भास्कर ओपिनियन- भारत में लोकतांत्रिक लड़ाई:ईरान और इजराइल के बीच नए युद्ध की आहट

भारत में लोकतांत्रिक लड़ाई चल रही है और उधर इज़राइल और फ़िलिस्तीन के बीच के युद्ध में अब ईरान कूद पड़ा है। भारत की बात करें तो यहां चुनाव प्रचार ज़ोरों पर है। कांग्रेस के घोषणापत्र पर भाजपा का संकल्प पत्र भारी दिखाई दे रहा है। भाजपा के संकल्प पत्र में सत्तर बरस के बुजुर्गों का निःशुल्क इलाज और ग़रीबों को घर देना। ये दो सबसे महत्त्वपूर्ण संकल्प हैं। ये इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन पर मोदी की गारंटी की रसीदी टिकट लगी हुई है। वैसे भी पिछले दस सालों में भाजपा ने अपने घोषणापत्र या संकल्प पत्र के ज़्यादातर वादे पूरे किए हैं इसलिए उसके वादों पर लोग ज़्यादा भरोसा करेंगे। ख़ैर लोकसभा चुनाव के नतीजे लगभग तय ही माने जा रहे हैं। लोग और राजनीतिक पार्टियाँ भी अच्छी तरह जान चुकी हैं कि अप्रत्याशित कुछ भी होने वाला नहीं है। हाँ, ईरान- इज़राइल लड़ाई लंबी छिड़ गई तो चुनाव बाद भारत में तेल ज़रूर महँगा हो जाएगा। तेल यानी पेट्रोल और डीज़ल। दरअसल, पिछली एक अप्रैल को इज़राइल ने सीरिया में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर हमला कर दिया था जिसमें दो शीर्ष अफ़सर मारे गए थे। ईरान ने तक़रीबन तेरह दिन बाद इज़राइल पर सीधा हमला इसीलिए किया। इज़राइल को इसमें कोई अचरज इसलिए नहीं हुआ कि वह सीरिया पर हमले की प्रतिक्रिया में ईरान के इस हमले की राह ही तक रहा था और इस हमले को नाकाम करने की अमेरिका, फ़्रांस और इज़राइल ने पूरी तैयारी कर रखी थी। इज़राइल का दावा है कि सीमा के बाहर ही हमले को नाकाम कर दिया गया। जबकि ईरान अपनी रणनीति को सफल बता रहा है। बहरहाल, तेल को लेकर दुनियाभर में चिंता फैल गई है क्योंकि ईरान ने अमेरिका को भी चेता दिया है कि इस बार इज़राइल का साथ दिया तो परिणाम भुगतने होंगे। हालाँकि अमेरिका ने मामले की गंभीरता को समझते हुए इज़राइल को समझा- बुझा दिया है और ईरानी हमले की प्रतिक्रिया में इसीलिए इज़राइल की तरफ़ से कोई कार्रवाई नहीं की गई है। वैसे भी जो बाइडन कोई जॉर्ज बुश तो हैं नहीं, कि युद्ध की आशंका हो क्योंकि बाइडन ऐसे किसी भी मौक़े पर कुछ भी नहीं कर पाए हैं। न रूस- यूक्रेन के मामले में और न ही इज़राइल- फ़िलिस्तीन मामले में। हालाँकि ईरान को अपना वजूद क़ायम रखने के लिए यह सीमित हमला करना ज़रूरी हो गया था। वह ऐसा नहीं करता तो अमेरिका और इज़राइल के खिलाफ उसका नरेटिव परास्त हो जाता। वैसे ईरान के तैश में आने का असर भारत पर पड़ेगा या नहीं, और कितना पड़ेगा, यह तो भविष्य ही बताएगा लेकिन चूँकि भारत के हित मध्य- पूर्व से जुड़े हुए हैं, इसलिए ये हित प्रभावित हुए बिना रहेंगे भी नहीं।

Source: DainikBhaskar.com

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