पिता रामविलास का साया सिर से उठने के बाद चिराग के सामने हैं ये 5 बड़ी चुनौतियां – News18 इंडिया

दिवंगत रामविलास पासवान एवं उनके पुत्र चिराग पासवान (फाइल फोटो)

अब जब रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) नहीं रहे तो सियासत का संतुलन बिठाना चिराग पासवान (Chirag Paswan) के लिए एक चुनौती होगी.

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पटना. केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (Lok Janshakti Party) के संस्थापक रहे रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) के निधन से बिहार की राजनीति में जहां एक शून्य उभरा है, वहीं दलित राजनीति की आवाज बुलंद करने वाला एक रहनुमा भी चला गया है. खास बात यह है कि साल 1990 के पिछड़ा उभार के दौर से आगे निकल रामविलास ने जिस तरह समाज के हर वर्ग से तालमेल बिठाया और दलित राजनीति (Dalit Politics) को अपना आधार बनाए रखा. जाहिर तौर पर चिराग पासवान (Chirag Paswan) के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि ऐसे वक्त में जब पिता का साया सिर से उठ गया तो सियासत की उस विरासत को कैसे बररकार रखा जाए. इसके साथ ही घर के बड़े लड़के होने के साथ ही लोजपा (LJP) अध्यक्ष के तौर पर चिराग पासवान के सामने अन्य कई चुनौतियां मौजूद हैं.

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पहली चुनौती:  पहली चुनौती यह है कि जिस तरह से रामविलास पासवान अपने पूरे परिवार को (जिनमें उनके भाई-भतीजे और तमाम सगे-संबंधी शामिल हैं) एकजुट रखा था और अधिकतर लोगों की राजनीति में एंट्री कराई थी. इस स्थिति में चिराग पासवान अपने परिवार को कैसे समेट और सहेज पाते हैं, यह देखने वाली बात होगी. दूसरी चुनौती:  चिराग पासवान के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एकजुट रखने की होगी. इसके साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं को मोटिवेट करने से लेकर उन्हें अपने पिता की तरह संतुलन बिठाकर चलने वाले नेता के तौर पर अपनी पहचान बनानी होगी. अब तक ऐसा माना जाता रहा है कि चिराग पासवान अपने कार्यकर्ताओं से अधिक घुलते-मिलते नहीं हैं, लेकिन पिता के चले जाने के बाद और उनके लोजपा अध्यक्ष रहने के बाद उनकी अतिरिक्त जिम्मेदारी बन जाती है.तीसरी चुनौती:  चिराग पासवान के समक्ष तीसरी बड़ी चुनौती यह है कि जिस तरह हाल में ही उन्होंने सीएम नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए बिहार एनडीए से अलग होने का फैसला किया. इससे सीएम नीतीश और चिराग के बीच काफी खटास दिख रही है. सीएम नीतीश की हाल में कही गई बातों से लगता है कि आने वाले समय में वह केंद्र पर यह दबाव भी बना सकते हैं कि चिराग की पार्टी को केंद्र में भी एनडीए से निकाला जाए. हालांकि, ये कयास हैं, लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं कि ऐसी किसी भी आशंका से निपटने के लिए भी चिराग को तैयार रहना होगा.

चौथी चुनौती: जिस तरह से रामविलास पासवान बिहार की राजनीति की हर नब्ज से परिचित थे, ऐसी ही अपेक्षा चिराग पासवान से भी उनके कार्यकर्ता और उनके नेता करेंगे. जाहिर तौर पर रामविलास पासवान ने जिस अंदाज में बिहार की राजनीति और केंद्र की सियासत के साथ तालमेल बिठाया और दोनों को एक साथ साधा वह काबिले तारीफ है. 6 प्रधानमंत्री के साथ अपना योगदान देना और छाप छोड़ना कोई सामान्य बात तो नहीं ही कही जाएगी. जाहिर है चिराग के सामने अपने पिता की इस छवि को बरकरार रखने की भी चुनौती होगी.

पांचवीं चुनौती: जब से चिराग पासवान अपनी पार्टी के अध्यक्ष बने हैं, उन्होंने 2 बड़े फैसले किए हैं. पहला झारखंड चुनाव में एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने का और दूसरा बिहार में सीएम नीतीश के कार्यकाल में भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उनके खिलाफ आवाज बुलंद की. बिहार एनडीए से अलग होना भी चिराग का एक साहसिक कदम है.

जाहिर तौर पर रामविलास पासवान भी उनके इस निर्णय के साथ थे. लेकिन, अब जब रामविलास नहीं रहे तो सियासत का संतुलन बिठाने में चिराग के सामने चुनौती तो होगी ही साथ ही बिहार विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी को एक नए कलेवर और तेवर में स्थापित करने का भी चैलेंज होगा.

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