DNA ANALYSIS: भारत में फ्रांस के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का मतलब क्या है? – Zee News Hindi

नई दिल्ली: कल फ्रांस (France) के मुद्दे पर भारत के मुसलमान देश की सड़कों पर उतर आए. लेकिन ये मुसलमान फ्रांस के चर्च में हुई निर्मम हत्याओं का विरोध नहीं कर रहे थे, बल्कि हत्यारे का समर्थन कर रहे थे. इन मुसलमानों को आपने कभी हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों के विरोध में सड़कों पर उतरते हुए नहीं देखा होगा. इन मुट्ठी भर मुसलमानों को आपने कभी पुलवामा (Pulwama) आतंकवादी हमले के विरोध में भी सड़कों उतरते हुए नहीं देखा होगा. ये बड़ी अजीब सी विडंबना है कि भारत एक राष्ट्र के तौर पर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (Emmanuel Macron) का समर्थन कर रहा है लेकिन भारत के कुछ मुसलमान मैक्रों का विरोध कर रहे हैं.

भारत ने ऐलान किया था कि वो आतंकवाद (Terrorism) के खिलाफ लड़ाई में फ्रांस के साथ खड़ा है. कल देश के प्रधानमंत्री मोदी (PM Narendra Modi) ने भी फ्रांस के एक मशहूर चर्च पर हुए आतंकवादी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की थी और कहा था कि घृणा से भरे ऐसे कामों को सही नहीं ठहराया जा सकता.

क्या ये भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की तस्वीरें हैं?
कुल मिलाकर पूरा भारत कट्टरपंथ के खिलाफ फ्रांस की इस लड़ाई में उसके साथ खड़ा है. लेकिन हमारे ही देश के कुछ मुट्ठी भर मुसलमानों को ये बात पसंद नहीं आई और कल देश भर के अलग-अलग शहरों में फ्रांस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए. इन विरोध प्रदर्शनों के दौरान कहीं पर भी उस हत्यारे का विरोध नहीं किया गया जिसने फ्रांस में एक महिला का गला काट दिया था और दो लोगों की हत्या कर दी थी. सब जगह सिर्फ फ्रांस और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का विरोध किया गया. विरोध प्रदर्शनों की इन तस्वीरों को देखकर लगता है कि क्या ये भारत जैसे लोकतांत्रिक देश की तस्वीरें हैं ?

मुंबई के भिंडी बाजार में विरोध प्रदर्शनों के दौरान सड़कों पर फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के पोस्ट चिपका दिए गए. सड़कों पर मैक्रों के पोस्टर्स इसलिए लगाए गए ताकि गाड़ियां, लोग और जानवर इन पर से होकर गुजरें.

फ्रांस का विरोध करने के लिए उन छोटे-छोटे बच्चों का भी सहारा लिया गया जिन्हें शायद ये पता भी नहीं होगा कि फ्रांस में आखिर हुआ क्या है

इसके अलावा मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कांग्रेस के विधायक आरिफ मसूद के नेतृत्व में हजारों लोगों की भीड़ ने फ्रांस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. इस दौरान न सिर्फ फ्रांस के राष्ट्रपति के लिए आपत्तिजनक बातें कही गईं बल्कि सोशल डिस्टेंसिंंग के सारे नियमों की भी धज्जियां उड़ा दी गईं.

हालांकि अब कांग्रेस के इस विधायक और प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वाले 2 हजार लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई है. ऐसी तस्वीरें कल भारत के लगभग हर कोने से आई हैं और इनमें से कुछ तस्वीरें तो और भी ज्यादा हैरान करने वाली हैं.

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में न सिर्फ विरोध प्रदर्शन हुआ बल्कि फ्रांस के राष्ट्रपति के लिए मौत की सजा के नारे भी लगाए गए.

फ्रांस के प्रोडक्ट्स का जो बहिष्कार, कट्टर इस्लामिक देशों में शुरू हुआ था. उसकी आग अब भारत तक भी पहुंच गई हैं. ये लोग उस देश का विरोध कर रहे हैं जिसके साथ खड़े रहने का ऐलान खुद प्रधानमंत्री ने किया है.

