आर्मीनिया-अज़रबैजान युद्ध: नागोर्नो-काराबाख़ को लेकर ‘फ़र्ज़ी सूचनाओं’ की जंग – BBC हिंदी

  • क्रिस्टोफ़र गाइल्स और उपासना भट
  • बीबीसी रियलिटी चेक टीम और एंटी-डिस्इंफॉर्मेशन यूनिट

बीते कुछ सप्ताह से नागोर्नो-काराबाख़ को लेकर आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच जारी जंग के बीच सोशल मीडिया पर कई तरह की भ्रामक जानकारियां भी अधिक शेयर की जा रही हैं.

बीते सप्ताहांत दोनों देशों के बीच दूसरी बार युद्धविराम पर सहमति बनी थी, लेकिन इसके बावजूद जंग जारी हैं. अब तक इस युद्ध में सैंकड़ों लोगों की जान जा चुकी है.

आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान ने कहा है कि “मौजूदा स्तर पर” काराबाख़ के मुद्दे का कोई कूटनीतिक हल नहीं है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर माना जाता है कि नागोर्नो-काराबाख़ अज़रबैजान का इलाका है लेकिन ये इलाक़ा आर्मीनिया के कब्ज़े में है.

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‘फ़र्जी सूचनाओं की जंग’

हमें इस युद्ध से जुड़े कई पुराने और दोबारा एडिट किए गए वीडियोज़ मिले जिनको इस दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि ये ताज़ा संघर्ष की तस्वीरें हैं.

जंग के दौरान भ्रामक जानकारियां शेयर करना कोई नई बात नहीं है, ख़ास कर ऐसी खबरें जिनकी पुष्टि करना मुश्किल हो.

दक्षिण कॉकेशस की पहाड़ियों पर हो रही इस जंग के मैदान कर कुछ ही पत्रकार पहुंच पाए हैं. ऐसे में युद्ध के ताज़ा हालात के बारे में जानकारी के लिए लोग काफी हद तक सरकारी मीडिया पर निर्भर हैं. साथ ही वो जानकारी के लिए उन मोबाइल फुटेज पर भी निर्भर हैं जो सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे हैं. इनमें अपुष्ट वीडियो और तस्वीरों के साथ-साथ अफवाहें भी शामिल हैं.

बीबीसी ने ये भी पाया कि इस दौरान मामले के राजनीतिकरण से जुड़े हैशटैग भी सोशल मीडिया पर इस्तेमाल किए जा रहे हैं.

अज़रबैजान आर्मीनिया

मिसाइल के फर्जी वीडियो

अधिकांश ऑनलाइन मीडिया जो जानकारी पोस्ट कर रहे हैं उनमें युद्ध से जुड़ी ख़बरें, सरकारों से जारी की गई जानकारियां और तस्वीरें और अभियानों के स्लोगन शामिल हैं. साथ ही ऑनलाइन मीडिया में कई तरह के पुरानी वीडियो भी शेयर किए जा रहे हैं जिन्हें एडिट करके पोस्ट किया गया है.

इसमें जो वीडियोज़ सबसे अधिक शेयर किए गए हैं उनमें मिसाइल दाग़े जाने वाले वो वीडियोज़ हैं जिनका इस युद्ध से कोई लेना देना नहीं है.

एक फर्जी ट्वीट का स्क्रीनशॉट

ट्विटर पर पोस्ट किए गए एक वीडियो में दावा किया गया है कि ईरान की सीमा से लोग 2020 का अर्मीनिया-अज़रबैजान युद्ध देख रहे हैं. इस वीडियो जो ढाई लाख बार देखा गया है.

हालांकि रीवर्स इमेज सर्च से पता चला कि यह वीडियो दरअसल साल 2019 में रूस में आयोजित किए गए सेना दिवस का है. इस वीडियो में जो लोग दिख रहे हैं वो रूसी भाषा में बात कर रहे हैं और एक व्यक्ति के कपड़ों पर “रूस” लिखा हुआ है.

