चीन में कोरोना वायरस से कहर के बीच भारत दोहराएगा डॉ. कोटनिस की कहानी

Publish Date:Mon, 17 Feb 2020 12:10 AM (IST)

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। कोरोना वायरस से जूझते चीन की मदद के लिए भारत ने अपना मानवीय पक्ष सामने रखा है। भारत ने मुक्त कंठ से कहा है कि अगर पड़ोसी देश मुश्किल में है तो उसे हर तरीके की चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। भारत इस कदम से मुसीबत में फंसे लोगों की अपनी सदियों पुरानी परंपरा और रीति का दुनिया को परिचय दिया है। इसी परंपरा का निर्वाह चीन जाकर कभी डॉ कोटनिस ने भी किया था।
जानिए डॉ. कोटनिस को
डॉ द्वारकानाथ शांताराम कोटनिस का जन्म 10 अक्टूबर 1910 को महाराष्ट्र के शोलापुर में हुआ था। बांबे विश्र्वविद्यालय से संबद्ध जीएस मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई की। जापान ने जब चीन पर हमला कर दिया तो चिकित्सा मिशन के तहत डॉ. कोटनिस वहां पहुंचे और अग्रिम मोर्चो पर जाकर बड़ी संख्या में चीनी सैनिकों की जान बचाई।

नेहरु-सुभाष ने भेजा
द्वितीय चीन-जापान युद्ध के समय 1938 में चीनी जनरल झू दे ने जवाहरलाल नेहरु से चीनी सैनिकों को चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराने के लिए भारतीय चिकित्सकों को भेजने का आग्रह किया था। उस वक्त भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने स्वयंसेवक चिकित्सकों का दल और 22 हजार रुपयों की एकत्रित राशि से एंबुलेंस भेजने की व्यवस्था की। इसके बाद पांच चिकित्सकों के भारतीय चिकित्सा मिशन को 1938 में भेजा गया। जिनमें डॉक्टर कोटनिस भी शामिल थे। वे पहली बार चीन के वुहान में स्थित हेंकोऊ पोर्ट पर उतरे।

चीन में हुआ प्रेम
चीन में डॉ. कोटनिस को डॉ. बेथून अंतरराष्ट्रीय शांति अस्पताल का निदेशक नियुक्त किया गया। चीन में उन्हें साथ काम करने वाली चीनी नर्स गुआ क्विंग से प्रेम हो गया। दोनों दिसंबर 1941 में शादी के बंधन में बंध गए। कुछ समय बाद पुत्र का जन्म हुआ। दो देशों की साझी विरासत को संजोए दोनों ने उसका नाम यिनहुआ रखा। यिन का शाब्दिक अर्थ भारत और हुआ का अर्थ चीन होता है। यह बताता है कि दोनों देशों के लिए उनके मन में कितना सम्मान और प्रेम था।

माई लाइफ विद कोटनिस
9 दिसंबर 1942 को महज 32 साल की उम्र में डॉ. कोटनिस का निधन हो गया। हालांकि तब तक वे भारत-चीन की मैत्री के प्रतीक बन चुके थे। गुओ क्विंग कई बार कोटनिस के परिजनों से मिलने के लिए भारत आईं और इस देश की अच्छी यादों को हृदय में समाहित कर लौटीं। माई लाइफ विद कोटनिस में उन्होंने लिखा है कि भारत के लोग बहुत अच्छे हैं और यह वहां की संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है।

चीन में नायक
चीन में वे आज नायक के रूप में पूजनीय हैं। उनकी याद में डाक टिकट जारी हुए हैं। हेबई प्रांत में उनका स्मारक बनाया गया है। 2009 में एक सदी के दौरान चीन के विदेशी मित्रों के इंटरनेट मतदान के दौरान डॉ. कोटनिस को ‘शीर्ष 10 विदेशियों’ में से एक चुना गया। चाइना डेली का कहना है कि वे चीन के लोगों के लिए आज भी श्रद्धेय बने हुए हैं।

माओ ने कहा
माओ ने डॉ. कोटनिस की निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा, ‘सेना ने एक हाथ खो दिया है, देश ने एक दोस्त खो दिया है। आइए हम हमेशा उनकी अंतरराष्ट्रीय भावनाओं को ध्यान में रखें।’
दशकों बाद भी नहीं भूले
चीन में डॉ. कोटनिस कितने सम्मानित व्यक्ति हैं, यह मुंबई स्थित उनके घर आने वाली चीनी शख्सियतों को देखकर के पता चल जाता है। बहुत से चीनी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपतियों ने जब भी भारत का दौरा किया है, तमाम व्यस्तताओं के बावजूद डॉ. कोटनिस के रिश्तेदारों से मिलना वे नहीं भूले। चाऊ एन लाई, जियांग जेमिन, ली पेंग, हू जिंताओ, ली केकियांग और शी जिनपिंग सहित शीर्ष चीनी नेताओं ने मुंबई में डॉ. कोटनिस के परिवारिक सदस्यों से मुलाकात की है। कोटनिस की पत्‍‌नी गुओ क्विंग चीन और भारत के बीच कई उच्च-स्तरीय राजनयिक कायरें में सम्मानित अतिथि थीं। पूर्व राष्ट्रपति केआर नारायणन ने 2000 में उनकी चीन की यात्रा और 2003 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनके साथ मुलाकात की थी। नवंबर 2006 में, वह चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ के साथ भारत की राजकीय यात्रा पर आई थीं।
Posted By: Manish Pandey

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Source: Jagran.com

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