Corona Vaccine Update: जानिए Bharat Biotech के बारे में, ICMR के साथ बना रही कोरोना वैक्‍सीन – Navbharat Times

सांकेतिक तस्‍वीर।
हाइलाइट्स

  • हैदराबाद की कंपनी है Bharat Biotech International Ltd, ICMR के साथ मिलकर बनाएगी कोविड-19 की वैक्‍सीन
  • शानदार रहा है ट्रैक रिकॉर्ड, इन्‍फ्लुएंजा, H1N1 वायरस, रोटावायरस, जीका वायरस के लिए बना चुकी है वैक्‍सीन
  • बिल गेट्स भी करते रहे हैं भारत बायोटेक की मदद, वैक्‍सीन डेवलपमेंट के लिए कई बार दिया पैसा

नई दिल्‍ली

Bharat Biotech International Ltd (BBIL), ये हैदराबाद की उस कंपनी का नाम है जो भारत के लिए कोरोना की वैक्‍सीन बना रही है। BBIL और ICMR मिलकर कोरोना वायरस का टीका डेवलप करेंगे। भारत बायोटेक को पुणे के नेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ वायरलॉजी (NIV Pune) में आइसोलेट कर रखा गया वायरस का का एक स्‍ट्रेन भी ट्रांसफर किया गया है। वैक्‍सीन डेवलपमेंट में BBIL को ICMR-NIV से पूरा सहयोग मिलेगा। यानी यह वैक्‍सीन पूरी तरह से भारत में बनेगी।

Bharat Biotech में क्‍या है खास

भारत बायोटेक का प्‍लांट, एशिया-पैसिफिक के सबसे बड़े फार्मास्‍यूटिकल मैनुफैक्‍चरिंग प्‍लांट्स में से एक है। साल 1996 में भारतीय वैज्ञानिक डॉ. कृष्‍णा ऐल्‍ला ने भारत बायोटेक की नींव रखी थी। वो अमेरिका से ये इरादा लेकर लौटे थे कि भारत में इनोवेटिव वैक्‍सीन्‍स बनाएंगे। वही इसके चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्‍टर हैं। वैक्‍सीन बनाना भारत बायोटेक की खासियत है। कंपनी अब तक 160 से ज्‍यादा पेटेंट करा चुकी है। BBIL कोरियन फूड एंड ड्रग्‍स एडमिनिस्‍ट्रेशन (KFDA) से ऑडिट और अप्रूव्‍ड होने वाली देश की पहली कंपनी है।

कोरोना इलाज के बदल चुके हैं ये नियम
कोरोना इलाज के बदल चुके हैं ये नियमकोरोना वायरस संक्रमित मरीजों को रिकवर होने के बाद डिस्‍चार्ज करने की पॉलिसी में बदलाव हुआ है। केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने नई पॉलिसी शनिवार को जारी की।