जब वीडियो पोस्ट करने वाले यूज़र को पता चला कि ये वीडियो फर्जी है तो उसने इसके लिए माफी मांगी. लेकिन इसके बावजूद वीडियो अब भी ट्विटर पर मौजूद है.

इसके साथ एक और वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया है जो एक जाने माने मिलिटरी गेम ‘आर्मा 3’ का है. इसे भी जंग का वीडियो कहा गया है.

इस वीडियो को फ़ेसबुक, यूट्यूब और टिकटॉक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी पोस्ट किया गया है.

एक फर्जी ट्वीट का स्क्रीनशॉट

एक भारतीय टेलिविज़न चैनल ने तो इस वीडियो का इस्तेमाल भी किया. एक अज़रबैजानी विमान पर आर्मीनियाई हमले का एक्सक्लूसिव फुटेज बता कर इसे प्रसारित भी किया गया.

लेकिन ये असली वीडियो नहीं बल्कि इसे एडिट करके बनाया गया है. असली वीडियो अगस्त 2020 में एक जापानी चैनल में यूट्यूब पर पोस्ट किया गया था और जिसके आख़िर में डिस्क्लेमर लिखा गया था कि ये “असली नहीं बल्कि फिक्शन” है.

क्या जंग में विदेशी लोग भी शामिल हैं?

अंतराराष्ट्रीय स्तर पर आर्मीनिया और अज़रबैजान की जंग को लेकर युद्ध के मैदान में मारे गए विदेशी सैनिकों की गंभीर चर्चा भी चल रही है. कई हलकों से सवाल उठ रहे हैं कि क्या विदेशी सैनिक भी इस लड़ाई में शामिल हैं. इस मामले में आर्मीनिया और अज़रबैजान एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं.

उदाहरण के तौर पर आर्मीनिया पर आरोप है कि वो ईराक़ के यज़ीदियों को लड़ाई में शामिल कर रहा है. हालांकि इस आरोप की अब तक पुष्टि नहीं हो पाई है.

इराक़ी-यज़ीदी सैनिकों का दावा करने वाले जो वीडियोज़ सोशल मीडिया पर पोस्ट किए जा रहे हैं उनसे इसकी पुष्टि संभव भी नहीं है, क्योंकि आर्मीनिया में क़रीब 30,000 यज़ीदी लोग रहते हैं और वो आर्मीनिया की तरफ से युद्ध में शिरकत कर रहे हैं.

ऐसे कई सोशल मीडिया अकाउंट हैं जिन पर आर्मीनियाई लोग गर्व के साथ सेना के कंधे से कंधा मिला कर लड़ रहे यज़ीदियों की तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं.

आर्मीनिया की संसद के एक सदस्य का एक ट्वीट

इधर अज़रबैजान पर भी आरोप लगाए जा रहे हैं कि अपनी सेना की स्थिति को और मज़बूत करने के लिए वो भी लड़ाई में विदेशी सैनिकों की मदद ले रहा है. हालांकि ये दावा भी फिलहाल विवादों से परे नहीं है.

अज़रबैजान पर ये आरोप तुर्की के साथ उसके रिश्तों को लेकर लगाए जा रहे हैं जो खुल कर अज़रबैजान का समर्थन कर रहा है. दावा किया जा रहा है कि वो अज़रबैजान की तरफ से लड़ने के लिए सीरियाई लड़ाकों की मदद कर रहा है.

फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और मानवाधिकार संगठन का कहना है कि युद्ध में अज़रबैजान की तरफ से विदेशी सैनिक मौजूद हैं. लेकिन तुर्की की सरकार ने इस आरोप पर कड़ा ऐतराज़ जताया है और इससे इनकार किया है.

इससे पहले भी लीबिया में मौजूद संयुक्त राष्ट्र समर्थित सरकार के शासन के दौरान तुर्की पर वहां विद्रोहियों से लड़ने के लिए सीरियाई सैनिकों को भेजने का आरोप लगाया गया था.

