पिता के साथ ठीक होकर घर लौटी बेटी बोली- लंदन का रूटीन अस्पताल में भी बनाए रखा, इससे कभी महसूस ही नहीं हुआ कि बीमार भी हूं

कोरोनावायरस की अब तक दवा नहीं बनी है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि बीमारी लाइलाज है। इसके कई मरीज ठीक होकर घर लौटने लगे हैं। इससे लड़ने के लिए तीन चीजें जरूरी हैं- बेहतर इलाज, हौसला और अनुशासन। भोपाल के पहले और दूसरे कोरोना मरीज ने इसी की नजीर पेश की है।

भोपाल की प्रोफेसर कॉलोनी में रहते हैं पेशे से पत्रकार केके सक्सेना, बेटी गुंजन लंदन में लॉ की स्टूडेंट हैं। लंदन में कोरोना का संक्रमण फैलना शुरू हुआ तो उन्होंने अपने देश आने का फैसला किया। 17 मार्च को दिल्ली फिर वहां से 18 मार्च को भोपाल आ गईं। लंदन और दिल्ली में उनकी स्क्रीनिंग हुई और दोनों ही जगह वे स्वस्थ पाई गईं। 20 को हल्की सी खांसी आई तो पिता ने खुद उनकी सैम्पलिंग कराई। 22 मार्च को उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। एम्स में भर्ती होना पड़ा। इसके ठीक तीन दिन बाद यानी 25 को गुंजन के पिता केके सक्सेना की भी रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। रिपोर्ट आने के बाद सक्सेना भी एम्स में भर्ती हो गए।पिता और बेटी की जुबानी कोरोना पर उनकी जीत की कहानी…

बेटी ने कहा- लंदन और दिल्ली एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग के दौरान मैं फिट थी
केके सक्सेना की बेटी गुंजन ने भाेपाल आने से पहले की कहानी बताई। उन्होंने कहा- ‘लंदन में हमारी क्लासेस चल रही थीं। हमें बीमारी के बारे में भी मालूम चल रहा था। किस तरह की सावधानियां बरतनी है, क्लासेस में हमें ये बताया जा रहा था। संक्रमण कैसे फैल रहा है, ये भी मैं जानती थी। लंदन से रवाना होने से पहले मन में एक ही ख्याल था कि यहां तक तो ठीक है। फ्लाइट में कुछ न हो जाए। लंदन एयरपोर्ट पर स्कीनिंग हुई। रिपोर्ट ओके आई। दिल्ली में स्क्रीनिंग में भी फिट निकली। 18 मार्च को भोपाल आई और घर के गेस्ट रूम में रही। 21 मार्च को पापा ने सैम्पलिंग के लिए डॉक्टरों को घर बुलाया। और जब रिपोर्ट आई तो पॉजिटिव निकल गई। जितना हम बीमार नहीं थे, उससे ज्यादा सोसायटी हमें बीमारी का अहसास कराने पर तुली थी।’

‘अस्पताल में एडमिट थी तो पहले दिन थोड़ा अजीब लगा, लेकिन मैंने सोचा कि लंदन में भी तो अकेली रहती हूं, वहां तो ऐसा नहीं लगता। उसी समय फैसला लिया कि मैं बीमार नहीं हूं और लंदन में ही हूं। अपनी पूरी लाइफस्टाइल लंदन जैसी कर ली। सुबह जल्दी सारे काम निपटाना और फिर कॉलेज के लिए तैयार हो जाना। यही एम्स में भी करने लगी। मुझे बचपन से दुर्गा सप्तशती के पाठ की आदत डाली गई है तो अस्पताल में भी मैं अपने मोबाइल पर पाठ करने लगी। नाश्ते के बाद अपने सब्जेक्ट के प्रोजेक्ट कम्प्लीट किए। कई दोस्तों और रिलेटिव के फोन आते थे। उनकी बातें बड़ी गंभीर किस्म की होती थीं, लेकिन मुझे मेरे ऊपर पूरा भरोसा था। मैं जानती थी कि ये संक्रमण है, कुछ सावधानी रखी तो ये ठीक हो जाएगा और ऐसा हुआ भी। मैंने अस्पताल में रहते हुए कभी महसूस ही नहीं किया कि मैं बीमार हूं। लंदन में अपने दोस्तों से बात करती और भाई विक्की से फोन पर बात करती रहती।’

