35 साल में कई बार टूटी BKU, लेकिन ‘टिकैत’ के सामने टिक नहीं पाया कोई संगठन – Aaj Tak

स्टोरी हाइलाइट्स

  • भारतीय किसान यूनियन से एक दर्जन संगठन निकलकर बने
  • गुलाम जौला से लेकर भानू प्रताप सिंह तक के नाम शामिल
  • टिकैत बंधु खिलाफ राजेश सिंह चौहान ने किया बगावत

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ राजनीतिक मोर्चा खोलना टिकैत बंधुओं को महंगा पड़ गया. भारतीय किसान यूनियन दो गुटों में बंट गई है. किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत से लेकर राकेश टिकैत तक कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहने वाले नेताओं ने किसान यूनियन से अलग भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) नाम से अपना संगठन बना लिया. यह पहला अवसर नहीं है जब किसान यूनियन में टूट हुई हो बल्कि अपने 35 साल के इतिहास में करीब एक दर्जन बार बगावत हो चुकी है और नाराज नेता भाकियू के नाम से या मिलता-जुलता अपना संगठन बना चुके हैं, लेकिन किसान यूनियन का अपना वजूद कायम रहा. 

1987 को हुआ था भाकियू का गठन

एक मार्च 1987 को महेंद्र सिंह टिकैत ने किसानों के मुददे को लेकर भारतीय किसान यूनियन का गठन किया था. इसी दिन ही शामली के करमूखेड़ी बिजलीघर पर पहला धरना शुरू किया. इस धरने में हिंसा हुई, तो आंदोलन उग्र रूप ले लिया और पीएसी के सिपाही और एक किसान की गोली लगने से मौत हो गई. इस दौरान पुलिस के वाहन फूंक दिए गए. इसके बाद में बिना हल के धरना समाप्त करना पड़ा. 

17 मार्च 1987 को भाकियू की पहली बैठक हुई, जिसमें निर्णय लिया गया कि भाकियू एक गैर-राजनीतिक दल के रूप में किसानों की लड़ाई को हमेशा लड़ेगी. महेंद्र सिंह टिकैत को बालियान खाप से लेकर गठवाला खाप मुस्लिम किसान का पूरा समर्थन मिला. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति लहर से कांग्रेस उस समय देश में अधिकांश राज्यों और केंद्र में भारी बहुमत से सत्ता में थी. ऐसे में किसान आंदोलन से उभरे भाकियू नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत खुद को बड़े किसान नेता के रूप में स्थापित कर ले गए थे. 

किसान यूनियन से में पहली बार टूट हुई

भारतीय किसान यूनियन देश में किसानों का सबसे बड़ा संगठन माना जाता है, लेकिन आज किसान यूनियन के नाम से कई संगठन हैं. एक समय महेंद्र सिंह टिकैत की एक आवाज पर किसान दिल्ली से लेकर लखनऊ तक की सत्ता हिला देने की ताकत रखते थे. महेंद्र सिंह टिकैत एक नहीं कई बार केंद्र और राज्य को अपनी मांगों के आगे झुकाया और देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को किसानों के पक्ष में घोषणा करने के लिए सिसौली आने पर मजबूर किया, लेकिन किसान यूनियन ने जिस तेजी से बुलंदी को छुआ, उसी तेजी से संगठन में बिखराव भी शुरू हो गया था.  

भारतीय किसान यूनियन के गठन के दो महीने के बाद ही जून 1987 में चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के साथ देशखाप के चौधरी सुखबीर सिंह से विवाद हुआ था. इसके बाद सुखबीर सिंह ने खुद को भाकियू से अलग कर लिया था. अक्टूबर 1988 में जब भाकियू के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने दिल्ली के बोट क्लब का धरना समाप्त किया तो उस समय भी भाकियू में उनके खिलाफ जमकर आवाज उठी थी और कई नेताओं ने भाकियू से अलग राह पकड़ी थी. हरपाल बिलारी जैसे नेताओं ने मुरादाबाद में अलग संगठन बनाए. 

भानू प्रताप सिंह बगावत का बिगुल फूंका

महेंद्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे तो उत्तर प्रदेश में संगठन की कमान एटा के रहने वाले भानु प्रताप सिंह के हाथों में हुआ करती थी. टिकैत और भानु प्रताप की जोड़ी किसानों की एक मजबूत आवाज बनकर खड़े हुए थे. इसी का नतीजा था कि चौधरी चरण सिंह के बाद महेंद्र सिंह टिकैत ने किसान कामगार नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई तो उसकी कमान भानु प्रताप सिंह को ही सौंपी थी. 

