- रविंदर सिंह रॉबिन
- बीबीसी हिंदी के लिए, अमृतसर से
जुगराज के गाँव और परिवार में पहले तो जीत की ख़ुशी और लाल क़िले पर खालसा झंडे को लहराने का एक उत्साह दिख रहा था, लेकिन बाद में वो पुलिस कार्रवाई के डर में बदल गया.
अब जुगराज का अता-पता नहीं है और जुगराज के माता-पिता भी गाँव छोड़ कर कहीं चले गए हैं, पुलिस और मीडिया के सवालों का जवाब देने के लिए रह गए हैं जुगराज के दादा-दादी.
पंजाब के तरनतारन ज़िले के गाँव का 23 साल का नौजवान जुगराज सिंह वही नौजवान है, जिसने 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल क़िले की प्राचीर पर खालसा झंडा लगा दिया था.
जब जुगराज के दादा से पूछा गया कि वो अपने पोते की हरकत के बारे में क्या सोचते हैं, तो उन्होंने कहा, “बहुत अच्छा लग रहा है ये बाबे दी मेहर है” यानी गुरुओं की मेहरबानी है.
जुगराज के दादा महल सिंह ने कहा कि जुगराज बहुत ही अच्छा लड़का है और उन्हें नहीं मालूम की जो घटना हुई वो किस तरह हुई, उन्होंने कहा कि जुगराज ने उन्हें कभी भी शिकायत का मौक़ा नहीं दिया.
26 जनवरी के दिन दिल्ली में हुई किसानों की रैली के दौरान कुछ प्रदर्शनकारी दिल्ली के लाल क़िले में घुस गए थे. उन्होंने वहाँ की प्राचीर पर चढ़ कर वहाँ सिखों का पारंपरिक झंडा ‘निशान साहिब’ फहरा दिया था.
इसके बाद पुलिस जुगराज समेत कई लोगों की तलाश कर रही है. लाल क़िले पर हुई हिंसा के बाद किसान नेताओं ने इसकी आलोचना की और कहा कि रैली में ‘कुछ असामाजिक तत्व शामिल हो गए थे.’
इस पूरे घटनाक्रम को लेकर सत्तारूढ़ बीजेपी ने कहा कि गणतंत्र दिवस के दिन तिरंगे का अपमान हुआ है.
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस घटना के बाद कहा, “दिल्ली में जिस तरह से हिंसा हुई उसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम है. लाल क़िले पर तिरंगे का अपमान हुआ वो अपमान हिंदुस्तान सहन नहीं करेगा.”
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने लाल क़िले पर हुई घटना की निंदा की है और कहा है कि भारत सरकार को इस मामले की जांच कर दोषी को सज़ा देनी चाहिए.
हालांकि उन्होंने ये भी कहा है शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान नेताओं को परेशान नहीं किया जाना चाहिए.
सोशल मीडिया पर भी कुछ लोग इस घटना को तिरंगे का अपमान बता रहे हैं.
इधर संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रेस नोट जारी कर सरकार पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है और कहा कि उनका लाल क़िले और दिल्ली के किसी भी दूसरे हिस्से में हुई हिंसा से कोई ताल्लुक़ नहीं है.
प्रेस नोट में कहा गया है कि “अभी तक यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण तरीक़े से चल रहा था लेकिन इस आंदोलन को बदनाम करने की साज़िश अब जनता के सामने आ चुकी है. कुछ व्यक्तियों और संगठनों के सहारे सरकार ने इस आंदोलन को हिंसक बनाया. प्रेस नोट में दीप सिद्धु और सतनाम सिंह पन्नु की अगुवाई वाले किसान मज़दूर कमेटी का नाम मुख्य रूप से लिया गया है.”
जुगराज के गांव का क्या है हाल
गाँव वालों का कहना है कि पुलिस कई बार जुगराज के घर छापा मार चुकी है और ख़ाली हाथ लौट चुकी है, क्योंकि जुगराज और उसके माता-पिता पुलिस वालों को वहाँ नहीं मिले.
जुगराज के घर के बाहर ही मौजूद गाँव के एक बुज़ुर्ग प्रेम सिंह ने बताया कि उन्होंने टीवी पर देखा कि किस तरह एक नौजवान ने लाल क़िले पर खालसा झंडा लहरा दिया.
प्रेम सिंह कहते हैं, “जो लाल क़िले पर घटना हुई है वह दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन वो एक अच्छा लड़का है और उसको इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि 26 जनवरी के दिन लाल क़िले पर इस तरह से झंडा फहराने का क्या नतीजा होगा. बहुत सारे लोगों ने खालसा झंडा अपने साथ रखा हुआ था, जैसा मैंने टीवी पर देखा. उनमें से किसी ने जुगराज को एक झंडा दे दिया था जो उसने लाल क़िले पर लगा दिया.”
पारिवारिक पृष्ठभूमि
गाँव के ज़्यादातर लोग यही कहते रहे कि जुगराज एक मेहनती और नेक दिल लड़का है.
गाँव में ही रहने वाले जगजीत सिंह ने बताया कि जुगराज 23 या 24 जनवरी को एक संगत के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुआ था.
गाँव के लोगों का कहना है कि परिवार के पास बमुश्किल दो-तीन एकड़ ज़मीन है और परिवार कर्ज़ के बोझ से दबा हुआ है. यह भी बताया गया कि गाँव के कुछ दूसरे लड़कों के साथ साल के कुछ महीने वह चेन्नई में एक फ़ैक्टरी में काम किया करता था.
जुगराज की तीन बहनें हैं, जिनमें से दो की शादी हो चुकी है और तीसरी बहन परिवार के साथ ही रहती है.
जगजीत सिंह कहते हैं, “वो एक साफ़ दिल का और जिस्म से मज़बूत बच्चा था. उसे किसी ने ऐसा करने के लिए कहा और उसने इसके नतीजे के बारे में नहीं सोचा.”
गाँव के लोगों का मानना है कि इसके पीछे विदेशी फंडिंग की बात बेबुनियाद है. उनका कहना है कि इस बात की आसानी से जाँच की जा सकती है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ.
जब इस बारे में तरनतारन के पुलिस अधीक्षक से बात की गई, तो उन्होंने इस पर टिप्पणी करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि एफ़आईआर तरनतारन में दर्ज नहीं हुई है इसलिए वो बारे में कुछ नहीं कहेंगे.
किसान आंदोलन
तीन कृषि क़ानूनों को वापस लिए जाने की मांग को लेकर किसान दिल्ली की सीमा पर दो महीने से ज़्यादा समय से आंदोलन कर रहे हैं. 26 जनवरी को किसान संगठनों ने पुलिस से दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च की अनुमति मांगी थी.
बाद में दिल्ली पुलिस ने एक ख़ास रूट पर ट्रैक्टर परेड की अनुमति दे दी थी. लेकिन 26 जनवरी के दिन प्रदर्शनकारी दिल्ली के कई इलाक़ों में घुस गए और कई जगह दिल्ली पुलिस के साथ उनकी झड़प हुई.
इसी क्रम में प्रदर्शनकारी लाल क़िले में भी घुस गए और वहाँ झंडा फहरा दिया. पुलिस को इस मामले में एक्टर दीप सिद्धू की भी तलाश है, जिन पर लोगों को भड़काने का आरोप है.
दिल्ली पुलिस ने इस मामले में कई किसान नेताओं पर भी मामला दर्ज किया है. दिल्ली पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारियों के हमले में क़रीब 400 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं. जबकि एक प्रदर्शकारी की मौत हो गई.
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