असम की सियासत : हिमंत बिस्वा सरमा के लिए है ‘करो या मरो’ की रात – अमर उजाला – Amar Ujala

सार

मुख्यमंत्री पद का किया दावा। हिमंत के पक्ष में अमित शाह भी। सर्बानंद सोनेवाल को है संघ और प्रधानमंत्री का विश्वास हासिल।

हिमंत बिस्व सरमा
– फोटो : facebook.com/himantabiswasarma

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विस्तार

केंद्रीय कृषि मंत्री और असम के प्रभारी नरेंद्र सिंह तोमर, भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, संगठन मंत्री बीएल संतोष राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा तय करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह असम को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। इस स्थिति में मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनेवाल को संघ के नेताओं के सहारे मुख्यमंत्री की कुर्सी दोबारा मिलने का भरोसा है। जबकि हिमंत बिस्वा सरमा के लिए लग रहा है कि अब चूके तो चूक गए। देखना है रविवार को विधायक दल की बैठक में क्या तय होता है।

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केंद्रीय कृषि मंत्री और असम के प्रभारी नरेंद्र सिंह तोमर, भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, संगठन मंत्री बीएल संतोष राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा तय करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह असम को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। इस स्थिति में मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनेवाल को संघ के नेताओं के सहारे मुख्यमंत्री की कुर्सी दोबारा मिलने का भरोसा है। जबकि हिमंत बिस्वा सरमा के लिए लग रहा है कि अब चूके तो चूक गए। देखना है रविवार को विधायक दल की बैठक में क्या तय होता है।

हिमंत बिस्वा सरमा राज्य के बड़े आदिवासी नेता हैं। सर्बानंद सोनेवाल की सरकार का सबसे मजबूत चेहरा हैं। भाजपा के नेता उन्हें असम सरकार की रीढ़ तक कहते हैं। हिमंत असम के शरद पवार भी कहे जाते हैं। उनकी राज्य के कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल की पार्टी में भी ठीक ठाक पैठ है। इन्हीं सब बिंदिओं को लेकर वह इस बार राज्य का मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए हैं।

विधानसभा चुनाव के दौरान ही जता दी थी मंशा

हिमंत ने विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद से ही अपनी मंशा को जताना शुरू कर दिया था। हिमंत यहां तक चाहते थे कि भाजपा अगले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दे। दबाव भी बनाया, लेकिन तब भाजपा ने इस सवाल को चतुराई से टाल दिया था। उनकी महत्वाकांक्षा को देखकर बदरुद्दीन अजमल ने सीधे तौर पर और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने परोक्ष रूप से ताना तक मारा था। हिमंत के चुनाव न लड़ने की मंशा जताने का भी अर्थ उनकी महत्वाकांक्षा से जोड़ा जा रहा था। बताते हैं बाद में हिमंत को शाह और नड्डा से कुछ भरोसा भी मिला था। गौरतलब है कि असम में अपनी बढ़ती राजनीतिक पकड़ और महत्वाकांक्षा के नाते ही हिमंत ने कांग्रेस पार्टी छोड़ी थी और भाजपा में शामिल हुए थे।

संघ व भाजपा का एक धड़ा सर्बानंद को चाहता है

मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनेवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रिय हैं। उन्हें प्रधानमंत्री का विश्वास हासिल है। असम में दशकों से सक्रिय भाजपा के नेता और संघ के प्रचारक भी सर्बानंद सोनोवाल को चाहते हैं। एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि वह पांच साल मुख्यमंत्री रहे और उन पर एक भी कदाचार का आरोप नहीं है। सोनेवाल की छवि साफ सुथरी है। वह केंद्र, पार्टी नेताओं और संघ, तीनों से तारतम्य बनाकर रखते हैं। संघ और भाजपा के कई नेताओं का कहना है कि सर्बानंद सोनेवाल के नेतृत्व में पांच साल चली सरकार के साफ-सुथरे चेहरे के कारण ही राज्य की जनता ने दोबारा अवसर दिया है। इसलिए मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर सर्बानंद सोनोवाल ही ठीक हैं।

रविवार को है फाइनल

भाजपा अध्यक्ष नड्डा के आवास पर हुई बैठक में अमित शाह और संगठन मंत्री बीएल संतोष भी शामिल थे। मुद्दा असम में मुख्यमंत्री के चयन को अंतिम रूप देना ही था। क्या सही है, यह इन शीर्ष नेताओं के अलावा किसी को पता नहीं है। लेकिन समझा जा रहा है कि भाजपा के नेताओं ने हिमंत को मनाने, समझाने की पूरी कोशिश की है। मध्य का रास्ता निकालने की भी कोशिश हुई है। अंत में तय हुआ है कि गुवाहाटी में विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री का चेहरा तय होगा। देखना है कि एक रात में क्या तस्वीर बदल पाती है। किसके सिर पर मुख्यमंत्री का ताज सजता है।

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