Bihar Assembly Election 2020: तेजस्वी बरत रहे लालू से परहेज, पीएम मोदी की जगह निशाने पर हैं नीतीश कुमार – अमर उजाला

तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद इस बार नए रंग-ढंग में है। तेजस्वी न सिर्फ अपने पिता लालू प्रसाद बल्कि उनकी सियासी शैली से भी परहेज बरत रहे हैं। हर चुनाव में सांप्रदायिकता और सामाजिक न्याय पर जोर देने वाली पार्टी इस बार रोजगार, बाढ़, पलायन जैसे मुद्दों को तरजीह दे रही है। तेजस्वी के निशाने पर इस बार पीएम मोदी नहीं बल्कि सीएम नीतीश कुमार हैं।

विज्ञापन

तेजस्वी के नेतृत्व में चुनावी महासमर में उतरे राजद की नई रणनीति इस बार चर्चा में है। तेजस्वी ने अपने पिता लालू प्रसाद से एक खास तरह की दूरी बना ली है। पोस्टरों में लालू प्रसाद-राबड़ी देवी की जगह बस तेजस्वी ही छाए हुए हैं। चुनाव प्रचार में लालू प्रसाद की शैली एकदम से गायब है। चुनावी अधिसूचना जारी होने से पूर्व ही अपने पिता के कार्यकाल के दौरान हुई गलतियों की माफी मांग कर सर्वणों को साधने की कोशिश कर चुके तेजस्वी अपने प्रचार में भूल कर भी अपने माता-पिता के शासन की बात नहीं कर रहे।

मोदी पर चुप्पी, नीतीश पर निशाना

लोकसभा के बीते दो और पिछले विधानसभा चुनाव में राजद ने सर्वाधिक निशाना पीएम मोदी पर साधा था। इस बार तेजस्वी और राजद के नेताओं के हमले के केंद्र में नीतीश हैं। अब तक कई रैलियां और कार्यक्रम में तेजस्वी ने सांप्रदायिकता को मुद्दा बनाने से परहेज रखा है। राजद सूत्रों का कहना है कि जिस राज्य के विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे हावी रहे हैं, वहां भाजपा और राजग को मुश्किलें आई हैं। इसलिए तेजस्वी ने पार्टी के स्टार प्रचारकों से भी पीएम पर हमला बोलने से बचने का निर्देश दिया है।

लालू और लालू शैली से दूरी की वजह
लालू और उनकी शैली की राजनीति के कारण राजद बीते कई चुनावों से अपनी पहुंच मुस्लिम और यादव मतदाताओं के बाहर नहीं बना पाया। डेढ़ दशक में पार्टी ने पाया कि महज इसी समीकरण के सहारे सत्ता में वापसी संभव नहीं है। इसी शैली के कारण अगड़ी जातियां राजद के खिलाफ एकजुट होती रही हैं। इसके अलावा अति पिछड़ा वर्ग में शामिल कई जातियां भी राजद के खिलाफ गोलबंद हो जाती हैं। इस बार तेजस्वी अति पिछड़ा वर्ग में पैठ बढ़ाना चाहते हैं। उनकी निगाहें राजग से नाराज सवर्ण मतदाताओं के एक तबके पर भी है।

एंटी इन्कम्बेंसी भुनाने-युवाओं को साधने पर जोर
राजद की रणनीति नीतीश के 15 साल के कार्यकाल के बाद उपजे स्वाभाविक एंटी इन्कम्बेंसी को भुनाने और युवाओं को साधने की है। युवा मतदाताओं को रिझाने के लिए तेजस्वी पलायन, बेरोजगारी, उद्योग-धंधा, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दे उछाल रहे हैं। तेजस्वी लगातार कैबिनेट की पहली बैठक में दस लाख नौकरियों का वादा कर रहे हैं।

पीएम पर हमले से परहेज की वजह
पीएम पर हमले से जहां राजद की स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ने की रणनीति पर पानी फिरेगा, वहीं पीएम की एक बड़े वर्ग में गहरी पैठ के चलते भी राजद केंद्र पर हमलावर नहीं है। पार्टी का आकलन है कि राज्य में पीएम के खिलाफ कोई नाराजगी नहीं है। उल्टे लोग मुफ्त राशन, जनधन खातों में नकद राशि मिलने, उज्जवला, शौचालय, किसान सम्मान जैसी योजनाओं के कारण पीएम से खुश हैं। हालांकि पीएम से खुश दिखने वालों में एक बड़ा वर्ग नीतीश से नाराज है। राजद इसी स्थिति का लाभ उठाने के लिए खासतौर पर नीतीश और राज्य सरकार को निशाना बनाकर स्थानीय मुद्दों को उछाल रहा है।

दूसरे राज्यों से ली सीख
बीते लोकसभा के बाद जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, वहां स्थानीय मुद्दे पर अड़े रहने का लाभ विपक्ष को मिला है। स्थानीय मुद्दों के कारण ही भाजपा को बगल के झारखंड की सत्ता गंवानी पड़ी। दिल्ली में लाख कोशिशों के बावजूद भाजपा को करारी हार झेलनी पड़ी। हरियाणा में पार्टी हांफते-कांपते गठबंधन की बदौलत सत्ता बचाने में कामयाब रही। इन सभी राज्यों में विपक्ष ने स्थानीय मुद्दों को महत्व दिया था। राजद अब बिहार में भी यही फार्मूला आजमाने की कोशिश में है।

चिराग भी पिता की छाया से दूर
तेजस्वी के अलावा लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान भी इस बार अपने पिता के साये से दूर हैं। पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद खुद मोर्चा संभाल रहे चिराग ने भी अपने पिता के उलट रणनीति अपनाई है। दलित राजनीति के लिए जानी जाने वाली लोजपा के उम्मीदवारों की सूची में 42 फीसदी अगड़ी जातियां हैं।

Related posts