इसके अलावा सहारनपुर, श्रीनगर और लुधियाना जैसे शहरों में भी प्रदर्शन हुए. कहीं धार्मिक नारे लगाए गए, कहीं फ्रांस के झंडों को जलाया गया, तो कहीं फ्रांस के राष्ट्रपति के लिए अपशब्द कहे गए तो कहीं आतंकवाद की निंदा किए जाने की बजाय दुनिया के सबसे सेक्युलर देशों में से एक फ्रांस के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई की मांग की गई.

कट्टर इस्लाम के खिलाफ फ्रांस ने कमर कस ली है
भारत में रहने वाले कुछ मुसलमानों ने जिस तर्ज पर फ्रांस का विरोध किया है. उसी तर्ज पर फ्रांस का विरोध बांग्लादेश, पाकिस्तान, तुर्की, सऊदी अरब और इराक जैसे देशों में हो रहा है. इन विरोध प्रदर्शनों के बावजूद फ्रांस ने कट्टर इस्लाम के खिलाफ कमर कस ली है. फ्रांस में और भी आतंकवादी हमलों की आशंका को देखते हुए सुरक्षा बढ़ा दी गई है, देश की सुरक्षा के लिए फ्रांस की सड़कों पर 7 हजार से ज्यादा सैनिक उतार दिए गए हैं.

फ्रांस में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए दूसरी बार राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन किया गया है. लेकिन आतंकवादी हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए कल बड़ी संख्या में लोग अपने घरों से बाहर निकले. इस बीच फ्रांस की पुलिस ने 47 वर्ष के एक और संदिग्ध को गिरफ्तार किया है. शुरुआती जांच में पता चला है कि ये संदिग्ध लोगों की हत्या करने वाले आतंकवादी के संपर्क में था.

हत्यारे का नाम इब्राहिम इसोई है जिसकी उम्र सिर्फ 21 वर्ष है. ये हत्यारा मूल रूप से ट्यूनिशिया का रहने वाला है और करीब एक महीना पहले ही यूरोप आया था. ये आतंकवादी जब लोगों की हत्या करने के लिए चर्च में घुसा तो इसके पास कुरान की एक कॉपी भी थी.

इसी तरह जिस आतंकवादी ने दो हफ्ते पहले फ्रांस में सैमुएल पैटी नाम के एक टीचर की गला काटकर हत्या की थी वो भी शरणार्थी था. सैमुएल के हत्यारे का नाम अबदुल्लाख अंज़ोरोव है और इसकी उम्र सिर्फ 18 साल है. ये हत्यारा 6 वर्ष की उम्र में चेचन्या से एक शरणार्थी के रूप में फ्रांस आया था और 12 वर्ष से फ्रांस में ही रह रहा था. लेकिन सितंबर के महीने में ये सीरिया के एक जेहादी के संपर्क में आया और इसने सैमुएल पैटी की हत्या की योजना बनाई.

फ्रांस के सेक्युलरिज्म से नफरत
इस हत्या के बाद इस आतंकवादी ने एक ऑडियो संदेश जारी करके कहा था कि पैगंबर मोहम्मद साहब के अपमान का बदला ले लिया है. लेकिन अगर आप गौर करेंगे तो आपको समझ में आएगा कि ये दोनों ही आतंकवादी शरणार्थी थे, किसी दूसरे देश से फ्रांस आए थे. लेकिन दोनों ने लोगों की हत्या के लिए एक ही तरीका चुना और वो तरीका था. दूसरों का सिर कलम कर देना. इन दोनों को ही फ्रांस के सेक्युलरिज्म से नफरत थी और दोनों ने अपनी नफरत का इजहार एक ही तरीके से किया.

