पीएम मोदी ने राज्यसभा सदस्य गुलाब नबी आजाद को सदन से विदाई दी…
– फोटो : PTI
ख़बर सुनें
हाल के दिनों के राजनीतिक घटनाक्रमों के बाद यह कयास लगे रहें हैं कि कहीं आजाद पाला तो नहीं बदलने वाले हैं। क्या वे भाजपा में तो शामिल होने वाले नहीं हैं या फिर कांग्रेस से अलग होकर कोई नई पार्टी को आकार देने में तो नहीं जुटे हैं। हालांकि, आजाद का कहना है कि यदि उन्हें भाजपा में शामिल होना होता तो वह वाजपेयी के समय में ही चले गए होते। उधर, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सियासत में सब कुछ संभव है। पहले भी घोर राजनीतिक मतभेद रहने के बावजूद कई नेताओं ने धुर विरोधी पार्टी का दामन थामा है।
विश्लेषकों के अनुसार देश की राजनीति और कांग्रेस में आजाद का बड़ा कद है। जम्मू-कश्मीर के साथ ही पूरे देश में आजाद के समर्थक हैं। राष्ट्रीय महासचिव, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और राज्यसभा में प्रतिपक्ष का नेता रहते उनकी विभिन्न राज्यों में पकड़ है। ऐसे में यदि वे पाला बदलते हैं या फिर नई पार्टी बनाते हैं तो कांग्रेस को बड़ा झटका लग सकता है। यदि ऐसा नहीं होता है तो भी आजाद समर्थकों की चुप्पी का कांग्रेस की सेहत पर असर पड़ सकता है।
एक दिन पहले आजाद समर्थकों ने सोनिया-राहुल के खिलाफ फूंका था बिगुल
कांग्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र और अध्यक्ष पद के लिए चुनाव का मुद्दा उठाकर सोनिया की आंखों की किरकिरी बनने वाले आजाद ने अपने समर्थकों के साथ शनिवार को जम्मू से सोनिया-राहुल के खिलाफ बिगुल फूंका था। गांधी ग्लोबल फैमिली की ओर से आयोजित शांति सम्मेलन में कांग्रेस के लगातार कमजोर होने की बात कही थी। खुलेआम कहा गया कि वे हैं तो कांग्रेस है। सम्मेलन में मंच से यह भी कहा गया कि जब प्रधानमंत्री मोदी आजाद की तारीफ कर सकते हैं तो पार्टी को उनके अनुभवों का लाभ लेने में क्या परहेज है। इस घटनाक्रम के अगले दिन स्वयं आजाद ने मोदी की तारीफ में कसीदे पढ़े।
पार्टी में सम्मान व स्थान के लिए दबाव की रणनीति: प्रो. रसाल सिंह
राजनीतिक विश्लेषक और केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू के प्रो. रसाल सिंह का कहना है कि यह आजाद और उनके समर्थकों का कांग्रेस पर दबाव बनाने की रणनीति है। वह पार्टी में सम्मान एवं स्थान पाने के लिए दबाव बना रहे हैं। गांधी-नेहरू परिवार का व्यक्तित्व पहले करिश्माई था। सरकार में रहने पर परिवारवाद का दोष छिप जाता है, लेकिन लगातार चुनावी असफलताओं पर कांग्रेस में आत्ममंथन, आत्मचिंतन की जरूरत है। आजाद समर्थक भी कांग्रेस में लोकतंत्र की बहाली और आत्ममंथन की बात कर रहे हैं। इसे सकारात्मक तरीके से लेना चाहिए। हालांकि, राजनीति संभावनाओं का खेल है, इसलिए इसमें कुछ भी अचानक हो सकता है। मोदी-शाह के कांग्रेस मुक्त भारत अभियान के तहत भाजपा इन्हें लुभाने की कोशिश करेगी। यदि ऐसा हुआ तो मोदी-शाह के साथ ही सोनिया-राहुल को भी इसका श्रेय जाएगा।