DNA ANALYSIS: Arunachal Pradesh के पास China की नई चाल, समझिए शी जिनपिंग की तिब्बत यात्रा की 5 बड़ी बातें – Zee News Hindi

नई दिल्ली: आज हम भारत और चीन की सीमा से सिर्फ 17 किलोमीटर दूर घटी एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय घटना का विश्लेषण करेंगे, जिसके बारे में आज पूरे देश को जानना चाहिए. ये भारत की सुरक्षा से जुड़ी आज की सबसे बड़ी खबर है.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का तिब्बत दौरा

खबर ये है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग बुधवार 21 जुलाई को अचानक भारत और चीन की सीमा के पास मौजूद तिब्बत के निंगची  (Nyingchi)  शहर पहुंचे. तिब्बत का ये शहर भारत के अरुणाचल प्रदेश से सिर्फ 17 किलोमीटर दूर है. ये खबर इसलिए अहम है क्योंकि, अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास चीन के राष्ट्रपति का पहुंचना भारत की सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी है. पिछले 30 वर्षों में ये पहला मौका है, जब चीन का कोई राष्ट्रपति तिब्बत पहुंचा है. शी जिनपिंग आखिरी बार वर्ष 2011 में चीन के उप-राष्ट्रपति के रूप में यहां आए थे.

शी जिनपिंग न सिर्फ चीन के राष्ट्रपति हैं, बल्कि वो चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी PLA के कमांडर इन चीफ भी हैं. भारत और चीन की सेना के बीच पिछले साल गलवान में जो कुछ हुआ उसकी यादें आज भी भारत के हर नागरिक के मन में ताजा है. इसलिए शी जिनपिंग के इस तिब्बत दौरे को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए.

भारत के लिए खड़ी हो सकती हैं मुश्किलें

तिब्बत का निंगची शहर अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है और अरुणाचल प्रदेश को चीन दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है, जबकि सच ये है कि लद्दाख की तरह अरुणचाल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है.

निंगची में ही चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर एक बांध बना रहा है. ब्रह्मपुत्र को चीन की भाषा में यारलुंग ज़ांग्बो (Yarlung Zangbo) कहा जाता है. इस नदी का उद्गम स्थल तिब्बत में कैलाश मानसरोवर के पास है. यहीं से निकलकर ये नदी निंगची पहुंचती है और फिर वहां से ये भारत के अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है.

पानी की मात्रा के हिसाब से ये दुनिया की 9वीं सबसे बड़ी नदी है और इसके पानी पर भारत और बांग्लादेश के 13 करोड़ लोगों का जीवन निर्भर करता है. इसलिए अब चीन इस नदी को बांध के जरिए नियंत्रित करके भारत को परेशानी में डालना चाहता है.

इसके अलावा शी जिनपिंग ने इसी नदी के पास बने एक ब्रिज का भी निरीक्षण किया और इस पर बन रहे बांध को भी देखा. फिर वो निंगची शहर से चलने वाली हाई स्पीड बुलेट ट्रेन में सवार होकर तिब्बत की राजधानी ल्हासा पहुंचे. पिछले महीने ही चीन ने तिब्बत की पहली हाई स्पीड ट्रेन सर्विस निंगची से ल्हासा के बीच शुरू की है.

435 किलोमीटर लंबे इस रूट पर पूरी तरह से बिजली से चलने वाली ये ट्रेन 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकती है. इसके अलावा चीन ने निंगची को ल्हासा से जोड़ने वाले एक 250 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस वे का भी निर्माण पूरा कर लिया है.

यानी चीन ने भारत की सीमा से सिर्फ 20 से 40 किलोमीटर की दूरी पर न सिर्फ नदियों पर बांध बनाने शुरू कर दिए हैं, बल्कि चीन रेल और सड़क के रास्ते इस इलाके तक अपनी सेना की पहुंच को आसान बनाना चाहता है.

निंगची से ट्रेन में सवार होकर शी जिनपिंग तिब्बत की राजधानी ल्हासा पहुंचे. इससे पहले वर्ष 2011 में शी जिनपिंग बतौर उप-राष्ट्रपति ल्हासा पहुंचे थे, तब तिब्बत पर चीन के कब्जे के 60 साल पूरे हुए थे और इस दौरान वहां कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था और अब 10 वर्षों के बाद जब शी जिनपिंग पहले से भी ज्यादा शक्तिशाली हो गए हैं, तब वो एक बार फिर ल्हासा पहुंचे हैं.

इस दौरान ल्हासा के लोगों के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई. वहां चलने वाली फैक्ट्रियों को बंद कर दिया गया. पतंग और ड्रोन्स उड़ाने पर रोक लगा दी गई और पोटला महल, जो कभी दलाई लामा का घर हुआ करता था. उसे भी शी जिनपिंग के इस दौरे के दौरान बंद कर दिया गया. हालांकि शी जिनपिंग ने खुद इस महल का भी दौरा किया.

