किन कारणों से राज्यसभा से सस्पेंड हो सकते हैं सदस्य, क्या हैं सभापति के अधिकार – News18 हिंदी

राज्य सभा (Rajya Sabha) में हंगामे को लेकर 8 सांसदों को निलंबित कर दिए जाने के बाद विपक्ष (Opposition) ने बहिष्कार कर दिया तो निलंबित सांसद (Suspended MP) संसद भवन की लॉन में धरना देते रहे. विपक्षी सांसदों को मनाने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन इसी बीच क्या आपके मन में ये सवाल आता है कि किन हालात में सदस्यों को राज्य सभा से​ कानूनन निलंबित (Suspension of MPs) किया जाता है और इस बारे में सभापति (Rajya Sabha Chairman) के पास क्या अधिकार होते हैं.

राज्यसभा में अथवा सभा से संबंधित मामलों का संबंध है, सभापति के पास संविधान और नियम की व्याख्या करने का अधिकार होता है और ऐसी व्याख्या के संबंध में सभापति के साथ कोई भी तर्क-वितर्क या विवाद नहीं कर सकता है. सभापति के विनिर्णयों पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता, उनकी आलोचना नहीं की जा सकती और सभापति के किसी विनिर्णय का विरोध करना सभा और सभापति की अवमानना होती है.

सभापति अपने निर्णयों का कारण बताने के लिए बाध्य नहीं होता. आम तौर पर ये निर्णय सभापति द्वारा सभा में दिए जाते हैं परंतु कोई आकस्मिकता होने पर उसके विनिर्णय को उसके अनुरोध पर उप-सभापति भी सभा में पढ़ सकता है. संविधान के मुताबिक सभापति के पास कई तरह के अधिकार होते हैं. संविधान सभापति की शक्तियां एवं कर्तव्य इस तरह निर्धारित करता है :

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राज्य सभा की फाइल तस्वीर.

* वह सभा को स्थगित अथवा गणपूर्ति न होने की स्थिति में बैठक को निलंबित कर सकता है.
* किसी सदस्य द्वारा सभा से त्याग-पत्र देने के मामले में, सभापति के पास अधिकार होता है कि वह उसे स्वीकार करे या नहीं.
* संविधान की दसवीं अनुसूची के अन्तर्गत दल-बदल के आधार पर राज्य सभा के किसी सदस्य के बारे में यह निर्णय कर सकता है.
* वह इस अनुसूची के उपबंधों को प्रभावकारी बनाने के लिए भी नियम बना सकता है.
* सभापति के पास यह शक्ति भी है कि वह निर्देश दे सके कि नियमों के जानबूझकर उल्लंघन पर वही कार्यवाही होगी, जो विशेषाधिकार हनन मामले में होती है.
* सभापति किसी सदस्य को सभा में अपनी मातृभाषा में संबोधित करने की अनुमति दे सकता है.

इनके साथ ही, सभा में व्यवस्था बनाए रखना सभापति का मौलिक कर्त्तव्य भी और अधिकार भी. इसके लिए सभापति के पास कई अनुशासनात्मक शक्तियां हैं. जैसे किसी सदस्य के भाषण में विसंगति या दोहराव को रोकना, सदस्यों की अनावश्यक या अपमानजनक टिप्पणी पर हस्तक्षेप करना और उसे ऐसी टिप्पणी वापस लेने के लिए कहना.

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सभापति वाद-विवाद में असंसदीय या अमर्यादित शब्दों को हटाने का आदेश भी दे सकता है. वह अनुचित व्यवहार के दोषी किसी सदस्य को सभा से बाहर जाने के लिए कह सकता है और यदि कोई सदस्य सभापीठ का अपमान करता है या सभा की कार्यवाही में बाधा डालता है तो उसे निलंबित कर सकता है. वह गंभीर अव्यवस्था के मामले में सभा की बैठक को स्थगित या निलंबित भी कर सकता है.

सदस्यों के निलंबन की स्थितियां
किसी सदस्य का व्यवहार यदि प्रोटोकॉल के मुताबिक न हो, तो सभापति उससे कह सकता है कि वह सदन से चला जाए. ऐसी स्थिति में उस सदस्य को दिन भर की शेष कार्यवाही से गैर ​हाज़िर होना पड़ सकता है. दूसरे, सदस्य के निलंबन की नौबत उस स्थिति में आ सकती है, जब वह सदन की कार्यवाही को लगातार बाधित कर रहा हो या सभापति के पद का नियमों के मुताबिक अपमान कर रहा हो.

निलंबन की स्थिति में पॉइंट ऑफ ऑर्डर की व्यवस्था है. कोई सदस्य अपने पॉइंट को सभापति के सामने रख सकता है और इस पर विचार के बाद सभापति का निर्णय ही अंतिम होता है. सभापति के पास अपने फैसलों को लागू करवाने के लिए पर्याप्त अधिकार हैं इसलिए सदस्य उसके अंतिम निर्णय को चुनौती नहीं दे सकते. यही नहीं, संविधान के अनुच्छेद 122 में प्रावधान है कि संसद के कामकाज की वैधता को प्रक्रियाओं की कथित अनियमितताओं के आधार पर अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती.

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