पहले जब ये शरणार्थी किसी दूसरे देश में जाते थे. तो वहां रहने वाले लोग ये कहकर इनका विरोध करते थे कि ये शरणार्थी उस देश के संसाधन छीन रहे हैं और लोगों को इन शरणार्थियों के साथ अपने नागरिक अधिकार बांटने पड़ेंगे. लेकिन शायद किसी को उस समय अंदाजा भी नहीं होगा कि कुछ शरणार्थी सिर्फ संसाधन ही नहीं, बल्कि लोगों का जीवन भी छीन रहे हैं.

हालांकि हम यहां ये नहीं कह रहे कि सभी शरणार्थी ऐसे होते हैं. या किसी देश में बाहर से आने वाले सभी लोगों के मन में ऐसी ही नफरत होती है. उदाहरण के लिए भारत से दूसरे देशों में गए लोग कभी ऐसा नहीं करते और अक्सर वो उस देश का सम्मान करते हैं और वहां के नियमों का पालन करते हैं. लेकिन फ्रांस में इसका ठीक उलट हो रहा है.

शार्ली हैब्दो नाम की जिस मैगजीन ने पैगंबर मोहम्मद साहब के विवादित कार्टून छापे हैं उसे चलाने वाले नास्तिक विचारधारा के हैं और ये मैगजीन दूसरे धर्मों पर भी कार्टून छापती रही है. लेकिन क्या आपने कभी किसी दूसरे धर्म के लोगों को इस तरह से विरोध करते हुए देखा है? किसी धर्म के नेता या देवी देवताओं का मजाक उड़ाना या उनका अपमान करना Blashphamy यानी ईशनिंदा कहलाता है.

69 देशों में ईश निंदा से जुड़े कानून
इस समय 69 देशों में ईश निंदा से जुड़े कानून हैं और वहां ईश निंदा करने वालों को कड़ी सजा दी जाती है. 6 देशों में तो ईश निंदा करने वालों को मौत की सजा तक देने का प्रावधान है. लेकिन फ्रांस में ऐसा नहीं है. जो लोग फ्रांस में इसके नाम पर लोगों का खून बहा रहे हैं वो बार-बार ये भूल जाते हैं कि फ्रांस एक सेक्युलर देश है और वहां संविधान को धर्म से ज्यादा महत्व दिया जाता है. वैसे भी ईश निंदा करने पर किसी को मौत की सजा देने की बात किसी भी धर्म में नहीं कही गई है.

धर्म के नाम पर कुरीतियां
भारत में भी एक समय पर धर्म के नाम पर बहुत सारी कुरीतियां थीं. इनमें बाल विवाह, सती प्रथा, दहेज प्रथा, जैसी गलत प्रथाएं शामिल थीं, एक समय पर तो भारत में हिंदू विधवाओं को दोबारा विवाह की इजाजत तक नहीं थी. जिन लोगों ने इन प्रथाओं का विरोध किया और इनका अंत किया उन्हें हमारे यहां ईश निंदा करने वाला नहीं बल्कि, समाज सुधारक कहा गया.

ये फर्क आज दुनिया के सभी लोगों को समझना चाहिए क्योंकि, जब किसी धर्म की कुरीतियों को मिटाया जाता है तो वो धर्म भ्रष्ट नहीं होता बल्कि वो ज्यादा परिपक्व और ज्यादा सौहार्दपूर्ण हो जाता है.

यूरोप भी एक जमाने में कट्टरपंथ का शिकार
यूरोप भी एक जमाने में कट्टरपंथ का शिकार था. वहां धार्मिक मामलों में चर्च का बहुत दखल था और चर्च की मान्यताओं का विरोध करने वालों को कड़ी सज़ा दी जाती थी. लेकिन 17वीं शताब्दी में यूरोप में कई क्रांतियां हुईं और लोगों ने चर्च का दखल बंद करने की मांग की. 17वीं शताब्दी में पश्चिम में उदारवाद की शुरुआत हुई, फिर 19वीं सदी के अंत तक यूरोप ने Multi Culturalism यानी बहु संस्कृति वाद को अपनाया और फिर 20वीं सदी की शुरुआत में Plural-ism यानी बहुलवाद की शुरुआत हुई.

