दिग्गजों द्वारा शुरू किए गए YES BANK में कैसे बढ़ता गया संकट? जानें 6 प्रमुख कारण – आज तक

  • यस बैंक में संकट के बाद रिजर्व बैंक का दखल
  • RBI ने इससे निकासी की सीमा तय कर दी है
  • कभी दिग्गज प्रोफेशनल्स ने यह बैंक शुरू किया था

देश के कई दिग्गज प्रोफेशनल द्वारा शुरू किया गया निजी क्षेत्र का यस बैंक संकट में फंस गया है. रिजर्व बैंक ने इसके बोर्ड का संचालन अपने हाथों में लेते हुए इससे महीने में 50 हजार रुपये तक की ही निकासी होने की सीमा तय कर दी है. सरकार ने इसे संकट से दूर करने के लिए कवायद भी शुरू कर दी है. आइए जानते हैं ऐसी 6 वजहें जिनकी वजह से बैंक की हालत खराब हुई और रिजर्व बैंक को दखल देना पड़ा है.

गौरतलब है कि यस बैंक को साल 2004 में राणा कपूर और अशोक कपूर द्वारा शुरू किया गया था, जिन्हें उस दौर में दिग्गज प्रोफेशनल माना जाता था. राणा कपूर ने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से पढ़ने के बाद न्यूजर्सी के रटगर्स यूनिवर्स‍िटी से एमबीए किया था. उन्होंने 16 साल तक बैंक ऑफ अमेरिका में नौकरी की थी.

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1. वित्तीय हालत बिगड़ते जाना

पिछले कई साल में यस बैंक की वित्तीय सेहत लगातार बिगड़ती गई है. लोन से होने वाले संभावित नुकसान से बचने के लिए बैंक पूंजी जुटाने में नाकाम रहा. इसकी वजह से इसकी रेटिंग खराब हुई और निवेशकों, जमाकर्ताओं ने पैसा बाहर निकालना शुरू किया. बैंक को लगातार कई तिमाही में घाटे या अपर्याप्त मुनाफे का सामना करना पड़ा.

2. प्रशासन के मसले

बैंक में हाल में गवर्नेंस के कई गंभीर मसले सामने आए हैं. इसकी वजह से बैंक लगातार पिछड़ता गया. उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2018-19 में बैंक ने करीब 3,277 करोड़ रुपये के एनपीए को छिपा लिया था यानी इसे बहीखाते में नहीं दिखाया. इसे देखते हुए रिजर्व बैंक ने अपने एक पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी को बैंक के बोर्ड में भेजा.

3. रिजर्व बैंक को धोखे में रखा

भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा था कि वह लगातार बैंक प्रबंधन के संपर्क में है ताकि उसके बहीखाते और नकदी की हालत को मजबूत किया जा सके. बैंक प्रबंधन ने रिजर्व बैंक को यह संकेत दिया था कि वह कई निवेशकों से बात कर रहे हैं और इसमें सफलता मिलेगी. लेकिन सच तो यह है कि उनके पास निवेशकों से निवेश के लिए कोई ठोस प्रस्ताव नहीं था.

4. अगंभीर निवेशक

इस साल फरवरी में स्टॉक एक्सचेंजों को बैंक ने बताया था कि वह पूंजी के लिए कई प्राइवेट इक्विटी फर्मों से बात कर रहा है. लेकिन रिजर्व बैंक के अनुसार, ‘इन निवेशकों ने रिजर्व बैंक के वरिष्ठ अध‍िकारियों से चर्चा तो की, लेकिन कोई पूंजी नहीं दी. इससे साफ है कि निवेशक वास्तव में बैंक में पूंजी लगाने को लेकर गंभीर नहीं थे. किसी नए निवेशक को ज्यादा हिस्सेदारी देने के लिए बैंक को रिजर्व बैंक से इजाजत लेनी जरूरी थी.

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5. कारगर नहीं रही सुधार की योजना

रिजर्व बैंक ने कहा कि बाजार आधारित सुधार योजना बेहतर होती है. रिजर्व बैंक ने ऐसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए सभी प्रयास किए और बैंक के प्रबंधन को पर्याप्त मौके दिए कि वे एक विश्वसनीय सुधार योजना बना सकें, लेकिन यह कारगर रूप नहीं ले सका.

6. नकदी का निकलते जाना

बैंक से लगातार नकदी बाहर निकलती जा रही थी. इसका मतलब यह है कि ग्राहक बैंक से पैसा निकालते जा रहे थे और जमा कम होता रहा. जमा किसी बैंक की रोजी-रोटी के लिए सबसे जरूरी होते हैं. सितंबर 2019 तक बैंक के पास जमा खाता 2.09 लाख करोड़ रुपये का था.

(https://www.businesstoday.in/ के इनपुट पर आधारित)

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