शिरोमणि अकाली दल से नाता टूटा, अब पंजाब में चुनावी संग्राम के लिए कमर कस रही है बीजेपी – Navbharat Times

हाइलाइट्स:

  • बीजेपी ने शिरोमणि अकाली दल से फिर संपर्क करने की जगह पंजाब में अकेले ही आगे बढ़ने का फैसला किया है
  • बीजेपी को इसके लिए पंजाब के ग्रामीण इलाकों में आधार बनाना होगा, ये वही क्षेत्र हैं जहां पार्टी से सबसे ज्‍यादा नाराजगी है
  • साल 2022 के चुनावों से पहले बीजेपी छोटे दलों की ओर देख रही है, खासकर अकालियों से अलग हुए दलों की ओर

अमन शर्मा, चंडीगढ़
बीजेपी ने पिछले 10 दिनों में कृषि बिल पर नाराज अपने पुराने साथी शिरोमणि अकाली दल से फिर संपर्क करने की कोई कोशिश नहीं की है। इसकी जगह बीजेपी ने एक कड़ा फैसला लिया है, पंजाब में अकेले ही आगे बढ़ने का।

लेकिन बीजेपी को इसके लिए पंजाब के ग्रामीण इलाकों में आधार बनाना होगा। ये वही क्षेत्र हैं जहां पार्टी को किसानों का सबसे ज्‍यादा विरोध झेलना होगा। दरअसल, बीजेपी पंजाब में शहरी मतदाताओं वाली पार्टी रही है, केवल 7 से 8 जिलों में ही उसका असर है। इसके अलावा नवजोत सिंह सिद्धू के जाने के बाद उसके पास कोई बड़ा सिख नेता भी नहीं बचा।

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छोटे दलों की और देख रही बीजेपी
साल 2019 में उसे 10 प्रतिशत वोट मिले थे और पंजाब से केवल दो एमपी और एमएलए ही जीत पाए थे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि साल 2022 के चुनावों से पहले बीजेपी छोटे दलों की ओर देख रही है, इनमें शिरोमणि अकाली दल से अलग हुए सुखदेव सिंह ढींढसा का गुट शामिल है। हालांकि ढींढसा का कहना है कि वह बीजेपी की जगह किसी क्षेत्रीय दल का हाथ पकड़ना बेहतर समझेंगे, उनकी प्राथमिका किसानों की समस्‍याएं दूर करना होगा।

बीजेपी के पंजाब अध्‍यक्ष अ‍श्‍वनी शर्मा के मुताबिक, शिरोमणि अकाली दल का यह कहना गलत है बीजेपी किसान विरोधी है। किसानों को न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य के बारे में कही जा रही अफवाहों पर भरोसा नहीं करना चाहिए क्‍योंकि पंजाब में न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) पर अनाजों की खरीद शनिवार से शुरू हो चुकी है।

‘किसानों को भरोसे में लेगी बीजेपी’
पंजाब से बीजेपी के नवनियुक्त महासचिव तरुण चुग ने हमारे सहयोगी इकनॉमिक टाइम्‍स को बताया कि बीजेपी हर किसान के पास जाकर उन्‍हें मोदी का किसान विकास मंत्र समझाने की कोशिश करेगी। चुग का कहना है क‍ि बीजेपी ही देश में इकलौती पार्टी है जिसमें सबसे ज्‍यादा किसान एमपी और एमएलए हैं। साल 2019 और 2017 के चुनावों में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के लिए चुग शिरोमणि अकाली दल के प्रति एंटी इन्‍कमबेंसी फैक्‍टर को जिम्‍मेदार मानते हैं।

इन बातों ने तय किया बीजेपी का रुख
दिल्‍ली के एक वरिष्‍ठ बीजेपी नेता ने बताया कि पार्टी का रुख इन तथ्‍यों ने तय किया है, : किसान बिल को पास कराना, वरिष्‍ठ अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल की जगह उनके बेटे सुखबीर बादल के साथ काम करने में असहजता और यह अहसास कि पिछले चुनाव के बाद से शिरोमणि अकाली दल की अलोकप्रियता का असर बीजेपी के शहरी वोटों पर पड़ रहा है। इसीलिए बीजेपी ने हरियाणा और दिल्‍ली चुनावों के समय शिरोमणि अकाली दल को साथ लेने से इनकार कर दिया था।

एक बीजेपी नेता का कहना था, ‘कैबिनेट मीटिंग के दौरान तो हरसिमरत बादल ने कृषि अध्‍यादेश या बिल का कोई लिखित विरोध नहीं किया था। सुखबीर बादल पहले तो केंद्र से लेटर चाहते थे कि वह सुनिश्चित करे कि एमएसपी प्रक्रिया जारी रहेगी। उन्‍हें यह लेटर दे दिया गया। इसके बाद वह चाहते थे कि ऐसा सदन में कहा जाए, यह भी कयिा गया।’

अकाली नेताओं का रवैया बना बड़ी वजह
हालांकि, बीजेपी ने यह बात साफ कर दी थी कि एमएसपी को बिल का हिस्‍सा नहीं बनाया जा सकता। इसी मुद्दे पर बादल नेता ने पहले कैबिनेट और फिर गठबंधन छोड़ दिया। बीजेपी के एक वरिष्‍ठ नेता के अनुसार, ‘संसद में सबके सामने उन्‍होंने जो रवैया दिखाया था उसके बाद ही तय हो गया था कि अब बादल से कोई संबंध नहीं रखना है। इसीलिए जैसे हरसिमरत बादल ने इस्‍तीफा दिया वह उसी शाम को स्‍वीकार भी कर लिया गया।

इसके अलावा सुखबीर बादल का यह बयान कि इस इस्‍तीफे से ‘मोदी हिल गए हैं’ भी बीजेपी को नहीं भया। एक बीजेपी नेता का कहना थ कि प्रकाश सिंह बादल कभी ऐसी भाषा का इस्‍तेमाल नहीं करते। इस बीच पंजाब कांग्रेस अध्‍यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा है कि इस्‍तीफे के बाद न तो पीएम ने बादल से मुलाकात की और न ही प्रकाश सिंह बादल से बात ही की है।












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