शी जिनपिंग के इस दौरे की तस्वीरों को चीन की मीडिया ने इस तरीके से दिखाया जैसे तिब्बत के लोग चीन की सरकार और शी जिनपिंग से बहुत खुश हैं. शी जिनपिंग ने इस दौरान ल्हासा के स्थानीय लोगों से मुलाकात की, उनसे बातचीत भी की और यहां के लोगों ने तालियां बजाकर शी जिनपिंग का स्वागत किया.

लेकिन ये बात पूरी दुनिया जानती है कि चीन जो तस्वीरें दुनिया को दिखाता है, वो अक्सर सच नहीं होती, चाहे बात कोरोना वायरस की हो, चीन में आई बाढ़ की या फिर चीन के राष्ट्रपति के तिब्बत पहुंचने की.

दुनिया के निशाने पर चीन

तिब्बत, हॉन्ग कॉन्ग, शिनजियांग और ताइवान के मुद्दे पर चीन इस समय पूरी दुनिया के निशाने पर हैं.

ऐसा इसलिए है क्योंकि हॉन्ग कॉन्ग में चीन ने लोकतंत्र का गला घोंट दिया है, शिनजियांग में आजादी की मांग कर रहे वीगर मुसलमानों को चीन यातनाएं दे रहा है और वो ताइवान पर हमला करके उसे भी कब्जे में लेना चाहता है.

उधर तिब्बत को लेकर चीन इसलिए भी ज्यादा परेशान है क्योंकि, अब दुनिया के कई देश तिब्बत की आज़ादी के पक्ष में आ गए हैं. वर्ष 2020 में अमेरिका ने तिब्बत के लिए एक नया कानून पास किया था, जिसमें ये तय हुआ था कि अगला दलाई लामा चुनने का हक सिर्फ तिब्बत के लोगों का होगा, चीन का नहीं.

पिछले साल जब लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों की भिड़ंत हुई थी, तो भारत ने Special Frontier Force का इस्तेमाल किया था. इसे विकास बटालियन भी कहा जाता है. भारतीय सेना की इस स्पेशल फोर्स में तिब्बती मूल के सैनिक होते हैं, जिन्हें ऊंचाई पर दुर्गम परिस्थितियों में लड़ने में महारथ होती है. इसी Special Frontier Force के सैनिकों ने पिछले साल चीन की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था. अब चीन इन तिब्बती सैनिकों का मुकाबला करने के लिए तिब्बत के युवाओं को सेना में भर्ती कर रहा है. हालांकि चीन इन्हें PLA का हिस्सा नहीं बना रहा, बल्कि इन्हें Militia यानी स्वतंत्र लड़ाकों के रूप में भारत की सीमा के पास तैनात कर रहा है.

इसके अलावा चीन लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारत की सीमा के पास 600 से ज्यादा ऐसे गांवों का निर्माण कर रहा है, जहां चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादारी रखने वाले लोगों को बसाया जाएगा. चीन ऐसा इसलिए कर रहा है ताकि वो दलाई लामा का समर्थन करने वाले लोगों को अंदर आने से रोक सके और भारत की सैन्य गतिविधियों पर भी नज़र रख सकें. चीन में ऐसे गांवों को शियाओ कांग कहा जाता है.

चीन ल्हासा से शिगास्ते तक भी रेल लाइन बिछा चुका है. शिगास्ते नेपाल की सीमा से लगने वाला चीन का इलाका है. यानी चीन कई रास्तों से भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है.

शी जिनपिंग के दौरे की 5 अहम बातें

अब आप शी जिनपिंग के इस दौरे को 5 अहम पॉइंट्स में समझिए.

पहला पॉइंट ये है कि शी जिनपिंग ने तिब्बत का ये दौरा तब किया है, जब कुछ दिन पहले ही तिब्बत पर चीन के कब्ज़े को 70 साल पूरे हुए हैं. 23 मई 1951 को चीन ने तिब्बत के लोगों को विकास का लालच देकर उनके देश पर कब्जा कर लिया था और चीन आज भी इस कब्जे को Peaceful Liberation of Tibet यानी तिब्बत की शांतिपूर्ण आजादी कहकर बुलाता है, जो कि एक बहुत बड़ा अंतरराष्ट्रीय झूठ है.

दूसरा पॉइंट ये है कि इसी महीने की पहली तारीख यानी एक जुलाई को Chinese Communist Party की स्थापना के 100 साल पूरे हुए हैं. तिब्बत और ताइवान पर पूरी तरह नियंत्रण करना C.C.P के सबसे पुराने सपनों में से एक है और शी जिनपिंग की तिब्बत यात्रा चीन के इसी खतरनाक सपने की तरफ बढ़ाया गया एक और कदम है.

