जेल कोई भी हो, मुख्तार का रुतबा बना रहा:कैद में रहते हुए मर्डर के 8 केस दर्ज, जेल से कैसे चलाता रहा गैंग

यूपी के माफिया और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की गुरुवार रात 8 बजकर 25 मिनट पर मौत हो गई। वह यूपी के बांदा जेल में कैद था। पूर्वांचल की राजनीति में अंसारी परिवार हमेशा से ताकतवर रहा है। इसका असर मऊ, गाजीपुर, जौनपुर, बलिया और बनारस तक है। मुख्तार के दादा मुख्तार अहमद अंसारी आजादी की लड़ाई में गांधी जी के सहयोगी रहे। नाना मोहम्मद उस्मान आर्मी में ब्रिगेडियर और महावीर चक्र विजेता थे। पिता सुभानउल्ला अंसारी पॉलिटिशियन थे जबकि रिश्ते में चाचा हामिद अंसारी उपराष्ट्रपति बने। मुख्तार अंसारी खुद भी मऊ सीट से लगातार 5 बार विधायक चुना गया। मुख्तार पर 61 केस दर्ज थे। इनमें हत्या के 8 केस तो जेल में रहने के दौरान दर्ज हुए। मुख्तार जिस भी जेल में रहा, उसका रुतबा हमेशा बना रहा। चाहे गाजीपुर जेल हो, बांदा जेल या पंजाब की रोपड़ जेल। जेलर कोई भी हो, चली मुख्तार की ही। रिटायर्ड पुलिस अफसर और जेलर भी ये बात मानते हैं। मुख्तार जेल से ही गैंग चलाता रहा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मार्च 2023 में एक शूटर की जमानत पर सुनवाई करते हुए मुख्तार गैंग को देश का सबसे खतरनाक गिरोह कहा था। जेल में मुख्तार के रुतबे की 4 कहानियां… पहली कहानी: मछलियां खाने के लिए गाजीपुर जेल में तालाब खुदवा दिया
यूपी की जेलों में मुख्तार के रुआब का एक नमूना गाजीपुर जेल का किस्सा है। 2005 में मऊ में हिंसा भड़कने के बाद मुख्तार अंसारी ने सरेंडर किया था। उसे गाजीपुर जेल में रखा गया। मुख्तार तब विधायक था। उसने ताजी मछलियां खाने के लिए जेल में ही तालाब खुदवा दिया था। राज्यसभा सांसद और पूर्व डीजीपी बृजलाल ने भी इस बात को माना था। मुख्तार तब गाजीपुर जेल में डीएम समेत बड़े अधिकारियों के साथ बैडमिंटन खेला करता था। दूसरी कहानी: मुख्तार बांदा जेल आया, डेढ़ साल खाली रही जेलर की कुर्सी
मुख्तार अंसारी को पंजाब की रोपड़ जेल से अप्रैल 2021 में यूपी की बांदा जेल शिफ्ट किया गया। इसका असर ये हुआ कि कोई भी जेलर इस जेल का चार्ज लेने के लिए ही तैयार नहीं हुआ। बाद में दो जेल अधिकारियों विजय विक्रम सिंह और एके सिंह को भेजा गया। जून 2021 में बांदा जिला प्रशासन ने जेल पर छापा मारा। उस दौरान कई जेल कर्मचारी मुख्तार की सेवा में लगे मिले। तत्कालीन डीएम अनुराग पटेल और एसपी अभिनंदन की जॉइंट रिपोर्ट पर डिप्टी जेलर वीरेश्वर प्रताप सिंह और 4 बंदी रक्षक सस्पेंड कर दिए गए थे। तीसरी कहानी: मुख्तार के बैरक से बाहर आने पर जेल के CCTV कैमरे बंद हो जाते थे मुख्तार दो साल से बांदा जेल में बंद था। मार्च, 2023 के आखिरी हफ्ते में इस जेल से एक कैदी छूटकर बाहर आया था। नाम न बताने की शर्त पर उसने बताया कि मुख्तार को स्पेशल हाई सिक्योरिटी सेल में रखा गया था। उसकी बैरक दूसरे कैदियों से अलग थी। ये बैरक जेल के बीच वाले गेट के पास ही बनी है। गेट के पास ही वह हर रोज घंटे-दो घंटे कुर्सी डालकर बैठता था। वहीं जेल अधिकारियों और दूसरे कैदियों से मिलता था। मुख्तार जब