सोशल मीडिया पर जंग में सीरियाई सैनिकों के शामिल होने का दावा करते कई वीडियो वायरल हुए थे, जिसके बाद अज़रबैजान पर इस तरह के आरोप लगाए गए. लेकिन इसकी पुष्टि करना मुश्किल है कि ये वीडियोज़ हाल की जंग के ही हैं और इसमें दिखाए गए लोग सीरियाई लड़ाके ही हैं.

बीबीसी अरबी सेवा ने एक व्यक्ति से संपर्क किया जिनका ये दावा था कि अज़रबैजान की सीमा पर “सेना के अहम ठिकानों पर पहरा देने के लिए” उत्तरी सीरिया में उनकी नियुक्ति की गई थी.

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अंतरराष्ट्रीय समर्थन के लिए जारी मुहिम

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन प्राप्त करने के लिए और अपनी समस्या के संबंध में जागरूकता पैदा करने के लिए अज़रबैजान और आर्मीनिया दोनों के लिए ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म जंग का नया मैदान बन गए हैं.

इस जंग के संबंध में कई ऐसे लोग सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं जो इस इलाक़े से दूर हैं, ख़ास कर जानी मानी मॉडल किम कर्दाशियां जो खुद आर्मीनियाई मूल की हैं और सोशल मीडिया पर उनके लाखों फॉलोअर्स हैं.

युद्ध के दौरान सोशल मीडिया पर इस्तेमाल किए जा रहे शब्दों के बारे में एक आकलन में बीबीसी ने पाया कि युद्ध से जुड़े शब्दों में काफी इज़ाफा देखा गया है.

बीते सप्ताह में फ़ेसबुक पर ‘आर्मीनिया’ शब्द को 2 करोड़ बार और ‘अज़रबैजान’ शब्द को 1.7 करोड़ बार देखा गया. इसके साथ ही अंग्रेज़ी में #WeWillWin, #DontBelieveArmenia, और #StopAzerbaijanAggression जैसे हैशटैग्स का इस्तेमाल किया जा रहा है. वहीं आर्मीनियाई, अज़ेरी, तुर्की और अन्य स्थानीय भाषा में भी इन विषयों पर लोग सर्च कर रहे हैं.

अज़रबैजान के रक्षा मंत्रालय की शेयर की गई एक तस्वीर

इस मामले में दोनों मुल्कों की सरकारें भी पीछे नहीं हैं.

अज़रबैजान का रक्षा मंत्रालय युद्ध से जुड़ी ऐसी तस्वीरें और वीडियोज़ शेयर कर रहा है जिनमें आर्मीनियाई सैन्य ठिकानों पर हमले को दिखाया जाता है.

इन वीडियोज़ में हमलों के लिए सेना की तारीफ भी होती है. इस तरह के एक वीडियो को फ़ेसबुक पर एक लाख से अधिक बार देखा गया है.

फर्जी सूचना से लड़ने के लिए अभियान

युद्ध से जुड़ी इन सूचनाओं को साझा करने और इसमें एक दूसरे से आगे रहने के लिए बड़े पैमाने पर समन्वय के साथ कोशिशें की जा रही हैं.

कई आर्मीनियाई सोशल मीडिया यूज़र्स इस बात पर ऑनलाइन चर्चा कर रहे हैं कि जून में हुए संघर्ष के दौरान वो सोशल मीडिया का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाए थे, जबकि हाल के हफ़्तों में उन्होंने इसे बेहतर किया है.

“साइबर आर्मी” और “मीडिया फाइटर” जैसे नामों के साथ कई निजी फ़ेसबुक ग्रुप हैं जहां आर्मीनिया का समर्थन करने वाले इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि किस तरह अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने के लिए पोसट्स और हैशटैग का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

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दो हफ़्ते पहले इस तरह के एक ग्रूप में अब तक एक लाख सदस्य शामिल हो चुके हैं.