‘जब कोई ये सुनता है कि वो कोरोनावायरस पॉजिटिव है तो उसकी आधी जान उसी समय ही निकल जाती है। फिर भी कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो इस खतरनाक बीमारी को हरा कर जिंदगी की जंग जीत लेते हैं। मैं भी उन्हीं में से एक हूं। अगर किसी को ये संक्रमण हो गया है तो उसकी मौत ही हो जाएगी, ऐसा सोचना सही नहीं है। हम अगर अपने आप को मजबूत बनाए रखें, तो खतरा टल सकता है।’

पिता ने कहा- हमारे बारे में कई तरह की कहानियां गढ़ी गईं
गुंजन के पिता केके सक्सेना कहते हैं, ‘बेटी और मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद समाज का हमारे प्रति नजरिया ही बदल गया। जो लोग कल तक हमारे साथ उठते-बैठते थे, वे ही अर्नगल बातें करने लगे। हमारे बारे में कई तरह की कहानियां गढ़ी गईं। किसी ने भी हमारा पक्ष जानने की कोशिश नहीं की। समाज में हमें गुनहगार के रूप में पेश कर दिया गया। जबकि हकीकत में मैंने ही अपनी बेटी की सैम्पलिंग कराई थी और रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद अस्पताल में एडमिट कराया था।’

पेशे से पत्रकार केके सक्सेना और लंदन से लॉ की पढ़ाई कर रहीं उनकी बेटी गुंजन। दोनों 10 दिन एम्स में भर्ती रहने के बाद घर लौटे हैं।

‘जब मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो और बखेड़ा खड़ा हो गया। मुझे अच्छी तरह से याद है कि उस दिन नवरात्र का पहला दिन था। बेटी अस्पताल में एडमिट थी। मैंने जल्दी घर में पूजा-पाठ किया। ड्राॅइंग रूम में बैठा ही था कि मुझे एक अधिकारी का फोन आया। उसने मुझे कोरोना संक्रमित होने की जानकारी दी। मैं अस्पताल चला गया। मैं इस बीमारी के लक्षण के बारे में जानता था। ये किसी को छुओ नहीं, तब तक नहीं होती। ना जाने कैसे इसके लक्षण मुझमें आ गए। जबकि बेटी जब लंदन से लौटी थी, तब हमने उसे क्वारैंटाइन कर दिया था और गेस्ट रूम में रखा हुआ था। मैं जितना परेशान अपनी बीमारी से नहीं था, उससे ज्यादा समाज में मेरे और मेरी बेटी के संक्रमित होने के बारे में की जाने वाली बातों से परेशान था। मुझे पूरा विश्वास था कि हम इस बीमारी से हारेंगे नहीं, बल्कि जीतकर फिर से घर लौट आएंगे।’

‘एम्स में 10 दिन भर्ती रहा, लेकिन एक भी दिन मुझे ये अहसास नहीं हुआ कि मैं बीमार हूं। बीमारी के कोई लक्षण, सिवाय हल्की खांसी के कुछ नहीं थे। नवरात्र के दिन थे। सुबह नहाने के बाद अस्पताल में ही पूजा करने लगा। डॉक्टर चेकअप करके चले जाते। उसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करता। इसके बाद गीता पढ़ता और शाम को ओशो की किताबें पढ़कर अपना समय काटता। इस बीच मैंने अपने काम को फोन से ही संभालता रहा। मेरे काम में ऐसा कोई अंतर नहीं आया, जिससे मुझे लगा हो कि मैं हताश हूं या बीमारी से डर गया हूं। हां, इस सबके बीच मेरी पत्नी जरूर थोड़ा परेशान रहीं, लेकिन मेरे बेटे विक्की ने बखूबी घर, अस्पताल और मेरी बेटी की देखभाल की जिम्मेदारी संभाली। कोरोना घातक बीमारी है। इसका संक्रमण कैसे और किस व्यक्ति तक पहुंच जाए, कहना मुश्किल है। लेकिन अगर व्यक्ति का हौसला मजबूत हो तो इसको हराया जा सकता है। बस हमें कुछ सावधानियां बरतनी हैं।’

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Bhopal Coronavirus Latest Update: Positive Story of COVID-19 Patient; From Hospital To Home

Source: DainikBhaskar.com

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