तक वहां बैठता था, कोई उस गेट से आ-जा नहीं सकता था। मुझे जब जेल से छूटना था, तब भी मुख्तार उसी गेट पर बैठा था। इस वजह से मेरी रिहाई करीब दो घंटे लेट हुई। मुख्तार जितनी देर अपनी बैरक से बाहर रहता था, तब तक जेल के उस हिस्से के CCTV बंद रहते थे, ताकि वह किससे मिल रहा है, यह किसी को पता न चले। चौथी कहानी: मुख्तार की बैरक में मिले थे दशहरी आम, बाहर का खाना जून, 2022 में बांदा जेल में डीएम ने छापा मारा था। सूत्र बताते हैं कि तब मुख्तार की बैरक में दशहरी आम के साथ-साथ होटल का खाना मिला था। मुख्तार का रुतबा इतना था कि वह जो सुविधा चाहता, वह उसे बैरक में ही मिल जाती थी। बताया जाता है कि मुख्तार जब ट्रांसफर होकर बांदा जेल आया, तो उसके गुर्गे जेल के आसपास किराए पर कमरा लेकर रहने लगे थे। मुख्तार के बड़े भाई और गाजीपुर से सांसद अफजाल अंसारी ने बांदा जेल में मुख्तार की हत्या का अंदेशा जताया था। मुख्तार 2005 में दंगों का आरोपी बना, तभी से जेल में था
मऊ में मुगल काल से रामायण के प्रसंग भरत मिलाप की परंपरा चली आ रही है। इसकी शुरुआत बादशाह औरंगजेब की बेटी जहांआरा ने कराई थी। 2005 में भरत मिलाप के दौरान दंगा भड़क गया था। ये करीब एक महीने चला। तब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। मुख्तार को दंगे के मामलों में आरोपी बनाया गया। 25 अक्टूबर 2005 को उसने गाजीपुर में सरेंडर कर दिया। तभी से वह जेल में था। दोनों केस, जिनके लिए मुख्तार और अफजाल को सजा मिली… 1. कृष्णानंद राय हत्याकांड, जिसके बाद मुख्तार का बुरा वक्त शुरू हुआ
मुख़्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी ने गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट से 1985 से 1996 तक लगातार 5 बार चुनाव जीता था। 2002 के चुनाव में BJP के कृष्णानंद राय ने अफजाल अंसारी को हरा दिया। तीन साल बाद 29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय की हत्या कर दी गई। कृष्णानंद एक क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन करने गए थे। लौटते वक्त शूटर्स ने कृष्णानंद राय की कार को घेरकर एके-47 से 400 से ज्यादा गोलियां चलाई थीं। कृष्णानंद और उनके साथ मौजूद 6 लोग मारे गए। मुख्तार उस वक्त जेल में था, इसके बावजूद उसे इस हत्याकांड में नामजद किया गया। 2. नंदकिशोर रूंगटा हत्याकांड: कोयला कारोबारी को डील के बहाने उठाया और मर्डर
बनारस के भेलूपुर में 1997 में कोयला कारोबारी नंद किशोर रूंगटा की अपहरण के बाद हत्या कर दी गई थी। नंद किशोर के भाई महावीर प्रसाद रूंगटा ने दिसंबर 1997 में भेलूपुर थाने में केस दर्ज कराया था। उनका आरोप था कि 5 नवंबर 1997 को शाम 5 बजे मुख्तार अंसारी ने टेलीफोन पर धमकी दी थी। उनसे 5 करोड़ की रंगदारी मांगी गई थी। इसमें से डेढ़ करोड़ रुपए वे दे चुके थे। महावीर प्रसाद ने मुख्तार अंसारी और अताउर रहमान उर्फ बाबू के खिलाफ केस दर्ज करवाया था। आरोप था कि नंद किशोर की हत्या मुख्तार के सबसे भरोसेमंद शूटर अताउर रहमान ने की थी। रहमान ने कोयला कारोबारी बनकर नंद किशोर को डील के बहाने बुलाया और उनकी हत्या कर शव प्रयागराज में ठिकाने लगा दिया। यूपी में माफिया जेल से ही चलाते रहे हैं गैंग… 1. मुख्तार का बेटा अब्बास चित्रकूट जेल में पत्नी से मिलता रहा
