RSS के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य बोले, हमेशा से बहुध्रुवीय देश रहा है भारत

Publish Date:Sun, 16 Feb 2020 12:26 AM (IST)

 नागपुर, प्रेट्र। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने शनिवार को कहा कि भारत हमेशा से सामंजस्य बिठाने वाला और बहुध्रुवीय देश रहा है। वह ‘द्वितीय नागपुर साहित्य महोत्सव’ में बोल रहे थे।
 कहा, राष्ट्रीयता का मतलब राष्ट्रवाद से नहीं, बल्कि लोग और समाज से है
उन्होंने कहा, ‘भारत में हमेशा ही आध्यात्मिक लोकतंत्र रहा है। यह हमेशा से सामंजस्य बिठाने वाला देश रहा है। धर्म का पालन करना हमेशा ही भारत का स्वभाव रहा है।’ वैद्य ने कहा, ‘धर्म का मतलब समाज को अपना मानकर उसे देना है। इसका मतलब साझा करना और समाज को देना है। धर्म का मतलब समाज को समृद्ध करना है।’ उन्होंने कहा, ‘धर्म का मतलब पंथ नहीं होता है। इसका मतलब समाज को देना और साझा करना है। इसी तरह से राष्ट्र का मतलब लोग होते हैं और राष्ट्रीयता का मतलब राष्ट्रवाद नहीं है। यह (राष्ट्रवाद) एक पश्चिमी अवधारणा है।’ उन्होंने कहा, ‘राष्ट्र की भारतीयता की अवधारणा पश्चिमी राष्ट्र से अलग है। हमारे लिए राष्ट्र का मतलब भोगौलिक क्षेत्र से नहीं है बल्कि लोग और समाज से है।’

धर्म भेदभाव नहीं करता, समाज को जोड़ता और उसे एकजुट करता है
वैद्य ने कहा, ‘धर्म भेदभाव नहीं करता है। यह समाज को जोड़ता है और उसे एकजुट करता है। धर्म हर व्यक्ति को जोड़ता है और एकजुट करता है।’ उन्होंने कहा, ‘भारत 800 साल के इस्लामी और ब्रिटिश शासन के बावजूद भी इस्लामी या ईसाई देश क्यों नहीं हो गया? इसका एक कारण यह है कि भारत हमेशा ही बहुध्रुवीय देश रहा है, जहां नियंत्रण समाज के पास रहा है और उसने अपने फैसलों को क्रियान्वित किया है, जबकि शासकों ने सहयोगी भूमिका निभाई। वैद्य ने कहा, ‘यही कारण है कि समाज को आज भी देश को एकजुट रखना चाहिए।’

भारतीय समाज हमेशा धर्मनिष्ठ रहा है
उन्होंने कहा, ‘ धर्म जुड़े रहने के लिए हमारी आंखे खोलता है। आप जुड़ाव महसूस करते हैं और आप कुछ करने के लिए आगे प्रेरित होते हैं..यह धर्म है। हमारा समाज हमेशा धर्मनिष्ठ रहा है। यह सरकार आधारित नहीं, बल्कि समुदाय आधारित रहा है। मुझे लगता है कि संविधाननिर्माता इस बात को लेकर बिल्कुल स्पष्ट थे कि भारत में उस समय ‘धर्मनिरपेक्षता’ की जरूरत नहीं थी।’ वैद्य ने कहा कि भारतीयता के मूल्य बिल्कुल अलग हैं।

राष्ट्रीयता की अवधारणा राष्ट्र और राष्ट्रवाद से अलग
उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रवाद भारत की अवधारणा नहीं है। इसकी उत्पत्ति पश्चिमी देशों की राष्ट्र -राज्य अवधारणा में हुई थी और यह फासीवाद तथा हिटलर एवं मुसोलिनी जैसी शख्सियतों के साथ आई। भारत में राष्ट्रीयता की अवधारणा राष्ट्र और राष्ट्रवाद से अलग है। इसलिए, राष्ट्रवाद राष्ट्रीयता के लिए एक स्वीकार्य समानार्थी शब्द नहीं है।’

Posted By: Arun Kumar Singh

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Source: Jagran.com

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