राकेश अस्थाना: गुजरात कैडर के IPS, जो मोदी-शाह के रहे ‘भरोसेमंद’ – BBC हिंदी

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  • नई दिल्ली

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गुजरात कैडर के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी राकेश अस्थाना उन चुनिंदा अधिकारियों में शुमार किए जा सकते हैं, जिन्हें सिर्फ़ तीन सालों के अंतराल में ही पाँच अलग-अलग पदों पर नियुक्ति की गई है. प्रशासनिक सेवा के हलकों में इसे अप्रत्याशित ही माना जा रहा है.

मंगलवार को जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उन्हें दिल्ली पुलिस का कमिश्नर नियुक्त करने का आदेश जारी किया, तो ये उनकी पाँचवीं नियुक्ति थी. वो भी सेवानिवृत होने से सिर्फ़ चार दिनों पहले.

वर्ष 1961 में पैदा हुए राकेश अस्थाना, 31 जुलाई को सेवानिवृत हो रहे थे. लेकिन सरकार ने उन्हें एक साल का एक्सटेंशन दे दिया है.

वैसे वर्ष 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने केंद्र में सत्ता संभाली थी, तभी से क़यास लगाए जाने लगे थे कि उन्हें गुजरात से लाकर देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई के निदेशक के रूप में नियुक्त किया जाएगा.

थोड़ा समय लगा, लेकिन उनकी नियुक्ति सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर के रूप में हो गई. लेकिन उनके और तत्कालीन सीबीआई के निदेशक अलोक वर्मा के बीच विवाद इतना गहरा गया था कि आधी रात को केंद्रीय गृह मंत्रालय को दोनों के बीच हस्तक्षेप करना पड़ा और दोनों ही अधिकारियों को ज़बरन छुट्टी पर भेजना पड़ा.

इसके फ़ौरन बाद, उन्हें ‘ब्यूरो ऑफ़ सिविल एविएशन सिक्यूरिटी’ का महानिदेशक बनाया गया. फिर वर्ष 2020 में वो नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के महानिदेशक बने और फिर उन्हें सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया गया. सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक रहते हुए वो ‘एनसीबी’ के अतिरिक्त प्रभार में बने रहे.

अपनी कार्यशैली के लिए चर्चित राकेश अस्थाना तब सुर्ख़ियों में पहली बार आए, जब उनकी अधीनस्थ टीम ने धनबाद स्थित ‘खदान सुरक्षा महानिदेशालय’ में कार्यरत तत्कालीन महानिदेशक को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा था. इस स्तर के अधिकारी को रिश्वत लेते हुए पकड़ना अपने आप में पहला ऐसा मामला था.

लालू यादव से 6 घंटे की थी पूछताछ

1984 कैडर के पुलिस अधिकारी राकेश अस्थाना तब धनबाद में सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधी शाखा के एसपी थे.

फिर पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में हवाई जहाज़ से हथियार गिराए जाने की वारदात हुई. बात वर्ष 1994 की है. राकेश अस्थाना को इस रहस्यपूर्ण वारदात की जांच के लिए ‘स्पेशल फील्ड अफ़सर’ के रूप में तैनात किया गया था.

लेकिन जिस मामले ने उन्हें सबसे चर्चा के केंद्र में ला दिया, वो है अविभाजित बिहार में हुआ चारा घोटाला. इस मामले में राकेश अस्थाना ने अभियुक्त बनाए गए बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादाव से 6 घंटों तक पूछताछ की थी.

अस्थाना को उस समय एक “तेज़ तर्रार” युवा अधिकारी के रूप में ख्याति मिलनी शुरू हुई थी. जल्द ही चारा घोटाले की जांच ने पूरे देश की निगाहें उन पर ला दी. ये बात 1997 की है.

उसके बाद वे सीबीआई में ही कई सीढ़ियाँ चढ़ते गए और पहले उन्हें उप महानिरीक्षक बनाया गया और प्रोन्नति के बाद वो सहायक निदेशक बन गए.

राकेश अस्थाना

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गोधरा ट्रेन हादसे की जांच

लोक सेवा में मौजूद अधिकारियों का कहना है कि केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से जब अस्थाना अपने गृह कैडर गुजरात वापस लौटे, तो वहाँ से उनके करियर ने एक दूसरी करवट ले ली. कुछ अधिकारी इसे ‘यू-टर्न” की संज्ञा भी दे रहे हैं.

जानकार कहते हैं कि गुजरात वापस लौटते ही उनके रिश्ते सत्तारूढ़ दल के नेताओं से काफ़ी घनिष्ठ होते चले गए. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और वहाँ के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह उनकी कार्यशैली के कायल हो गए और उन्होंने अस्थाना पर भरोसा करना शुरू कर दिया.