मुख्तार अंसारी का बेटा अब्बास अंसारी चित्रकूट की रगौली जेल में बंद था। स्टाफ की मदद से अब्बास की पत्नी निखत बिना एंट्री कराए जेल में आती रही। दोनों जेल में ही अलग कमरे में 4 से 5 घंटे साथ रहते। इसके बदले अब्बास जेल अफसरों को महंगे गिफ्ट देता था। ये सब 85 दिन तक चला। मामला पकड़ में आया तो सुपरिन्टेंडेंट और जेलर समेत 7 अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया। अब्बास को कासगंज जेल ट्रांसफर कर दिया गया और उसकी पत्नी को गिरफ्तार कर लिया गया। 2. जेल से रची गई उमेश पाल हत्याकांड की साजिश BSP विधायक राजू पाल की हत्या के मुख्य गवाह उमेश पाल की 24 फरवरी 2023 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस केस में अतीक अहमद और उसके बेटे समेत 9 लोग आरोपी बनाए गए। पुलिस का दावा है कि प्रयागराज में हुए उमेश हत्याकांड की साजिश अतीक अहमद और अशरफ ने जेल से रची थी। अतीक अहमद ने साबरमती जेल और अशरफ ने बरेली जेल से वॉट्सऐप के जरिए शूटर्स से बात की। बाहर अतीक के बेटे असद ने शूटर्स के साथ उमेश की हत्या की। 3. 2018 में बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या हुई 2005 में यूपी में गाजीपुर के विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में शामिल मुन्ना बजरंगी कभी उत्तर प्रदेश और बिहार में बाहुबलियों की ताकत बनकर उभरा था। उसे 2009 में मुंबई से गिरफ्तार किया गया था। 8 जुलाई 2018 को मुख्तार के साथी और पूर्वांचल के डॉन मुन्ना बजरंगी को बागपत जेल लाया गया। 9 जुलाई की सुबह जेल में तन्हाई बैरक के सामने यूपी के ही डॉन सुनील राठी ने उसे गोली मार दी। जांच में पता चला कि सुनील राठी ने मोबाइल से वीडियो कॉल कर मुन्ना की लाश किसी को दिखाई थी। मुन्ना की पत्नी की याचिका पर 2020 में हाईकोर्ट ने जांच CBI को सौंप दी, लेकिन अब तक जांच पूरी नहीं हो पाई है। जेल कोई भी हो, बाहुबलियों को हर सुविधा मिलती है: पूर्व डीजीपी
यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं, ‘तिहाड़ हो या नैनी, या कोई और जेल, जहां बाहुबली रहते हैं, उन्हें हर तरह की सुविधा मिलती है। सुविधा मतलब मनचाहा खाना और मोबाइल फोन। सिंगापुर में लुंघी प्रिजन है, वहां कैदी कितनी बार खांसता है, उसका भी रिकॉर्ड होता है। चप्पा-चप्पा CCTV पर है। सबकी रिकॉर्डिंग होती है।’ ‘हमारी जेलों में इतनी CCTV कवरेज है ही नहीं, जहां है वहां भी उसे अपंग बना दिया। जहां मोबाइल जैमर हैं, उन्हें बंद कर देते हैं। जेल में 50 मोबाइल चल रहे हैं, तो हम पता कर लें कि कितने जेल स्टॉफ के हैं और कितने नाजायज हैं।’ ‘अगर माफिया को मिट्‌टी में मिलाने की इच्छाशक्ति है, तो सब हो जाएगा। अफसरों को सिर्फ सस्पेंड कर देने से कुछ नहीं होगा। तीन महीने बाद वे फिर बहाल हो जाएंगे। कहीं किसी और जेल में जाकर यही काम करेंगे। ऐसे अधिकारियों पर 120 B (आपराधिक षड्यंत्र) में मुकदमा चलना चाहिए।’

Source: DainikBhaskar.com

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