भास्कर ओपिनियन:केजरीवाल, आप और कांग्रेस, आख़िर कैसे उबरेंगे संकट से?

दिल्ली के अब तक के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का संकट ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है। गुरुवार को फिर उनकी रिमाण्ड एक अप्रैल तक के लिए बढ़ा दी गई। उनकी पत्नी कह रही हैं कि हमें परेशान किया जा रहा है। खुद केजरीवाल कह रहे हैं कि मेरे ख़िलाफ़ ईडी या सीबीआई के पास कोई सबूत नहीं हैं। केजरीवाल का सबसे बड़ा सवाल है कि उन्हें गिरफ्तार क्यों किया गया है? कोई तो बताए! जहां तक दिल्ली के लोगों का मानना है, इस सबसे केजरीवाल की लोकप्रियता ही बढ़ रही है। हो सकता है इसका परिणाम लोकसभा चुनाव में न दिखे लेकिन दिल्ली विधानसभा के चुनाव में निश्चित रूप से आप पार्टी को इसका फ़ायदा मिलेगा। खुद आप पार्टी भी संभवतया यही चाहती है कि केजरीवाल जितने लम्बे समय तक जेल भोगेंगे, दिल्ली में उसको उतना ही राजनीतिक फ़ायदा होगा। वैसे भी एक मुख्यमंत्री को इस तरह जेल में डालना कहीं से भी तर्क संगत तो नहीं दिखाई देता लेकिन आज की राजनीति में जो कुछ भी हो, वह कम ही है। दरअसल, दिल्ली में आप पार्टी ने कांग्रेस से समझौता करके गलती कर ली। किसकी नज़र में यह गलती है, सब जानते हैं। हालाँकि केजरीवाल की गिरफ़्तारी उनके ख़िलाफ़ है, या उनकी मदद के लिए है, यह बात अभी तय नहीं है। हो सकता है भविष्य में इसका खुलासा हो पाए। इतना तय है कि केजरीवाल की गिरफ़्तारी हर हाल में आप पार्टी के लिए वरदान साबित होगी। आज न सही, भविष्य में सही, आप पार्टी को इसका फ़ायदा ज़रूर मिलेगा। इस बीच कांग्रेस की भविष्यवाणी प्रसारित हुई है कि वह लोकसभा चुनाव के लिए अपना घोषणापत्र राजस्थान में जारी करेगी। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे की सभा होगी और इसी दौरान चुनाव घोषणापत्र जारी किया जाएगा। जो पार्टी अपनी पहली प्रत्याशी लिस्ट पूरी तरह से दक्षिणी राज्यों पर केंद्रित रखती है वह राजस्थान से घोषणापत्र जारी करेगी, यह बात हज़म होने लायक़ नहीं है। हो सकता है प्रत्याशियों कीपहली लिस्ट जारी करने के बाद कांग्रेस और उसके आलाकमान को यह पता चला हो कि हिंदी भाषी राज्य ही देश में सर्वाधिक हैं और उन्हें इग्नोर करना ठीक नहीं होगा। ये बात और है कि खरगे साहब को लोग हिंदी भाषी नहीं समझते होंगे लेकिन भाषा के इस झगड़े को अभी से क्यों उठाना भला? हो सकता है लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस का कोई नया अध्यक्ष सामने आए! क्योंकि इससे पहले तो ऐसे कोई आसार नज़र नहीं आते। जिस पार्टी के कई उम्मीदवार चुनाव लड़ने से मना कर दें, जिस पार्टी के शीर्ष परिवार के अधिकांश सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव से बचते नज़र आएँ, उस पार्टी में आम कार्यकर्ता के क्या हाल होंगे, आसानी से समझा जा सकता है।

Source: DainikBhaskar.com

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