राहुल गांधी की टीम में कन्हैया कुमार: कांग्रेस के करीब लाने का कौन है सूत्रधार? – News18 इंडिया

पटना/दिल्ली. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) परिसर में लगे कथित आपत्तिजनक नारों से लाइमलाइट में आए कन्हैया कुमार आज वर्तमान केंद्र सरकार के विरोध में उठने वाली आवाजों में से एक बड़ा नाम माने जाते हैं. वामपंथ की विचारधारा छोड़ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CP) के बड़े नेता के तौर पर मशहूर हो चुके कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) अब कांग्रेस की टीम का हिस्सा होने जा रहे हैं. माना जा रहा है कि भाकपा से दूर होने और कांग्रेस के निकट आने के कई कारण हैं. इनमें सबसे बड़ी वजह कन्हैया को अपने भविष्य की चिंता बताई जा रही है. कारण भाकपा का कोई बड़ा जनाधार न होना है. हालांकि, कन्हैया की कांग्रेस में एंट्री के खिलाफ पार्टी के भीतर भी कई विरोधाभास भी नजर आ रहे हैं. मनीष तिवारी (Congress Leader Manish Tiwary) जैसे बड़े कांग्रेसी इसके विरोध में बताए जा रहे हैं, लेकिन यह भी हकीकत ही है कि उन्हें कांग्रेस के करीब करने में मुख्य भूमिका निभाने वाले नेता भी कांग्रेसी ही हैं.

कांग्रेस के विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि कन्हैया कुमार को कांग्रेस के निकट लाने में सबसे बड़ी भूमिका विधायक शकील अहमद खान ने निभाई है. बताया जा रहा है कि कन्हैया से उनका अच्छा तालमेल है और उन्होने ही राहुल गांधी से कन्हैया कुमार की मुलाकात करवाई थी. दरअसल नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ आंदोलन में भी शकील बिहार में कन्हैया के साथ घूम रहे थे. हालांकि, इसमें चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का भी अहम रोल मनामा जा रहा है. दरअसल पीके की गाइडलाइन के तहत राहुल गांधी युवा नेताओं की नई टीम बना रहे हैं. उनमें कन्हैया की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है. माना जा रहा है कि कांग्रेस कन्हैया कुमार का यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में कई स्तरों पर  उपयोग करना चाहती है.

इनकी लीडरशिप में कन्हैया का भाकपा में बढ़ता गया कद!
बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कन्हैया कुमार ने बिहार के बेगूसराय से भाकपा की टिकट पर चुनाव लड़ा था. हालांकि उन्हें करीब 4 लाख 71 हजार के बड़े अंतर से भाजपा के गिरिराज सिंह से हार का सामना करना पड़ा था. सियासी जानकारों का मानना है कि हार के बावजूद कन्हैया कुमार ने राजनीति में अपना एक मुकाम तो बना ही लिया था. भाकपा के नेताओं की मानें तो कन्हैया को लोकसभा चुनाव लड़वाने में बिहार भाकपा के तत्कालीन सचिव सत्यनारायण सिंह भमिका थी. उनके रहते ही कन्हैया को भाकपा की केंद्रीय समिति का सदस्य बनाया गया था. जाहिर है कम उम्र के बावजूद यह बहुत बड़ी राजनीतिक उपलब्धि थी. हालांकि, कोरोना संक्रमण से पीड़ित होने के बाद सत्यनारायण सिंह का निधन हो गया और इसके साथ ही कन्हैया कुमार की पूछ भी भाकपा में कम होती चली गई .

कन्हैया कुमार ने अपनी मूल पार्टी भाकपा से क्यों दूरी बना ली?
इसको लेकर कई तरह की बातें सामने आ रही हैं. यह जानकारी सामने आ रही है कि सत्यनारायण सिंह के देहांत के बाद बाद कन्हैया पार्टी में अलग-थलग पड़ने लगे थे. इसके लिए जहां स्थानीय (बिहार प्रदेश व बेगूसराय) नेताओं से कन्हैया कुमार के खराब रिश्ते जिम्मेदार हैं. इसके साथ ही हैदराबाद में डी राजा की उपस्थिति में भाकपा की राष्ट्रीय कमेटी ने उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया था. भाकपा में इसे बड़ी सजा मानी जाती है. कन्हैया को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने कांग्रेस की राह पकड़ ली.

कन्हैया कुमार को अपने राजनीतिक भविष्य का था डर!
कन्हैया की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी बड़ी वजह मानी जा रही है. सियासी जानकार बताते हैं कि कन्हैया को लगता है कि भाकपा का दायरा छोटा है और वह बिहार या राष्ट्रीय स्तर पर सत्ता के केंद्र में नहीं आ सकती है. वहीं, कांग्रेस पार्टी का पूरे देश में विस्तार है और इसमें ही भाजपा का विकल्प बनने की कूवत है. ऐसे में भाकपा जैसी पार्टी में रहकर अपने राजनीतिक भविष्य को सीमित नहीं करना चाहते हैं. बताया तो यह भी जा रहा है कि कन्हैया इसकी तैयारी बहुत पहले से कर रहे थे.

पीके की हामी और कन्हैया की एंट्री का ये है कनेक्शन!
माना जा रहा है कि यही वजह रही है कि कन्हैया कुमार ने अब तक भाजपा संग सरकार चलाने वाले सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ कभी भी अपशब्द का प्रयोग नहीं किया है. बीते वर्ष उन्होंने सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात भी की थी. इस बीच कांग्रेस भी अपने लिए चेहरे की तलाश में थी जो बिहार में कांग्रेस का फेस बन सके. यही वजह रही कि कन्हैया को कांग्रेस की ओर से लगातार ऑफर किया जा रहा था. सूत्र बताते हैं कि शकील अहमद खान के कारण ही कन्हैया ने राहुल गांधी से भी मुलाकात की थी. इसके बाद पीके जैसे ही हामी भरी कि कन्हैया की कांग्रेस में एंट्री कराने की कहानी पूरी हो गई.

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