तीसरा पॉइंट ये है कि चीन तिब्बत की संस्कृति को पूरी तरह से बदलना चाहता है. तिब्बत के लोग आज भी खुद को चीन का हिस्सा नहीं मानते, लेकिन चीन चाहता है कि वो तिब्बत की संस्कृति का चाइनीज संस्करण विकसित करे और इसके लिए वो साम दाम दंड भेद की नीति अपना रहा है.

चौथा पॉइंट ये है कि अगर तिब्बत के लोग चीन के दबाव में नहीं आए तो फिर चीन यहां भी वही फॉर्मूला लागू कर देगा, जो उसने वीगर मुस्लिम बाहुल्य शिनजियांग प्रांत में किया है. चीन तिब्बत के लोगों का भी वीगर मुसलमानों की तरह दमन करना चाहता है और जो लोग चीन की बात नहीं मानेंगे उन्हें वो वैसी ही यातनाएं देगा. जैसी वो वीगर मुसलमानों को देता है.

1959 में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद वहां के सबसे बड़े धर्मगुरु दलाई लामा भागकर भारत आ गए थे और आज भी दलाई लामा के नेतृत्व में तिब्बत की निर्वासित सरकार भारत के धर्मशाला से अपना काम काज संभालती है. तिब्बत के लोग चीन के खिलाफ खड़े न हो जाएं, इसलिए चीन उन्हें दबाने की हर संभव कोशिश कर रहा है.

पांचवां और सबसे महत्वपूर्ण पॉइंट ये है कि शी जिनपिंग ऐसे समय में तिब्बत पहुंचे हैं, जब लद्दाख में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पूरी तरह से सुलझा नहीं है. पिछले दिनों खबर आई थी कि चीन ने लद्दाख के पास अपनी सीमा में खतरनाक ड्रोन और ध्वनि की गति से तेज उड़ने वाली सुपर सोनिक मिसाइलें तैनात कर दी हैं.

भारत के खिलाफ नई रणनीति

तिब्बत के जिस निंगची शहर में शी जिनपिंग मौजूद थे वो भारत की सीमा से सिर्फ 17 किलोमीटर दूर है और इस शहर के रास्ते चीन भारत के खिलाफ नई रणनीति तैयार कर रहा है.

हो ये रहा है कि सबका ध्यान लद्दाख में भारत और चीन के बीच चल रहे तनाव पर तो चला जाता है, लेकिन अरुणाचल सीमा के पास चीन क्या कर रहा है. ये अक्सर मीडिया की नजरों में आने से बच जाता है, लेकिन चीन यहां लद्दाख से भी ज्यादा खतरनाक साजिश कर रहा है.

-उदाहरण के लिए चीन ने निंगची में ब्रह्मपुत्र नदी के पास एक बड़ा एयरपोर्ट बना लिया है और चीन लगातार इसका विस्तार कर रहा है. चीन इस एयरपोर्ट के लिए दो नई हवाई पट्टियों का भी निर्माण कर रहा है. इसी एयरपोर्ट के पास चीन कुछ ऐसे पार्क बना रहा है, जहां चीन की सेना की बख्तरबंद गाड़ियां खड़ी हो सकती हैं और यहां पहले से ज्यादा संख्या में सैनिकों के रुकने की भी व्यवस्था की गई है.

-इसके अलावा चीन ने निंगची में अंग्रेजों के जमाने के एक हेलिपोर्ट को भी अपग्रेड कर दिया है, जहां अब 8 हेलीकॉप्टर्स तैनात किए जा सकते हैं.

-चीन निंगची से 40 किलोमीटर उत्तर में नए Aerostate Radar Stations भी बना रहा है. ऐसे Radar Stations कम ऊंचाई पर उड़ने वाले लड़ाकू विमानों को पहचानने में सक्षम होते हैं. आम तौर पर जब किसी देश की वायु सेना को दुश्मन देश के महत्वपूर्ण ठिकानों पर हमला करना होता है तो रडार से बचने के लिए उसके फाइटर जेट बहुत कम ऊंचाई पर उड़ते हैं, लेकिन Aerostate Radar System इनकी पहचान भी कर लेता है.

तिब्बत को लेकर भारत और चीन के रिश्ते

शी जिनपिंग की तिब्बत यात्रा का उद्धेश्य समझने के लिए आपको ये समझना होगा तिब्बत को लेकर भारत और चीन के रिश्ते कैसे रहे हैं.

-1921 में जब भारत में ब्रिटिश सरकार थी, तब तिब्बत को लेकर, चीन, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच शिमला में एक समझौता हुआ था. इसके तहत तय हुआ था कि चीन तिब्बत को स्वायत्तता देगा और तिब्बत की सरकार के काम में दखल अंदाज़ी नहीं करेगा. तिब्बत के नेताओं ने इसे मान लिया, लेकिन चीन ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए.