पहले ही चुनाव में पार्टी के 14 विधायक जीतकर आए थे, लेकिन इसी के बाद टिकैत ने पार्टी की कमान चौधरी अजित सिंह को सौंप दी. इसके चलते भानु प्रताप सिंह नाराज होकर आठ साल तक घर बैठे रहे. साल 2006 में महेंद्र सिंह टिकैत ने भानू प्रताप सिंह क मनाकर दोबारा से भारतीय किसान यूनियन में लेकर आए और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष फिर से बना दिया. इसके बाद 2008 में राकेश टिकैत ने इलाहाबाद की बैठक में भानू प्रताप पर आरोप लगाया, जिसके बाद उन्होंने भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट) नाम से अपना अलग संगठन बना लिया. 

अंबावत से लेकर हरिकिशन मलिक तक 

भानुप्रताप सिंह ने भाकियू भानु के नाम से अलग संगठन बनाया तो हरियाणा भाकियू के अध्यक्ष रह चुके ऋषिपाल अंबावता ने भी भाकियू अंबावता के नाम से अलग संगठन बना लिया था. भाकियू नाम से देश में आज कई संगठन चल रहे हैं यूपी से लेकर दिल्ली और पंजाब, हरियाणा तक दर्जनों किसान संगठन किसान यूनियन से निकल बने हैं. भाकियू (तोमर) संगठन भी किसान यूनियन से निकल बनी है, जिसके अध्यक्ष संजीव तोमर हैं. राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन का गठन भाकियू से अलग होकर चौधरी हरिकिशन मलिक ने किया था. 

गुलाम मोहम्मद जौला ने बनाया था संगठन

मुजफ्फरनगर दंगे के बाद पश्चिम यूपी में बड़े मुस्लिम किसान नेता गुलाम मोहम्मद जौला ने भी भारतीय किसान यूनियन से खुद को अलग कर लिया था. इसके बाद उन्होंने भारतीय किसान मजदूर मंच का गठन किया था. महेंद्र सिंह टिकैत के दौर में गुलाम मोहम्मद जौला उनके राइट हैंड माने जाते थे. किसान यूनियन से अलग होकर राज किशोर पिन्ना ने भी भारतीय किसान यूनियन (सर्वे) का गठन किया था. 

मुजफ्फरनगर के ठाकुर किसान नेता पूरण सिंह ने किसान यूनियन से अपना नाता तब तोड़ा जबकि संगठन की कमान नरेश टिकैत के हाथों में सौपी गई. पूरण सिंह ने भारतीय किसान संगठन नाम से अपना संगठन चला रहे हैं. ऐसे ही वीरेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय किसान यूनियन नाम से संगठन बनाया तो किशनपाल मलिक ने आम किसान संगठन नाम से अलग संगठन बना रखा है. 

टिकैत के करीबियों ने ही कर दी बगावत

गठवाला खाप के चौधरी राजेंद्र सिंह मलिक की अध्यक्षता और किसान नेता अनिल तालान के संचालन के बीच रविवार को लखनऊ में भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक का गठन किया गया, जिसका अध्यक्ष राजेश सिंह चौहान को बनाया गया. इसके अलावा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मांगेराम त्यागी, राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक, युवा प्रदेश अध्यक्ष चौधरी दिगंबर और प्रदेश अध्यक्ष हरिनाम सिंह वर्मा बनाए गए हैं. ये सभी सदस्य भारतीय किसान यूनियन में किसी न किसी अहम पद पर थे, जिन्होंने टिकैत बंधुओं के खिलाफ कदम उठाकर नया राजनीतिक संगठन बनाया. धर्मेंद्र मलिक और दिगंबर सिंह को राकेश टिकैत के सबसे करीबी नेताओं में गिना जाता था और वो साये की तरह उनके साथ रहते थे. 

नए संगठन के अध्यक्ष बने राजेश चौहान ने कहा कि भारतीय किसान यूनियन अपने किसानों के मूल मुद्दों से भटक गई और अब राजनीति करने लगी है. राकेश और नरेश टिकैत दोनों ही भाई राजनीति से प्रेरित हैं. इसीलिए भारतीय किसान यूनियन अराजनैतिक बनाने की आवश्यकता महसूस हुई. हम किसी सियासी दल से नहीं जुड़ेंगे और यह संगठन केवल किसान हित में काम करेगा. हम महेंद्र सिंह टिकैत के मार्ग पर चलने वाले हैं, हम अपने सिद्धांतों के विपरीत नहीं जाएंगे. 

महेंद्र सिंह टिकैत के द्वारा गठित भारतीय किसान यूनियन से अलग होकर अब तक एक दर्जन से ज्यादा किसान संगठन बन चुके हैं, लेकिन सियासी तौर पर पहचान भारतीय किसान यूनियन की रही है. ऐसे में राजेंद्र सिंह मलिक, राजेश सिंह चौहान और धर्मेंद्र मलिक के अगुवाई में एक बार फिर भारतीय किसान यूनियन से अलग संगठन बना है, लेकिन सियासी तौर पर ये अपनी पहचान किस तरह से स्थापित कर पाते हैं, ये देखना होगा?

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