इन सारे बदलावों का मकसद ये था कि पश्चिम के समाज को ज्यादा इनक्लूजिव बनाया जाए  यानी वहां रंग और धर्म के नाम पर भेदभाव खत्म किया जाए और अलग-अलग मान्यताओं में विश्वास रखने वाले लोगों को जगह दी जाए. लेकिन आज कट्टरपंथी इस्लाम की वजह से यूरोप इस्लामिक फासीवाद के दौर में पहुंच गया है. जहां कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतें, यूरोप के देशों के सेक्युलर ढांचे को ध्वस्त कर देना चाहती हैं.

नया कानून बनाने जा रहा फ्रांस
फ्रांस इसे रोकने के लिए आने वाले कुछ दिनों में एक महत्वपूर्ण कानून बनाने जा रहा है. इस कानून का मकसद है फ्रांस के Republic यानी गणतंत्र के मूल्यों को बचाना है. ये कानून सबका उद्धार करते हुए सबको बराबरी का हक देने का वादा करता है. इसमें एक बड़ी बात ये है कि फ्रांस अपने यहां कट्टरवाद से लड़ाई लड़ेगा, अल्पसंख्यकों की शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश किया जाएगा ताकि इन लोगों को कट्टरपंथ के रास्ते से हटाकर विकास के रास्ते पर लाया जा सके. इस कानून के जरिए फ्रांस में अलगाववाद फैलाने वालों पर भी सख्ती बरती जाएगी.

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों दुनिया के सबसे युवा राष्ट्र अध्यक्षों में से एक हैं, उनकी उम्र सिर्फ 42 साल है और वो एक लिबरल यानी उदारवादी नेता हैं. नए कानून के जरिए मैक्रों अपने देश की व्यवस्था को बदलना चाहते है, उनका मकसद है कि जो धर्म के नाम पर लोगों को भड़काते हैं और नफरत फैलाते हैं, उन्हें कड़ी सजा मिले और जो लोग सच में धर्म पर विश्वास रखते हैं और सही रास्ते पर चलना चाहते हैं उन्हें कोई परेशानी न हो.

इस कानून के तहत फ्रांस की सरकार अपने देश की मस्जिदों पर नजर रख पाएगी और वहां शिक्षा देने वाले धर्म गुरुओं को नए सिरे से ट्रेनिंग दी जाएगी और उन्हें सर्टिफिकेट दिया जाएगा. कुल मिलाकर मैक्रों के फ्रांस में इस्लाम का फ्रेंच संस्करण विकसित किया जाएगा, जिसमें फ्रांस के धर्मनिरपेक्षता के मूल्य शामिल होंगे और फ्रांस के मुसलमानों को वहाबी और कट्टरपंथी सोच का शिकार होने से बचाया जाएगा.

मैक्रों एक नेता के तौर पर दुनिया भर के लिए मिसाल बन सकते हैं क्योंकि वो बिना किसी से धार्मिक आजादी छीने, अपने देश के लोगों को ज्यादा सुरक्षित और ज्यादा सेक्युलर माहौल देने की कोशिश कर रहे हैं और अपना ये उद्देश्य हासिल करने के लिए वो इस्लाम की कट्टरपंथी ताकतों से टकराने के लिए भी तैयार हैं.

भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की मांग
भारत में जिस यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) को लागू करने की मांग हो रही है. वो भी इसी तरह से देश के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देगा. अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो गया तो धार्मिक आजादी के नाम पर भारत में चलने वाले अलग-अलग धार्मिक कानून खत्म हो जाएंगे और संविधान ने नागरिकों को बराबरी देने का जो वादा किया था वो वादा सच में पूरा हो पाएगा. हालांकि भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड अब भी बहुत दूर है. लेकिन अगर भारत चाहे तो फ्रांस के नए कानून को एक टेम्पलेट मानकर  यूनिफॉर्म सिविल कोड की नींव रख सकता है. 

