अफगान में तालिबान राज से पाक को ‘मौका’, चीन की खिल गईं बाछें, रूस-ईरान मन ही मन खुश, समझें कैसे और क्यों – Hindustan

अफगानिस्तान में अब पूरी तरह से तालिबान का कब्जा हो गया है। अशरफ गनी देश छोड़कर संयुक्त राष्ट्र अमीरात भाग चुके हैं और 15 अगस्त से ही तालिबानियों ने काबुल पर कब्जा जमा रखा है। फिलहाल, अफगानिस्तान में अफरा-तफरी का माहौल है और उसका भविष्य अनिश्चतिताओं से भरा दिख रहा है। अफगानिस्तान में 20 साल बाद तालिबानी राज की वापसी से एक ओर जहां कई देश चिंता में डुबे हुए हैं, वहीं कुछ देसों की बाछें खिल गई हैं। पाकिस्तान जहां अफगानिस्तान में तालिबान राज को मौके के रूप में देख रहा है, वहीं रूस और ईरान मन ही मन खुश हो रहे हैं। तालिबान के सहारे चीन तो वैतरणी ही पार करना चाहता है। यही वजह है कि शुरू से ही पाकिस्तान, चीन और रूस तालिबान के समर्थन में दिख रहे हैं। तो चलिए जानते हैं आखिर ये देश अफगानिस्तान में तालिबानी राज की वापसी से इतने खुश क्यों है।

तालिबान के आने से चीन की क्यों खिल गई हैं बांछें
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की खबर सुनकर जिस चीन की बांछें खिल गई थीं, अब अफगान में तालिबान राज से उसकी खुशी दोगुनी हो गई है। अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन कर रहे चीन को अपना बड़ा फायदा दिख रहा है, क्योंकि अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी से चीन की सबसे बड़ी टेंशन भी खत्म हो गई है। तालिबान ने भरोसा दिलाया है कि शिनजियांग प्रात में उइगर इस्लामिक आतंकवाद को बढ़ावा नहीं देगा। बीते दिनों तालिबानी प्रतिनिधिमंडल ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी इन से तियांजिन में मुलाकात की थी और यह भरोसा दिलाया था कि वह अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल उइगुर चरमपंथियों के अड्डे के तौर पर नहीं होने देगा। इसके अलावा चीन को मध्य एशिया तक पहुंचने का अफगानिस्तान सबसे बेहतर जरिया दिख रहा है। चीन की मंशा अफगानिस्‍तान को भी चाइना-पाकिस्‍तान आर्थिक कॉरिडोर का हिस्‍सा बनाने की है। चीन बेल्ट एंड रोड एनीशिएटिव के तहत अफगानिस्तान में निवेश करने की फिराक में है। चीन अफगानिस्तान को अपना बड़ा मार्केट के तौर पर भी देख रहा है। साथ ही अफगान के रास्ते मध्य एशिया तक पहुंच स्थापित करके अमेरिकी वर्चस्व को भी खुली चुनौती देना चाहता है। 

पाकिस्तान क्यों गा रहा ‘मौका-मौका’
अफगानिस्तान में तालिबान की 20 सालों बाद वापसी हुई है। पाकिस्तान इसे मौके के रूप में देख रहा है और अफगानिस्तान में तालिबान राज से सबसे अधिक खुश वही नजर आ रहा है और उसकी वजह है- भारत। चूंकि तालिबान एक आतंकी संगठन है और पाकिस्तान शुरू से ही आतंक को बढ़ावा देता रहा है, ऐसे में पाकिस्तान की मंशा तालिबान की मदद से भारत के खिलाफ अफगान की धरती का इस्तेमाल करने की होगी। इसके अलावा, पाकिस्तान की खुशी की एक वजह यह भी है कि भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते काफी बेहतर रहे हैं। जाहिर तौर पर अशरफ गनी सरकार और भारत सरकार के बीच की नजदीकियों से पाकिस्तान खुश नहीं था। लोकतांत्रित सरकार रहते पाकिस्तान कभी अफगान की धरती का इस्तेमाल भारत में आतंकवाद के लिए नहीं कर सकता था, इसलिए अब पाकिस्तान को वह मौका मिल गया है, जिसकी ताक में वह दशकों से था। 

ईरान के लिए दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली स्थिति
वैसे तो अफगानिस्तान में तालिबान के राज से ईरान के लिए मुसीबत ही बढ़ गई है, क्योंकि ईरान में शरणार्थियों की भीड़ बढ़ती दिखाई दे रही है। ईरान में पहले से ही 35 लाख अफगान शरणार्थी रह रहे हैं। चूंकि दुनिया के कई देश अफगानिस्तान में तालिबान की एंट्री और अमेरिकी सेना की वापसी को अमेरिका की हार के तौर पर देख रहे हैं, ऐसे में अपने जानी दुश्मन की ऐसी हालत देखकर ईरान भी अपनी मुसीबत भूल मन ही मन खुश हो रहा है। अफगानिस्तान में तालिबानियों का कब्जा ईरान के लिए दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली स्थिति है। ईरान अब मान रहा है कि अफगानिस्तान में अमेरिका की हार हुई है और इसी वजह से वह खुश है। साथ ही अमेरिका के जाने से सेंट्रल साउथ एशिया में जो ब्लॉक खाली हुआ है, उसे चीन, पाकिस्तान और रूस के मिलकर भरने की कोशिश होगी। यही वजह है कि जब रविवार को तालिबान का काबुल पर कब्जा हुआ था तो ईरान ने कहा था कि अमेरिका की हार से स्थायी शांति की उम्मीद जगी है।

रूस क्यों हो रहा मन ही मन खुश
एक समय था, जब अमेरिका के कहने पर तालिबान ने ही रूस को खदेड़ा था, मगर बीते कुछ दशकों में हालात काफी बदलते गए और अब स्थिति यह है कि रूस और तालिबान दोस्त नजर आ रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि अमेरिका से तनातनी की वजह से अफगान में तालिबान की वापसी में रूस की भी भूमिका रही है। दोनों के बीच की शुरुआती दुश्मनी के बाद अब रिश्ते दोस्ती में बदलते दिख रहे हैं। शीत युद्ध के दौर से ही अमेरिका, सोवियत संघ का विरोधी था। उसने उसके सोवियत की ताकत को कमजोर करने के लिए मुजाहिद्दिनों का सहारा लिया जो बाद में तालिबान के नाम से जाने गए। हालांकि, बाद में तालिबान अमेरिका के लिए सिरदर्द बन गया। मगर जब क्राइमिया पर रूसी कब्जे के बाद अमेरिका भड़क उठा। 2014 के बाद से रूस और अमेरिका में जहां तनातनी बढ़ती गई, वहीं रूस और चीन एक-दूसरे के पास आते गए। रूस की भी खुशी की वजह अफगानिस्तान से अमेरिका के रूप में ब्लॉक का खाली होना है। साथ ही रूस भी यहां निवेश करने की मंशा रख रहा है। 

 

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