पहले कब-कब बनाई वैक्‍सीन

  • साल 1998 में कंपनी ने दुनिया की पहली सीजियम क्‍लोराइड फ्री हेपेटाइटिस B की वैक्‍सीन बनाई। इसे डॉ एपीजे अब्‍दुल कलाम ने लॉन्‍च किया था। अगले साल तक कंपनी ने वह वैक्‍सीन बनाने की क्षमता 100 मिलियन कर ली।
  • भारत बायोटेक ने 2006 में कंपनी ने रेबीज की वैक्‍सीन बनाई। तब Rabirix नाम से लॉन्‍च वह क्रोमॅटोग्रैफिकली प्‍यूरिफाइड वैक्‍सीन अब INDIRAB हो गई है।
  • 2007 में कंपनी ने इन्‍फ्लुएंजा टाइप B के लिए वैक्‍सीन बनाई। वह इस बीमारी के लिए भारत में बनी पहली वैक्‍सीन थी।
  • 2009 में भारत बायोटेक ने पेंटावेलेंट कॉम्बिनेशन वैक्‍सीन बनाई। इसे COMVAC 5 के नाम से लॉन्‍च किया गया। इसमें पहले से भरी हुई पांच सीरिंज थीं। ये डिप्‍थीरिया, टिटनस, परट्यूसिस, हेपेटाइटिस B और हीमोफिलस इन्‍फ्लुएंजा टाइप B नाम की 5 बीमारियों के टीके हैं। यह कंपनी का बेस्‍ट-सेलिंग प्रॉडक्‍ट है।
  • 2010 में कंपनी ने H1N1 स्‍वाइन फ्लू वायरस के लिए भारत की पहली सेल कल्‍चर बेस्‍ड वैक्‍सीन तैयार की।
  • BBIL ने 2013 में दुनिया की टायफाइड की पहली क्लिनिकली प्रूवेन वैक्‍सीन Typbar TCV लॉन्‍च की।
  • साल 2014 में कंपनी ने जापानी इंसेफेलाइटिस के सभी स्‍ट्रेन्‍स की एक वैक्‍सीन JENVAC मार्केट में उतारी। अगले ही साल, भारत बायोटेक ने ‘मेक इन इंडिया’ के तहत पहली वैक्‍सीन बनाई। ROTAVAC नाम की वैक्‍सीन रोटावायरस के लिए बनाई गई थी। वैक्‍सीन को पीएम नरेंद्र मोदी ने लॉन्‍च किया था।
  • भारत बायोटेक जीका वायरस वैक्‍सीन के लिए ग्‍लोबल पेटेंट फाइल करने वाली दुनिया की पहली कंपनी है।

1- फेवीपिरवीर दवा

  • 1- फेवीपिरवीर दवा

    अब फेवीपिरवीर (Favipiravir) दवा के क्लीनिकल ट्रायल की भी मंजूरी मिल गई है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के महानिदेशक (डीजी) शेखर मांडे ने बताया कि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DGCI) ने फेवीपिरवीर के साथ-साथ फाइटोफार्मास्यूटिकल (Phytopharmaceutical) दवा के क्लिनिकल ट्रायल को मंजूरी दे दी है। अगर ट्रायल कामयाब रहा तो कोरोना के इलाज के लिए सस्ते में दवा उपलब्ध हो जाएगी।
  • 2- लोपिनावारी/रिटोनावीर दवा

    लोपिनावारी/रिटोनावीर (Lopinavir/ritonavir) एक कॉम्बिनेशन दवा है, जिसका इस्तेमाल एचआईवी (HIV)/एड्स (AIDS) के इलाज में किया जाता है। इस दवा का इस्तेमाल कोरोना परिवार के ही सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिन्ड्रोम (SARS) और मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिन्ड्रोम (MERS) के खिलाफ इस दवा का इस्तेमाल हो चुका है। आईसीएमआर (ICMR) की ओर से भी इसके इस्तेमाल की इजाजत मिली हुई है। हालांकि, इस दवा के इस्तेमाल से पहले मरीज से इसके लिए लिखित इजाजत जरूरी है।
  • 3- इटोलिज़ुमैब दवा

    बायोकॉन की इटोलिज़ुमैब (Itolizumab) दवा त्वचा रोगों के इलाज में इस्तेमाल की जाती है। इसका इस्तेमाल सिर्फ उन्हीं कोरोना के मरीजों पर किया जाता है, जो गंभीर श्रेणी में पहुंच चुके होते हैं। इस एंटी-इंफ्लेमेटरी दवा का मुंबई और दिल्ली में ट्रायल चल रहा है।
  • 4- तोसिलिज़ुमैब दवा

    कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों का इलाज करने के लिए आर्थराइटिस में इस्तेमाल होने वाली दवा तोसिलिज़मैब (Tocilizumab) का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। इस दवा से इम्यून सिस्टम बढ़ता है। इस दवा से मरीजों में होने वाले जलन को कम किया जा सकता है।
  • 5- माइसोबैक्टीरियम डब्ल्यू/सेप्सिवेक दवा

    लेप्रसी यानी कुष्ठ रोग में माइसोबैक्टीरियम डब्ल्यू (Mycobacterium w)/सेप्सिविक (Sepsivac) दवा का इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल गंभीर रक्त संक्रमण जैसे मामलों में इम्यून सिस्टम को मजबूत करने में भी होता है और अब इस दवा का इस्तेमाल कोरोना के मरीजों पर करने की तैयारी है। अभी पीजीआई चंडीगढ़ और भोपाल एम्स में इनका क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है।
  • 6- डायसलफिराम दवा

