देश में करीब दो महीने बाद एक्टिव कोरोनावायरस केसेस की संख्या सात लाख से कम हो गई है। ऐसे में एक स्टडी का यह दावा उत्साह बढ़ाने वाला है कि भारत हर्ड इम्युनिटी के लेवल पर पहुंच गया है। स्टडी के मुताबिक देश में 38 करोड़ लोगों को कोरोना हो चुका है। इसी वजह से इसके बढ़ने की रफ्तार कम हो गई है।
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (IJMR) में प्रकाशित इस स्टडी रिपोर्ट का दावा है कि कोरोना को रोकने के लिए लगाया गया लॉकडाउन कारगर रहा। इसकी वजह से ही केस तेजी से नहीं बढ़े और अस्पतालों को इलाज के लिए वक्त मिल गया। इस रिपोर्ट में दिल्ली में जुलाई और सितंबर में हुए सीरो सर्वे को भी आधार बनाया है। आइए समझते हैं क्या होती है हर्ड इम्युनिटी और क्या है इस नई स्टडी का दावा?
सबसे पहले, क्या होती है हर्ड इम्युनिटी?
- सरल शब्दों में हर्ड इम्युनिटी यानी झुंड में प्रतिरक्षा विकसित हो जाना। इसका मतलब यह है कि धीरे-धीरे इतने लोगों में इम्युनिटी विकसित हो जाती है कि इंफेक्शन स्वस्थ लोगों तक पहुंच ही नहीं पाता और बीच में ही रुक जाता है।
- अब तक हर्ड इम्युनिटी को लेकर कई तरह की बातें सामने आई हैं। किसी स्टडी ने कहा कि 80% रिकवरी रेट होने पर हर्ड इम्युनिटी विकसित हो जाएगी तो वहीं WHO के अधिकारी और सरकार कहते रहे हैं कि जब तक वैक्सीन नहीं आता, हर्ड इम्युनिटी नहीं आएगी।
हर्ड इम्युनिटी पर नई स्टडी क्या कहती है?
- IJMR में पब्लिश इस स्टडी को मनिंद्र अग्रवाल, माधुरी कानिटकर और एम. विद्यासागर ने लिखा है। इसमें दिल्ली में जुलाई और सितंबर में हुए सीरो सर्वे के आधार पर एक मॉडल बनाया है। सीरो सर्वे देखें तो जुलाई में 23.5% और 33% आबादी में कोरोनावायरस के एंटीबॉडी मिले थे।
- स्टडी का दावा है कि नए मॉडल ने इस इंफेक्शन को समझने में मदद की। यदि मॉडल सही है तो 38 करोड़ लोगों को पहले ही कोरोनावायरस हो चुका है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि सुरक्षा उपायों का इस्तेमाल बंद करना है।
- यदि लॉकडाउन नहीं होता तो अब तक 1.47 करोड़ लोगों को कोरोना हो चुका होता और 26 लाख मौतें हो चुकी होती। पीक तो जून 2020 में ही आ गया होता। मौजूदा ट्रेंड देखें तो दो लाख से ज्यादा मौतें नहीं होने वाली।
नई स्टडी किस तरह की गई है?
- अब तक आजमाए गए गणितीय मॉडल्स में कोरोना के असिम्प्टमेटिक पेशेंट्स यानी बिना किसी लक्षण वाले मरीजों का सही आंकड़ा सामने नहीं आ सका है। टेस्ट करने की क्षमता सीमित थी और सीरोसर्विलांस का डेटा भी उपलब्ध नहीं हो सका।
- ऐसे में स्टडी में नया मॉडल आजमाया गया। इसे ससेप्टिबल असिम्प्टमेटिक इंफेक्टेड रिकवर्ड (SAIR) नाम दिया गया। इसके जरिए ही लॉकडाउन के इम्पैक्ट का आकलन किया गया और भविष्य के लिए पूर्वानुमान किया गया है।
…और क्या कहती है स्टडी?
- उन्होंने अपनी स्टडी में दावा किया कि मौजूदा डेटा बताता है कि 17 सितंबर 2020 को भारत में पीक आया। मॉडल में वास्तविक वृद्धि को 1.5 प्रतिशत बढ़ाया और चार दिन बाद को पीक माना। स्टडी के मुताबिक जिस दिन पीक आया उस दिन 39 लाख आबादी इंफेक्टेड थी या उनमें एंटीबॉडी थी।
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Source: DainikBhaskar.com