OBC Aarakshan Sanshodhan Bill : Why States Are So Keen To Increase Quota Beyond Limit, What Will Be The Issues – Navbharat Times

नई दिल्‍ली
ओबीसी आरक्षण के मुद्दे ने संसद का माहौल ही बदल दिया। मॉनसून सत्र में पहली बार विपक्षी सदस्‍य हंगामा नहीं, बल्कि चर्चा में हिस्‍सा लेते नजर आए। मसला था संविधान संशोधन के जरिए ओबीसी में जातियों को शामिल करने की शक्ति राज्‍यों को देने का। मंगलवार को बिल लोकसभा से पास हो गया। जब चर्चा चल रही थी, तब विपक्ष के कई सदस्‍यों ने मांग उठाई कि आरक्षण पर लगा 50 प्रतिशत का कैप बढ़ा देना चाहिए। आखिर राजनीतिक दल आरक्षण की अधिकतम सीमा को क्‍यों बढ़ाना चाहते हैं? क्‍या वर्तमान व्‍यवस्‍था उन्‍हें ऐसा करने की अनुमति देती है? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानते हैं।

संविधान संशोधन बिल में क्‍या है?
संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021 के जरिए आरक्षण से जुड़ी व्‍यवस्‍था में बदलाव किया जाएगा। राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अपने हिसाब से सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) की लिस्‍ट तैयार करने की अनुमति मिल जाएगी।

पास होने के बाद क्‍या बदल जाएगा?
राज्‍यों को फिर से ओबीसी जातियों की लिस्‍ट तैयार करने का अधिकार मिलेगा। इसके लिए संविधान के अनुच्‍छेद 342ए, 338बी, 366 में संशोधन किया गया है। बिल पास होने के बाद राज्‍य सरकारें अपने हिसाब से जातियों को ओबीसी कोटे में शामिल कर सकेंगी। हालांकि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत ही रहेगी। इसे खत्‍म करने की मांग जोरदार ढंग से उठी है।

ब‍िल को लेकर क्‍या है पार्टियों का रुख?
संसद में सरकार को यह विधेयक पारित कराने में मुश्किल नहीं आएगी। कारण, अधिकतर राजनीतिक दल इसके पक्ष में हैं। कांग्रेस समेत 15 विपक्षी दलों ने तो सामने आकर कहा है कि वे इस बिल का समर्थन करेंगी। अगले साल उत्‍तर प्रदेश, पंजाब, उत्‍तराखंड, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव हैं, वहां ओबीसी वोट्स जीत-हार तय करते हैं, ऐसे में विपक्षी नेता बिल पारित करने में खलल नहीं डालना चाहेंगे। यही वजह है कि बिल पर ठीक से चर्चा हो पा रही है।

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50 फीसदी का कैप बढ़ाइए, संसद में उठी मांग
मंगलवार को लोकसभा में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने ऐसी ही मांग रखी। उन्‍होंने कहा कि ‘अच्छी बात है कि सरकारों को मौका मिल रहा है कि वह ओबीसी जातियों को आरक्षण की लिस्ट में शामिल कर पाएंगे। उन्‍होंने कहा, ‘आप कह रहे हैं कि यह संसद छोटी पड़ रही है, इसलिए सेंट्रल विस्टा बनाना है हमें ताकि सभी आराम से बैठ सकेंगे फिर आरक्षण को लेकर मंडल कमीशन की मूल भावना से खिलवाड़ कर रहे हैं।’ कई अन्‍य सदस्‍यों ने भी यह लिमिट बढ़ाने की डिमांड की।

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अखिलेश यादव, सपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष और सांसद

किन-किन दलों ने आरक्षण सीमा हटाने की मांग की?
कांग्रेस, बीजू जनता दल (BJD), शिव सेना, समाजवादी पार्टी (SP), बहुजन समाज पार्टी (BSP), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP), जनता दल यूनाइटेड (JDU), अपना दल, तेलुगु देशम पार्टी (TDP) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) समेत कुछ अन्य दलों ने आरक्षण की 50% सीमा खत्म करने की मांग की।

क्या राज्यों को आरक्षण सीमा हटाने का अधिकार दिए जाने की मांग भी उठी?
हां, शिव सेना के सांसद विनायक राउत ने यह मांग उठाई, लेकिन उन्हें सदन की सहमति नहीं मिल सकी। उनके संशोधन प्रस्ताव के पक्ष में सिर्फ 71 सांसदों ने वोट डाले।












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आरक्षण सीमा बढ़ाने पर क्‍या कह रही मोदी सरकार?
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने बेहद संभलकर बयान दिया है। मंगलवार को उन्‍होंने कहा कि कई लोकसभा सदस्‍यों ने आरक्षण सीमा बढ़ाने की जो मांग रखी है, उसपर ध्‍यान से विचार होना चाहिए क्‍योंकि यह संवैधानिक मसला है। बिल पर जवाब देते हुए उन्‍होंने कहा कि सरकार सदस्‍यों की इच्‍छा से वाकिफ है। कुमार ने लोकसभा में बहस के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 50% की सीमा 30 वर्ष पहले तय की थी और तब से वह बार-बार इसे बनाए रखने पर जोर दे रहा है। इसलिए, कोई मांग करते हुए उसकी संवैधानिकता और कानूनी पहलुओं पर गौर करना चाहिए।

आरएसएस ने आरक्षण पर मंगलवार को क्या कहा?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने दो-टूक कहा कि वह और उनका संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ‘आरक्षण के पुरजोर समर्थक हैं।’ उन्होंने कहा, ‘सामाजिक सौहार्द और सामाजिक न्याय हमारे लिए राजनीतिक रणनीतियां नहीं हैं। ये दोनों हमारे लिए आस्था की वस्तु हैं।’ उन्‍होंने कहा, ‘भारत का इतिहास दलितों के इतिहास से अलग नहीं है। उनके इतिहास के बिना भारत का इतिहास अधूरा है।’