आज के दौर की सबसे बड़ी जरूरत यही है कि लोकतांत्रिक देशों में संविधान को धर्म से ज्यादा महत्व दिया जाए और लोग पहले संविधान की कसम खाएं और फिर अपने-अपने धर्म का पालन करें.

कट्टरपंथ के खिलाफ होने का मकसद
भारत के जो लोग फ्रांस का विरोध कर रहे हैं, उन्हें एक बात समझनी चाहिए और वो ये है कि कट्टरपंथ के खिलाफ होना इस्लाम या मुसलमानों के खिलाफ होना नहीं है. कट्टरपंथ के खिलाफ होने का मकसद सिर्फ इतना है कि लोगों को उनकी अलग-अलग विचारधाराओं और अलग-अलग संस्कृतियों के बावजूद राष्ट्र के मूल्यों के नाम पर एक साथ लाया जाए और जब किसी देश के लोगों में विविधता के बावजूद ऐसी एकता की भावना विकसित हो जाती है तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.

भारत में भी मुस्लिम समुदाय से ऐसे लोगों को सामने लाने की जरूरत है जो कट्टरपंथ में विश्वास नहीं करते और जो दूसरे धर्मों और विचारधाराओं के प्रति उदार रहकर भी अपने धर्म के दिखाए रास्ते पर चलना जानते हैं.

व्यवस्था में बदलाव की जरूरत
अगर समय रहते भारत ने अपनी व्यवस्थाओं में बदलाव नहीं किया तो जो तस्वीरें आज भारत के अलग-अलग शहरों से आई हैं वो आम हो जाएंगी, ऐसा नहीं है कि इससे पहले कभी भारत के कुछ मुसलमानों ने देश की राय से अलग जाकर इस तरह से प्रदर्शन नहीं किए हैं.

उदाहरण के तौर पर भारत के कुछ मुसलमान चीन का खुलकर समर्थन करते हैं वो भी तब जब चीन खुद अपने यहां रहने वाले वीगर मुसलमानों पर अत्याचार करता है.

भारत, इजरायल का समर्थन करता है जबकि भारत के ज्यादातर मुसलमान फिलीस्तीन के साथ हैं. भारत के ज्यादातार लोग NRC और नए नागरिकता कानून के समर्थन में हैं. लेकिन भारत के कई मुसलमानों को इन दोनों ही व्यवस्थाओं से तकलीफ है.

भारत के कुछ मुसलमान तब खुश होते हैं, जश्न मनाते हैं जब भारत क्रिकेट मैच में पाकिस्तान के हाथों हार जाता है, कुछ मुसलमान तब जश्न मनाते हैं जब पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत का कोई फाइटर जेट क्रैश हो जाता है और जब हमारे किसी पायलट को पाकिस्तान में पकड़ लिया जाता है.

लेकिन ये मुट्ठी भर मुसलमान कभी, आतंकवादी हाफिज सईद के विरोध में सड़कों पर नहीं उतरते, पुलवामा में आतंकवादी हमला करने वाले आतंकवादी मसूद अजहर के पोस्टर्स नहीं जलाते उसकी तस्वीरों को जूते नहीं मारते. आपने शायद ही कभी इन मुट्ठी भर मुसलमानों को इन आतंकवादियों का विरोध करते हुए देखा होगा. लेकिन इतनी बड़ी तादाद में फ्रांस का विरोध करने के लिए ये लोग सड़कों पर उतर आते हैं.

इसलिए अब समय आ गया है कि ये सब रोकने के लिए एक रेखा खींची जाए  और इस रेखा का उल्लंघन करने वालों को सजा हो और ये रेखा ये सुनिश्चित करे कि किसी का सिर कलम करना कबूल नहीं किया जाएगा, आतंकवाद स्वीकार नहीं किया जाएगा. सिर्फ इसलिए कि किसी की धार्मिक भावनाएं आहत हो गई हैं और इस बात पर लोगों का खून बहा दिया जाए. इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. जब तक ये लाइन नहीं खींची जाएगी तब तक समाज को जोड़े रखने वाली लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन होता रहेगा.

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