हाइलाइट्स
- नीट की परीक्षा में अखिल भारतीय कोटे से ओबीसी समुदाय को 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला
- बीजेपी के इस फैसले का राजनीतिक महत्व भी, खासकर यूपी में जहां अगले साल चुनाव होने वाले हैं
- यूपी में पिछड़ा वर्ग की आबादी 40 फीसदी से अधिक, समुदाय की नाराजगी को दूर करने के लिए कदम
लखनऊ
केंद्र सरकार ने नीट की परीक्षा में अखिल भारतीय कोटे से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आर्थिक रूप से कमजोर तबके (ईडब्ल्यूएस) को आरक्षण देने का फैसला किया है। इसके तहत अब ग्रैजुएशन और पोस्ट ग्रैजुएशन सीटों पर नामांकन के लिए केंद्रीय कोटे में ओबीसी को 27 फीसदी और ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण मिलेगा। यह व्यवस्था इसी शैक्षणिक सत्र से शुरू होगी। बीजेपी के इस फैसले का राजनीतिक महत्व भी है, खासकर यूपी में, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
मेडिकल शिक्षा में ओबीसी आरक्षण की कवायद लंबे समय से चल रही थी। अभी कुछ दिन पहले ही मोदी कैबिनेट का विस्तार हुआ था जिसमें 27 ओबीसी मंत्रियों को शामिल किया गया। जाहिर है कि अगले चुनाव से पहले मोदी और बीजेपी का फोकस पिछड़े वर्ग पर है। पीएम मोदी खुद को भी पिछड़े समुदाय से ताल्लुक रखने वाला बताते आए हैं।
क्या है आरक्षण के फैसले का मकसद?
लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में कहते हैं, ‘नीट में आरक्षण का राजनीतिक मकसद पिछड़े वर्ग की नाराजगी को दूर करना है। तमिलनाडु से लेकर मध्य प्रदेश और बिहार में तेजस्वी यादव का लगातार दबाव था, तमिलनाडु में एमके स्टालिन का दबाव था। इसके अलावा यूपी में पिछड़ों के अलग-अलग समूह और राजनीतिक दल भी इसके लिए आंदोलन कर रहे थे जिसमें कांग्रेस प्रमुख थी।’
‘यूपी चुनाव को देखते हुए लिया गया फैसला’
सिद्धार्थ कलहंस बताते हैं, ‘यह फैसला खासतौर से अगले साल यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले लिया है, जहां 40 फीसदी से ज्यादा पिछड़े समुदाय की आबादी है। एक कारण और भी हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट में यह मुद्दा गया था और हो सकता है कि वहां से इस तरह के निर्देश आ जाते तो असहज स्थिति हो सकती थी, तो उस असहज स्थिति से बचने के लिए यह घोषणा पहले ही कर दी गई, ताकि इसका श्रेय भी लिया जा सके और यूपी चुनाव में इसे भुनाया जा सके।’
यूपी चुनाव में बीजेपी को इस फैसले से होगा फायदा?
वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि जिस तरह से बीजेपी ने नीट में पिछड़ों को आरक्षण देने के मुद्दे को हाइलाइट किया है उससे साफ है कि यूपी चुनाव में वह इसका फायदा लेने का प्रयास करेगी। साथ ही बीजेपी नहीं चाहेगी कि किसी और दल को इसका क्रेडिट मिले। इसकी शुरुआत हो भी गई है। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव हों या बीएसपी सुप्रीमो मायावती सभी इस फैसले में अपना योगदान दिखाने की जुगत में लग गए हैं।
सपा-बीएसपी-कांग्रेस में क्रेडिट लेने की होड़
बीजेपी के फैसले के बाद अखिलेश यादव ने ट्वीट किया, ‘सपा के आंदोलन के आगे अंततः आरक्षण विरोधी बीजेपी को झुकना ही पड़ा। बीजेपी ने लाख हथकंडे और चालें चलीं पर आखिर उसे मेडिकल में 27 फीसदी ओबीसी और 10 फीसदी इडब्ल्यूएस का सांविधानिक अधिकार देना ही पड़ा। ये सपा के सामाजिक न्याय के संघर्ष की जीत है। इस जीत के बाद हम 2022 भी जीतेंगे।’
वहीं मायावती ने ट्वीट करते हुए बीजेपी पर निशाना साधा। मायावती ने लिखा, ‘देश में सरकारी मेडिकल कालेजों की ऑल इंडिया की यूजी और पीजी सीटों में ओबीसी कोटा की घोषणा काफी देर से उठाया गया कदम। केंद्र सरकार अगर यह फैसला पहले ही समय से ले लेती तो इनको अबतक काफी लाभ हो जाता, किंतु अब लोगों को यह चुनावी राजनीतिक स्वार्थ हेतु लिया गया फैसला लगता है।’