    जिन लोगों को शराब की लत लग जाती है उन्हें डायसलफिराम (Disulfiram) दवा दी जाती है, ताकि उनकी शराब छूट सके। कोविड-19 से पहले कोरोना वायरस के परिवार के ही SARS और MERS के मरीजों को ये दवा दी गई थी, जिसमें पाया गया कि उनकी इम्युनिटी पावर बढ़ी। इसे भी कोविड-19 के मरीजों को देने पर विचार हो रहा है।
  • 7- लोपेरामाइड दवा

    डायरिया रोग के मरीजों को लोपेरामाइड (Loperamide) दवा दी जाती है। इस दवा को कोरोना के मरीजों को देने पर विचार चल रहा है। दरअसल, कोरोना के कई मरीजों में आंत में जलन जैसे लक्षण दिख रहे हैं, जिन पर इस दवा को इस्तेमाल करने पर विचार हो रहा है।
  • 8- एजिथ्रोमाइसिन+एंटोवेक्योन दवा

    जल्द ही अमेरिकी शोधकर्ता एंटीबायोटिक्स एजिथ्रोमाइसिन (Azithromycin) और निमोनिया की दवा एंटोवेक्योन के कॉम्बिनेशन का ट्रायल कोरोना मरीजों पर करने की योजना बना रही है। रिसर्च से ये साफ हुआ है कि इसका भी मरीजों का फायदा मिल सकता है।
  • 9- एंटी-कोएगुलेंट ट्रीटमेंट

    अमेरिकी शोधकर्ताओं के मुताबिक वेंटिलेटर पर मरीजों को दवा देने से उनके बचने की संभावना 130 फीसदी तक बढ़ जाती है। कोरोना के मरीजों में खून के थक्के जमते दिख रहे हैं, जिसकी वजह से उनकी मौत हो जा रही है। ऐसे में डॉक्टर खून पतला करने का ट्रीटमेंट कर रहे हैं, जिसे एंटी-कोएगुलेंट ट्रीटमेंट कहते हैं।
  • 10- प्लाज्मा थेरपी

    अमेरिका से लेकर भारत के कई राज्यों में प्लाज्मा थेरपी से कोरोना मरीजों का इलाज किया जा रहा है। कई लोग इससे सही भी हुए हैं। इसमें कोरोना से रिकवर हुए लोगों का प्लाज्मा निकाल कर उसे मरीजों में डाला जाता है। दरअसल, कोरोना से रिकवर हुए व्यक्ति के प्लाज्मा में एंटीबॉडी होती है, जो कोरोना से लड़ने के लिए विकसित हो चुकी होती हैं, जिससे कोरोना के मरीज जल्द ठीक हो जाते हैं।

2001 में बनाया प्रोबॉयटिक यीस्‍ट

कंपनी ने 2001 में भारत का पहला प्रोबॉयटिक यीस्‍ट BIOGIT पेश किया। यह कंपनी का पहला बायो-थिरेपॉटिक प्रॉडक्‍ट था। आंध्र प्रदेश के तत्‍कालीन सीएम चंद्रबाबू नायडू ने यह यीस्‍ट लॉन्‍च किया था। 2012 में भारत बायोटेक और यूनवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड को 4 मिलियन डॉलर मिले। यह रकम उन्‍हें iNTS की वैक्‍सीन बनाने के लिए दी गई थी। 2008 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कंपनी को FICCI अवार्ड से नवाजा था।

गेट्स फाउंडेशन करता रहा है मदद

भारत बायोटेक को बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से मदद मिलती रही है। 2002 में इस फांउडेशन से दो ग्रान्‍ट्स लेने वाली यह पहली भारतीय कंपनी थी। तब उसे मलेरिया और रोटावायरस की नई वैक्‍सीन बनाने का जिम्‍मा मिला था। साल 2011 में बिल गेट्स और डॉ. कृष्‍णा ऐल्‍ला की मुलाकात भी हुई थी।

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