गुजरात वापसी के बाद पहला बड़ा मामला, जिसने उन्हें फिर सुर्ख़ियों तक पहुँचाया, वो था गोधरा रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन में आग लगने की घटना की जांच का ज़िम्मा.

गुजरात सरकार ने गोधरा की घटना की जांच के लिए विशेष जांच टीम यानी स्पेशल इन्वेस्टिगेटिंग टीम (एसआईटी) का गठन किया था, जिसका नेतृत्व राकेश अस्थाना ने किया था. इस घटना में 59 कारसेवक मारे गए थे. उस वक़्त वो वडोदरा के रेंज पुलिस महानिरीक्षक के रूप में काम कर रहे थे.

राकेश अस्थाना बीएसएफ महानिदेशक भी रह चुके हैं

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अहमदाबाद बम धमाकों की जांच

फिर 2008 में अहमदाबाद में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों की जांच का ज़िम्मा भी अस्थाना को सौंपा गया. इन बम धमाकों में भी 56 लोग मारे गए थे.

अहमदाबाद के पास हुए चर्चित इशरत जहां के मुठभेड़ के विवादित मामले के सिलसिले में भी राकेश अस्थाना पर साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ के आरोप लगे थे. ये वारदात 2004 की है जब गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि उसने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से आए चार आतंकवादियों को मुठभेड़ में मार दिया है. इसमें मुंबई की रहने वाली इशरत जहां भी शामिल थीं.

लेकिन गुजरात उच्च न्यायलय की ओर से नियुक्त एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में मुठभेड़ को “फर्जी” बताया था. इसके बाद गुजरात पुलिस के कई अधिकारियों पर सीबीआई ने मामला दर्ज किया था. इस सिलसिले में आईपीएस अधिकारी सतीश वर्मा ने गुजरात उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी और आरोप लगाया था कि “गुजरात सरकार के प्रभाव में राकेश अस्थाना ने साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़” करने की कोशिश की थी.

वर्मा ने अपनी याचिका में ये भी आरोप लगाया था कि अस्थाना ने पुलिस के ‘फॉरेंसिक विभाग’ के एक अधिकारी पर ऐसा करने के लिए “दबाव डाला” था.

आसाराम बापू मामले की जांच का ज़िम्मा

वर्ष 2014 में उन्हें आसाराम बापू के मामले की जांच का ज़िम्मा सौंपा गया. इसी जांच के क्रम में उनके नेतृत्व में गुजरात पुलिस की टीम ने आसाराम बापू के बेटे और मामले के एक अन्य अभियुक्त नारायण साईं को हरियाणा से गिरफ़्तार किया था.

वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी को लोकसभा के चुनावों में भारी बहुमत मिला और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी. उसी साल अस्थाना को दिल्ली से बुलावा आ गया और उन्हें सीबीआई में पदस्थापित किया गया. फिर जल्द ही वो एजेंसी के स्पेशल डायरेक्टर बना दिए गए.

आलोक वर्मा

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जब सीबीआई निदेशक से ठनी

लेकिन जल्द ही उनके और एजेंसी के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा के बीच ठन गई. अस्थाना ने वर्मा के ख़िलाफ़ केंद्रीय सतर्कता आयोग को चिठ्ठी लिख कर कई आरोप लगाए, वहीं वर्मा के निर्देश पर अस्थाना के ख़िलाफ़ सीबीआई ने कथित भ्रष्टाचार से संबंधित मामले दर्ज किए.

इनमें से एक प्राथमिकी हैदराबाद के व्यवसायी सतीश सना के बयान पर दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि अस्थाना ने मांस का निर्यात करने वाले मोइन क़ुरैशी से रिश्वत ली थी. इन सभी मामलों को बाद में अदालत ने ख़ारिज कर दिया.

अस्थाना का नाम स्टर्लिंग बायोटेक कंपनी के मामले में तब जुड़ा, जब प्रवर्तन निदेशालय ने उनके निदेशकों के ठिकानों पर छापामारी की थी. कंपनी पर 5000 करोड़ रुपये के कर्ज़ के घोटाले का आरोप है.

जांच में आरोप लगे कि कंपनी के मालिक चेतन संदेसरा और नितिन संदेसरा ने राकेश अस्थाना के परिवार में हुई एक शादी के लिए सभी संसाधन मुफ़्त में उपलब्ध कराए थे. इस मामले की जांच में भी सबूत के अभाव में अस्थाना पर से सभी आरोप हटा लिए गए.

बैंक लोन घोटाले के संबंध में वडोदरा स्थित स्टर्लिंग बायोटेक के निदेशकों और साझेदारों के ख़िलाफ़ सीबीआई ने मामला दर्ज किया है, जबकि संदेसरा बंधुओं के बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने नाइजीरिया में शरण ले रखी है.

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