बीएसपी सुप्रीमो ने लिखा, ‘वैसे बीएसपी बहुत पहले से सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी व ओबीसी कोटा के बैकलॉग पदों को भरने की मांग लगातार करती रही है, किंतु केंद्र औप यूपी सहित अन्य राज्यों की भी सरकारें इन वर्गों के वास्तविक हित और कल्याण के प्रति लगातार उदासीन ही बनी हुई हैं, यह अति दुःखद है।’
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस फैसले के लिए मद्रास हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद किया है। उन्होंने लिखा, ‘मद्रास हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को साधुवाद जिन्होंने मोदी सरकार को फटकार लगाई और उन्हें सभी मेडिकल और डेंटल कॉलेज में ऑल इंडिया कोटे के तहत ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने पर मजबूर दिया। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2007 में इसके लिए ऐतिहासिक कानून बनाया था, जिसे मद्रास हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के साथ अंतिम रूप दिया गया है।’
‘चुनाव के दवाब में बीजेपी ने लिया फैसला’
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अब्दुल हफीज गांधी ने एनबीटी ऑनलाइन से कहा, ‘ओबीसी समाज को आरक्षण मिलना चाहिए लेकिन यह देर से लिया गया फैसला है। समाजवादी पार्टी हमेशा सामाजिक न्याय की पक्षधर रही है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने नीट में ओबीसी समाज के लिए आरक्षण की वकालत की थी। अभी तक 11,000 डॉक्टर बनते ओबीसी समाज के लेकिन केंद्र की वजह से यह संभव नहीं हो पाया। साथ ही अगले साल यूपी में चुनाव भी होने हैं, ऐसे में लगता है कि बीजेपी ने दबाब में रहते हुए यह फैसला लिया।’
यूपी में पिछड़ा वर्ग की कितनी आबादी?
गौरतलब है कि यूपी में पिछड़े वर्ग की आबादी 40 फीसदी से अधिक है जोकि अन्य किसी समुदाय से सबसे ज्यादा है। इससे पहले 2017 के चुनाव में भी बीजेपी को प्रचंड जीत मिलने के पीछे ओबीसी समुदाय का मोदी का साथ देना रहा। इनमें से अधिक गैर-यादव समुदाय से आते हैं, जिन पर बीजेपी का लक्ष्य है। एक दिन पहले पिछड़े वर्ग के सांसदों ने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के नेतृत्व में पीएम मोदी से मुलाकात की थी। फिर उसके बाद पीएम के निर्देश पर इसकी कार्यवाही शुरू हुई और गुरुवार को पीएम मोदी ने इसकी घोषणा की।
‘एमपी-राजस्थान चुनाव में भी बीजेपी को होगा लाभ’
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस ने कहा, ‘इस फैसले का सबसे ज्यादा लाभ यूपी में होना है जहां अगले साल चुनाव है। उत्तराखंड और पंजाब में पिछड़ा वर्ग की इतनी आबादी नहीं है। इसलिए कहा जा सकता है कि यूपी में चुनाव को देखते हुए भी यह फैसला लिया गया है। इसके साथ ही एक साल बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव होने हैं, इन राज्यों में इसका लाभ मिलेगा।’
फैसले से कितने छात्रों को मदद?
मोदी सरकार का फैसला शैक्षणिक वर्ष 2021-22 से अंडर ग्रैजुएट और पोस्टग्रैजुएट मेडिकल/डेंटल कोर्स (एमबीबीएस, एमडी, एमएस, डिप्लोमा, बीडीएस, एमडीएस) में ये लागू हो जाएगा। केंद्र सरकार के इस फैसले से हर साल लगभग 5,550 छात्रों को लाभ होगा। केंद्रीय कोटे में स्नातक की सीटों पर 1,500 और पोस्ट ग्रैजुएट सीटों पर 2,500 छात्रों को ओबीसी कोटे से लाभ मिलेगा। इसी तरह आर्थिक रूप से कमजोर तबक के 550 छात्रों को गैजुएट और 1000 छात्रों को पोस्ट ग्रैजुएटकोर्स में लाभ मिलेगा।