Sawan 2021 : सावन माह में हर किसी को करने चाहिए ये छोटा सा काम, शनि दशा से लेकर पितृ दोषों से मिलेगी मुक्ति – Hindustan

Sawan 2021 : सावन का पावन महीना शुरू हो गया है। सावन के महीने में भगवान शंकर की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। सावन माह भगवान शंकर को समर्पित होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन के महीने में भगवान शंकर का वास पृथ्वी लोक में होता है। भगवान शंकर की कृपा से सभी तरह के दोषों से मुक्ति मिल जाती है। शनि दोषों से लेकर पितृ दोषों से पीड़ित व्यक्ति को सावन के महीने में भगवान शंकर की पूजा- अर्चना जरूर करनी चाहिए। इस माह में हर व्यक्ति को शिवलिंग पर जल अर्पित करना चाहिए। भगवान शंकर को प्रसन्न करने का यह सबसे आसान उपाय है। सावन के महीने में रोजाना शिवलिंग पर जल अर्पित करें। ऐसा करने से भगवान शंकर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। जल अर्पित करने के साथ ही गोस्वामी तुलीसदास द्वारा रचित श्री रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

Sawan 2021 : आज से शुरू हो गया है सावन, नोट कर लें पूजा- विधि, नियम और शिव पूजा सामग्री की पूरी लिस्ट

  • श्री शिव रूद्राष्टकम

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
 
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
 
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
 
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
 
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
 
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
 
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
 
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
 
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।। 
 

॥  इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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