-इसके 36 साल बाद चीन ने तिब्बत पर आक्रमण करके उसकी आजादी छीन ली. इसके 9 साल बाद चीन ने तिब्बत के लोगों का दमन शुरू कर दिया. इसी दौरान दलाई लामा अपने समर्थकों के साथ भारत आ गए.

-चीन इससे चिढ़ गया और ये चिढ़ 1962 के भारत-चीन युद्ध की वजह बन गई. इस युद्ध के दौरान चीन ने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के कई हिस्सों पर हमला कर दिया.

-इसके बाद भारत और चीन के रिश्ते पूरी तरह से खराब हो गए.

-1988 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी चीन की यात्रा पर गए. ये वर्ष 1954 के बाद भारत के किसी प्रधानमंत्री की पहली चीन यात्रा थी.

-तब चीन ने भारत पर दबाव डाला कि वो तिब्बत को चीन का हिस्सा मान लें, लेकिन भारत ने इससे इनकार कर दिया.

-इसके 26 वर्ष बाद साल 2002 में तिब्बत पर भारत और चीन के बीच एक बार फिर से बात शुरू हुई. तब अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे. इस दौरान एक समझौता हुआ और भारत ने चीन की वन चाइना पॉलिसी को समर्थन देते हुए तिब्बत को चीन का हिस्सा मान लिया, लेकिन इसके बावजूद तिब्बत के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच तनाव बना रहा.

-2006 में चीन ने पूरे अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताना शुरू कर दिया.

-इसके बाद भारत वन चाइना पॉलिसी का जिक्र करने से बचने लगा. 2017 में दोनों देशों के बीच डोकलाम विवाद हुआ और 2020 में लद्दाख में युद्ध की स्थिति आ गई और जहां स्थितियां अभी भी चिंताजनक बनी हुई है.

-लेकिन इस बीच भारत ने भी तिब्बत और चीन के दावों को लेकर अपना रुख बदलना शुरू कर दिया. वर्ष 2017 में चीन के विरोध के बावजूद भारत ने दलाई लामा को अरुणाचल प्रदेश के तवांग गांव जाने दिया.

अमेरिका के राजदूत को दी तवांग जाने की इजाजत

-2019 में अमेरिका के राजदूत को भी तवांग जाने की इजाजत दी गई और चीन इस पर भी भड़क गया. इसी दौरान भारत ने अमेरिका को तवांग में 70 गांव विकसित करने की भी इजाजत दे दी. 2019 में ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया था और ये बात भी चीन को पसंद नहीं आई थी.

-2020 में गलवान में शहीद हुए स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के एक सैनिक के अंतिम संस्कार में भारत सरकार ने अपने एक अधिकारी को भेजा और इस साल पहली बार प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने दलाई लामा को उनके जन्मदिन पर बधाई दी.

-यानी भारत ने इस मुद्दे पर चीन के साथ समझौते का भी प्रयास किया और लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश की रक्षा करने की प्रतिबद्धता भी दिखाई, लेकिन चीन पर किसी बात का असर नहीं हो पाया.

शी जिनपिंग के तिब्बत दौरे से भारत को हो जाना चाहिए सतर्क

-भारत को शी जिनपिंग के तिब्बत दौरे से सतर्क हो जाना चाहिए. आधुनिक चीन के संस्थापक माओ त्से तुंग, लद्दाख, नेपाल, भूटान, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत की पांच उंगलियां मानते थे. इनमें से भूटान और नेपाल स्वतंत्र देश हैं, जबकि लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश भारत के अभिन्न अंग हैं.

-लेकिन इसके बावजूद चीन को लगता है कि एक न एक दिन वो तिब्बत के साथ साथ इन इलाकों को भी अपने कब्जे में ले लेगा क्योंकि, शी जिनपिंग भी माओ त्से तुंग के सिद्धांत में यकीन रखते हैं.

-इसलिए भले ही शी जिनपिंग के तिब्बत दौरे की तस्वीरें बनावटी हों, लेकिन चीन के इरादे असली हैं. इसका जवाब देने के लिए भारत को भी अपनी तैयारी मजबूत करनी होगी. इन सभी इलाकों में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाना होगा.

-यहां सड़कें, रेलवे लाइन्स और सैन्य ठिकाने बनाने होंगे. लद्दाख में भारत की यही तैयारी काम आई थी और गलवान में चीन की हार भी इसी तैयारी की वजह से संभव हो पाई थी.

-और सबसे बड़ी बात ये है कि चीन भले ही तिब्बत पर कब्जा कर ले, लेकिन वहां के लोग चीन के साथ नहीं हैं. भारत को तिब्बत के लोगों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना होगा और यही तिब्बत में चीन की सबसे बड़ी हार होगी.

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