदी की यूएन महासभा में आर्मेनिया के राष्ट्रपति से भेंट हुई तो बता उठी थी कि भविष्य में भारत आर्मेनियन नरसंहार को मान्यता दे सकता है। इतना ही नही पीएम मोदी के शासन काल में भारत ने तुर्की के पड़ोसी देशों से मेलजोल भी बढ़ा दिया है। जिस कारण भी टर्की भारत से खार खाए हुए है इमरान ने इरदुगान को कहा था ‘नायक’ बात जुलाई 2016 की है जब तुर्की में सेना का इरदुगान की सत्ता के खिलाफ की गई तख्तापलट की कोशिश नाकाम रही थी तब पाकिस्तान ने खुलकर तुर्की के राष्ट्रपति का समर्थन किया था। पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने एर्डोगन को फोन कर समर्थन दिया था। इसके बाद शरीफ ने तुर्की का दौरा भी किया था। इसलिए पाक की इमरान सरकार ही नहीं पाकिस्‍तानी पिछली सरकारों को इरदुगान का समर्थन प्राप्‍त था। इतना ही नहीं टर्की में तख्तापलट नाकाम करने पर इमरान खान ने इरदुगान को नायक कहा था। इमरान खान को भी डर लगा रहता है कि कहीं पाकिस्तान में राजनीतिक सरकार के खिलाफ सेना तख्तापलट न कर दे। इसकी आशंका पाकिस्तान में हमेशा बनी रहती है। टर्की एक अरब डॉलर पाकिस्‍तान में कर चुका है निवेश 2017 से तुर्की ने पाकिस्तान में एक अरब डॉलर का निवेश किया है। तुर्की पाकिस्तान में कई परियोजनाओं पर काम कर रहा है। वो पाकिस्तान को मेट्रोबस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम भी मुहैया कराता रहा है। दोनों देशों के बीच प्रस्तावित फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को लेकर अब भी काम चल रहा है। अगर दोनों देशों के बीच यह समझौता हो जाता है कि तो द्विपक्षीय व्यापार 90.0 करोड़ डॉलर से बढ़कर 10 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। पाकिस्तान में टर्किश एयरलाइंस ने भी अपनी सेवाओं का विस्तार किया है। इस्‍लामिक तानाशाह एरदुगान का है ये उद्देश्‍य बता दें भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्‍ट्र को कश्‍मीर मुद्दे पर मानवता का पाठ पढ़ाने वाले तुर्की राष्‍ट्रपति इरदुगान एक कट्टर इस्लामिक तानाशाह हैं। तुर्की में इरदुगान की तुलना सद्दाम हुसैन, बशर अल असद और मुअम्मर गद्दाफी जैसे तानाशाहों से की जाती है। नरमपंथी इस्लामी दल एकेपी से ताल्लुक रखने वाले मौजूदा तुर्की राष्ट्रपति इरदुगान ने कमाल अता तुर्क की कमालवाद विचारधारा को खत्म कर देश की धर्मनिरेपक्षता समाप्त करने में जुटे हुए हैं। इरदुगान बहुत दिनों से प्रयास कर रहा है कि वो यूरोपीय यूनियन में शामिल हो जाए। इतना ही नहीं तुर्की में ओटोमन साम्राज्य को स्थापित कर खुद को बड़े इस्लामिक लीडर के तौर पर स्थापित करना चाहता हैं। कश्‍मीर पाकिस्‍तान के लिए अहम मुद्दा है इसलिए वो इस पर पाकिस्‍तान का साथ देकर इस्‍लामिक देश का रखवाला बनना चाहता है। पाकिस्तान और तुर्की के संबंध गौरतलब है कि भारत की आजादी से पहले बिट्रेन जैसे औपनिवेशिक ताकतों के विरुद्ध लड़ाई में भारत और तुर्की मित्र हुआ करते थे। फर्स्‍ट वर्ड वॉर के समय भारत के राष्‍ट्रीय आंदोलन के समर्थकों ने उस समय संकटग्रस्‍त तुर्कों को चिकित्‍सा और वित्तीय सहायता की थी। लेकिन पारस्परिक सद्भावना 1947 के बाद दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों में परिवर्तित नहीं हुई थी। 1947 के भारत-पाक विभाजन के बाद इस्‍लामिक राष्‍ट्र होने के कारण तुर्की का झुकाव पाकिस्तान की ओर ज्यादा हो गया। इस्लाम के नाम पर जन्‍में पाक के साथ दोस्‍ती करने में तुर्की को अपना उज्ज्वल भविष्य दिखा। तुर्की में रह रहे कुर्द, अल्बानियाई और अरब जैसे तुर्को के बीच पाकिस्तान की स्वीकार्यता में इस्लाम में बड़ी भूमिका अदा की। तुर्की के संबंध धार्मिक आधार पर ही मजबूत हुए मुस्तफा कमाल पाशा की धर्मनिरपेक्ष सोच के बावजूद पाकिस्तान और तुर्की के संबंध धार्मिक आधार पर ही मजबूत हुए। इसके बाद 1970 के दशक में नेकमेटिन एर्बाकन के नेतृत्व में इस्लामी दलों के उदय ने तुर्की की राजनीति में इस्लाम की भूमिका मजबूत हुई और जिसने तुर्की की विदेश नीति को भी प्रभावित किया और पाकिस्तान के साथ तुर्की के साथ संबंध मजबूत हुए। साल 1954 में पाकिस्तान और तुर्की ने शाश्वत मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर किए। भूमध्य सागर में बढ़ते रूसी प्रभुत्व के खिलाफ 1955 में गठित ‘बगदाद संधि’ का पाकिस्तान सदस्य बना। पाकिस्तान ने इस संधि के सदस्य देशों से भारत के खिलाफ मदद मांगी लेकिन कोई भी देश पाकिस्तान के साथ खड़ा नहीं हुआ। भारत-चीन युद्ध में भी तुर्की ने दिया था ये धोखा 1962 में भारत का चीन के साथ युद्ध हो रहा था तब पर्वतीय इलाकों में लड़ने के लिए भारत ने तुर्की के साथ पर्वतीय होवित्जर (हल्के तोप) की खरीद के लिए एक समझौता किया था। इस समझौते के अंतर्गत तुर्की भारत को हल्की तोपें देने वाला था लेकिन तभी पाकिस्तान के दबाव के कारण तुर्की ने पर्वतीय होवित्जर भेजने से इनकार कर भारत को एक और धोखा दिया था।
Source: OneIndia Hindi

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