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इंदिरा साहनी केस में तय हो चुकी अधिकतम आरक्षण की सीमा
1992 में, सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी केस में ऐतिहासिक फैसला दिया था। ‘मंडल जजमेंट’ के नाम से मशहूर फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि रिजर्वेशन की लिमिट 50 फीसदी की सीमा क्रॉस नहीं कर सकती। SC के मुताबिक, संविधान का अनुच्छेद-16 (4) कहता है कि पिछड़ेपन का मतलब सामाजिक पिछड़ेपन से है। शैक्षणिक और आर्थिक पिछड़ेपन, सामाजिक पिछड़ेपन के कारण हो सकते हैं लेकिन अनुच्छेद-16 (4) में सामाजिक पिछड़ेपन एक विषय है। अगर रिजर्वेशन में कोई सरकार 50 फीसदी की सीमा को पार करती है तो वह जूडिशल स्क्रूटनी के दायरे में होगा।

आरक्षण की सीमा क्‍यों बढ़ाना चाहते हैं राज्‍य?
राज्‍यों के भीतर सत्‍तारूढ़ राजनीतिक दल अपने समीकरणों को और मजबूत करना चाहते हैं। अलग-अलग राज्‍यों में अलग-अलग जातियों को आरक्षण के दायरे में लाने की मांग उठती रही है। कुछ राज्‍यों ने तो इस बारे में पहले भी फैसले किए थे। महाराष्‍ट्र में मराठा, हरियाणा में जाट, कर्नाटक में लिंगायत, राजस्‍थान में गुर्जर, गुजरात में पटेल को आरक्षण देने के रास्‍ते में SC का फैसला रुकावट बनता है। हालांकि कई राज्‍यों में अलग प्रावधान भी हैं जिनके बारे में आगे समझेंगे।

10% EWS आरक्षण का मसला क्‍या?
2019 में मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण देने का विधेयक पारित कराया। इसके बाद आरक्षण की अधिकतम सीमा 60 फीसदी होने का रास्‍ता साफ हुआ। हालांकि कानूनी जानकार बताते हैं कि जूडिशल स्क्रूटनी में ऐसे फैसले को टिकना मुश्किल है। इसी साल मराठा आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जब राज्‍यों से पूछा तो कई सरकारों ने कहा कि वे 50 फीसदी सीमा के दायरे से बाहर निकलना चाहती हैं।

कौन-कौन से राज्‍य बढ़ाना चाहते हैं आरक्षण?

  • मंशा तो बहुतों की है। महाराष्‍ट्र के भीतर मराठा को आरक्षण का मसला सुप्रीम कोर्ट में है। अदालत ने मराठों को ओबीसी में शामिल कर आरक्षण देने के फैसले पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि राज्यों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों को नौकरी और प्रवेश में आरक्षण देने का अधिकार नहीं है। इसी के बाद नया विवाद खड़ा हुआ जिसे शांत करने को यह बिल लाया गया है।
  • राजस्‍थान की कांग्रेस सरकार भी चाहती है कि 50 फीसदी से ज्‍यादा आरक्षण हो। सुप्रीम कोर्ट में सरकार अपना पक्ष मजबूती से रखने की तैयारी में है। राज्‍य में गुर्जर समुदाय को अलग से आरक्षण दिए जाने की मांग लंबे वक्‍त से चली आ रही है, मगर उसे अदालती मंजूरी ना मिल सकी।
  • तमिलनाडु के रिजर्वेशन ऐक्‍ट में 69 प्रतिशत आरक्षण की बात है जिसे लेकर अदालत में याचिका भी लगाई जा चुकी है।
  • कर्नाटक की भाजपा सरकार ने इसी सोमवार को कैबिनेट मीटिंग में फैसला किया कि 50% आरक्षण के दायरे को बढ़ाया जाए। यहां पर लिंगायत, वाल्‍मिकी और कुरूबा के लिए आरक्षण की मांग होत रही है।
  • झारखंड सरकार भी सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण सीमा बढ़ाने की मांग रखेगी।












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कहां फंसेगा पेच?
अधिकतम 50% आरक्षण की सीमा को कई बार राज्‍यों ने पार करने की कोशिश की है, मगर सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी नहीं दी। राजस्‍थान सरकार ने स्‍पेशल बैकवर्ड क्‍लास को रिजर्वेशन देते समय यह सीमा पार की थी जिसे SC ने खारिज कर दिया था। 2014 में महाराष्‍ट्र से जुड़े एक मामले में भी सरकार के फैसले पर रोक लगाने वाले हाई कोर्ट के फैसले पर SC ने दखल नहीं दिया था।

संवैधानिक मामलों के जानकार व लोकसभा के रिटायर सेक्रेटरी जनरल पी.डी.टी. अचारी ने नवभारत टाइम्‍स से बातचीत में कहा था कि ‘अगर 50 फीसदी सीमा पार करते हुए रिजर्वेशन दिया जाता है और इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाता है या फिर मामले को 9वीं अनुसूची में रखा जाता है कि उसे जूडिशल स्क्रूटनी के दायरे से बाहर किया जाए तो भी मामला जूडिशल स्क्रूटनी के दायरे में होगा। दरअसल 9वीं अनुसूची में रखकर ऐसा कोई कानूनी या कानूनी संशोधन नहीं किया जा सकता जो संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर को डैमेज करता हो।’

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