अज़रबैजान के लोगों ने भी इस तरह के ग्रूप बनाए हैं जहां को युद्ध से जुड़ी जानकारी साझा कर रहे हैं.

ऑनलाइन समर्थन पाने के लिए ये ग्रूप क़ानूनी तरीके से बनाए गए हैं लेकिन इन पर “ग़लत ऑनलाइन व्यवहार” के साथ फर्जी अकाउंट और नामों के इस्तेमाल के आरोप लगाए जा रहे हैं.

ऑस्ट्रेलिया स्थित इंटरनेशनल साइबर पॉलिसी सेंटर (आईसीपीसी) इस साल सितंबर के महीने के आख़िर में इस जंग से जुड़े हैशटैग का इस्तेमाल करने वाले कई नए ट्विटर अकाउंट बनाए गए हैं.

आईसीपीसी की रिपोर्ट के अनुसार, “इन कोशिशों में असल यूज़र्स के द्वारा समन्वित कोशिश शामिल हो सकती है, लेकिन साथ ही संदिग्ध गतिविधियां भी शामिल हो सकती है.”

हाल में फ़ेसबुक ने अज़रबैजान से जुड़े कई सोशल मीडिया अकाउंट हटा दिए हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार “फ़ेसबुक पर 589 अकाउंट, 7,906 पन्ने और इंस्टाग्राम पर 447 अकाउंट “ग़लत ऑनलाइन व्यवहार” में लिप्त पाए गए हैं.”

“ऐसा लगता है कि केवल समर्थन पाने के उद्देश्य से इस नेटवर्क ने इन ऑनलाइन पन्नों में काम करने के लिए अज़रबैजान में लोगों को लगाया.”

“इस पर ऐसी ख़बरें और वीडियो पोस्ट की गई थीं जिनमें स्थानीय स्तर पर हो रहे कार्यक्रम, राजनीति, सरकारी नीतियां और आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच जारी तनाव के बारे में चर्चा की जानकारी थी.”

आर्मीनिया अज़रबैजान जंग
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नागोर्नो-काराबाख़ के बारे में कुछ बातें

  • ये 4,400 वर्ग किलोमीटर यानी 1,700 वर्ग मील का पहाड़ी इलाक़ा है.
  • पारंपरिक तौर पर यहां ईसाई आर्मीनियाई और तुर्क मुसलमान रहते हैं.
  • सोवियत संघ के विघटन से पहले ये एक स्वायत्त क्षेत्र बन गया था जो अज़रबैजान का हिस्सा था.
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस इलाक़े को अज़रबैजान के हिस्से के रूप में मान्यता दी जाती है, लेकिन यहां की अधिकांश आबादी आर्मीनियाई है.
  • आर्मीनिया समेत संयुक्त राष्ट्र का कोई सदस्य किसी स्व-घोषित अधिकारी को मान्यता नहीं देता.
  • 1980 के दशक से अंत से 1990 के दशक तक चले युद्ध में 30 हज़ार से अधिक लोगों की जानें गईं. उस दौरान अलगावादी ताक़तों ने कुछ इलाक़ों पर कब्ज़ा जमा लिया.
  • उस दौरान अलगावादी ताक़तों ने नागोर्नो-काराबाख के कुछ इलाक़ों पर कब्ज़ा जमा लिया. 1994 में यहाँ युद्धविराम की घोषणा हुई थी, उसके बाद भी यहाँ गतिरोध जारी है और अक्सर इस क्षेत्र में तनाव पैदा हो जाता है.
  • 1994 में यहां युद्धविराम हुआ जिसके बाद से यहां गतिरोध जारी है.
  • तुर्की खुल कर अज़रबैजान का समर्थन करता है.
  • यहां रूस का एक सैन्य ठिकाना है.

(ये रिपोर्ट बीबीसी मॉनिटरिंग के जॉन होरान और आर्मेन शाहबाज़ियान की मदद से तैयार की गई है.)

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