24 घंटे में कैसे कर दी चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा सवाल – Aaj Tak

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को फिर सुनवाई हुई. इस दौरान केंद्र सरकार ने संविधान पीठ को अरुण गोयल की निर्वाचन आयुक्त पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया से संबंधित फाइल सौंपी. सरकार ने कहा कि नियुक्ति की ओरिजिनल फाइल की प्रतियां पांचों जजों को दी गई हैं.

सुनवाई के दौरान पीठ ने नियुक्ति के तरीके पर सवाल खड़े कर दिए. जस्टिस अजय रस्तोगी ने इतनी तेज रफ्तार से फाइल आगे बढ़ने और नियुक्ति करने पर सवाल पूछा. उन्होंने पूछा कि 24 घंटे के भीतर कैसे जांच पड़ताल कर दी गई? 

जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि 15 मई को पद खाली हुआ. क्या आप हमें बता सकते हैं कि सरकार ने इस पर नियुक्ति के लिए जल्दबाजी क्यों की? उसी दिन क्लीयरेंस, उसी दिन नोटिफिकेशन, उसी दिन एक्सेप्टेंस. फाइल 24 घंटे भी नहीं घूमी. यह तो प्रकाश गति से चली है. इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि वो सभी बातों का जवाब देंगे, लेकिन अदालत उनको बोलने का मौका तो दें.

फिलहाल संविधान पीठ ने मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट ने अपने सवालों से सरकार को कठघरे में खड़ा किया तो अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की सीमाएं याद दिलाईं. जस्टिस जोसफ की अगुआई वाली संविधान पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार शामिल हैं.

इन बिंदुओं पर फैसला सुनाएगा कोर्ट

संविधान पीठ ने इस मामले में चार दिन सुनवाई की है. सभी पक्षकारों को लिखित दलीलें देने के लिए पांच दिनों की मोहलत संविधान पीठ ने दी.

– सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या पीएम, सीजेआई और विपक्ष के नेता के एक कॉलेजियम के द्वारा सीईसी और ईसी की नियुक्ति हो?

– सीईसी और ईसी को समान संरक्षण और हटाने की सामान्य प्रक्रिया हो?

– सुप्रीम कोर्ट, लोकसभा और राज्यसभा जैसे ही ईसीआई को नियम बनाने की शक्ति दी जाए, ईसीआई के लिए स्वतंत्र सचिवालय और बजट हो?

– तीनों आयुक्तों को समान अधिकार मिले यानी CEC के अधिकार बाकी दोनों को भी हों?

– जरूरत पड़ने पर आयुक्तों को भी हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया अपनाई जाए?

नियुक्ति का जानना चाहते हैं आधार

जस्टिस रस्तोगी ने कहा कि कभी-कभी तेजी से आगे बढ़ना संभव होता है लेकिन सवाल यह है कि 15 मई से यह वैकेंसी थी तो जब मामला विचाराधीन है तो नियुक्त करने में इतनी जल्दबाजी क्यों की गई. उन्होंने एजी से कहा कि आप पैनल के होने को सही ठहरा सकते हैं लेकिन कानून और न्याय मंत्री के नोट के संदर्भ में हम इस चयन का आधार जानना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि यह प्रतिकूल नहीं है. हम जानना चाहते हैं कि क्या व्यवस्था कायम है और प्रक्रिया ठीक काम कर रही है, डेटाबेस सार्वजनिक डोमेन में है और कोई भी इसे देख सकता है?

इस दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि विधि और न्याय मंत्रालय ही संभावित उम्मीदवारों की सूची बनाता है, फिर उनमें से सबसे उपयुक्त का चुनाव होता है. इसमें प्रधानमंत्री की भी भूमिका होती है.

वहीं जस्टिस जोसेफ ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने यह स्पष्ट किया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल छह साल का होना चाहिए. यह किसी विजन के साथ किया गया था. उन्होंने कहा कि हमें बताएं कि कैसे कानून और न्यायमंत्री डेटा बेस से इन 4 नामों को चुनते हैं और फिर प्रधानमंत्री नियुक्ति करते हैं? आपको हमें बताना होगा कि मानदंड क्या है?

क्या आयोग ने कभी पीएम पर एक्शन लिया है?

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बुधवार को निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता पर सवाल उठाते हुए पूछा था कि कभी किसी पीएम पर आरोप लगने पर क्या आयोग ने उनके खिलाफ एक्शन लिया है? पीठ ने सरकार से कहा कि आप निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया हमें समझाएं. हाल ही में आपने एक आयुक्त की नियुक्ति की है. अभी तो आपको सब याद होगा. किस प्रक्रिया के तहत आपने उनको नियुक्त किया है?

अगर खामी है तो सुधार करना लाजिमी है

जस्टिस केएम जोसफ के बाद अजय रस्तोगी ने भी निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि आपने इसकी न्यायपालिका से तुलना की है. न्यायपालिका में भी नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव आए. मौजूदा सिस्टम में अगर खामी हो तो उसमें सुधार और बदलाव लाजिमी है. सरकार जो जज और सीजेआई की नियुक्ति करती थी तब भी महान न्यायाधीश बने. लेकिन प्रक्रिया पर सवालिया निशान थे. प्रक्रिया बदल गई.

सुनवाई शुरू होने के तीन दिन के भीतर नियुक्ति

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अरुण गोयल के चयन से संबंधित मूल फाइल को अदालत में पेश करने को कहा था. कोर्ट ने कहा था कि वह जानना चाहता है कि उनकी नियुक्ति में कोई HANKY-PANKY तो नहीं हुई है. यानी कि इस नियुक्ति में कोई गड़बड़झाला तो नहीं हुआ है. 

कोर्ट ने पिछली सुनवाई में यह टिप्पणी की थी कि सुनवाई शुरू होने के तीन दिन के भीतर ही नियुक्ति की गई है. नियुक्ति प्रक्रिया पर आपत्ति दर्ज कराते हुए अर्जी दाखिल करने के बाद ये नियुक्ति की गई है.

बेंच ने कहा कि हम तो बस ये जानना चाहते हैं कि नियुक्ति के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई? अगर ये नियुक्ति कानूनी तौर से सही है तो फिर घबराने की क्या जरूरत है? उचित होता अगर अदालत की सुनवाई के दौरान नियुक्ति ना होती.

Related posts