सुभद्रा को कविताएं लिखने का था शौक लेकिन कहानियां लिखने की वजह कुछ और…

Publish Date:Sat, 15 Feb 2020 04:02 PM (IST)

नई दिल्ली, जागरण स्‍पेशल। Subhadra Kumari Chauhan Death Anniversary: सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम आते ही दिमाग में ‘झांसी की रानी’ कौंध जाती है, क्‍योंकि उनकी यह रचना काफी प्रसिद्ध है। लेकिन कवियित्री सुभद्रा केवल यहीं तक सीमित नहीं थीं इससे कहीं आगे थीं। नाग पंचमी को जन्मी कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने अपनी विविध रचनाओं से लोगों को अब तक बांध रखा है। उनका निधन बसंत पंचमी यानी सरस्वती पूजा के दिन 15 फरवरी 1948 को हुआ था। आज उनकी पुण्यतिथि है।
नौवीं पास थीं सुभद्रा
मात्र नौ साल की उम्र में उन्‍होंने पहली कविता ‘नीम’ की रचना की थी। इस कविता को पत्रिका ‘मर्यादा’ में जगह दी गई। इसके साथ ही वे पूरे स्‍कूल में मशहूर हो गईं। मजबूरीवश वे केवल नौवीं कक्षा तक की पढ़ाई ही पूरी कर पाई। लेकिन अपनी कविताओं का शौक नहीं छोड़ा और लिखती गई। कवियित्री सुभद्रा की रचनाओं में कहीं यह झलक या अभाव नहीं खलता कि उन्‍होंने दसवीं तक भी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की।

… इसलिए शुरू हुआ कहानियां लिखने का दौर
16 अगस्त 1904 में इलाहाबाद के निहालपुर में जमींदार परिवार में जन्मी् सुभद्रा को बचपन से ही कविताएं लिखने का शौक था। इसके कारण वे अपने स्कूल में भी बड़ी प्रसिद्ध थीं। बाद में उन्होंने कहानियां लिखना भी शुरू कर दिया, यह उन्होंने पारिश्रमिक के लिए किया क्योंकि उस वक्त कविताओं की रचना के लिए पैसे नहीं मिलते थे।
जीवन साथी संग असहयोग आंदोलन में हुई थी शामिल

चार बहनें और दो भाइयों वाली सुभद्रा ने स्‍वतंत्रता आंदोलन में आगे आई और कई बार जेल भी गई। मध्‍यप्रदेश के खंडवा निवासी ठाकुर लक्ष्‍मण सिंह से शादी के बंधन में बंधी और यहां भी उनके रुचि का ही काम नजर आया। पति लक्ष्‍मण सिंह पहले से ही स्‍वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे। दोनों ही महात्‍मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। सुभद्रा की कई रचनाओं में आजादी का उन्‍माद और वीर रस का सान्‍निध्‍य मिलता है।

 
जन्‍म और मौत की तारीख ‘पंचमी’
जन्म नागपंचमी और मृत्यु बसंत पंचमी, सोचिए ये तिथियां यूं ही इतनी विशेष नहीं हैं और न ही इसे मात्र संयोग कहा जा सकता है। विशेष इसलिए क्योंकि दोनों ही तारीख पंचमी की थी। इसके पीछे ईश्वर का संकेत स्पष्ट था कि जो धरा पर अनमोल होते हैं उनके लिए ऊपरवाला भी इंतजार करता है, और तभी ऐसे तारीखों का मेल होता है। 15 फरवरी 1948 को सुभद्रा ईश्वन की प्यारी हो गई। उनका जन्म नागपंचमी के दिन इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में रामनाथसिंह के जमींदार परिवार में हुआ था।

कवियित्री की रचनाएं
सुभद्रा की दो कविता संग्रह और तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए। उनकी कविता संग्रहों के नाम ‘मुकुल’ और ‘त्रिधारा’ हैं और कहानी संग्रह- पंद्रह कहानियों वाली बिखरे मोती-1932 व 1934 में प्रकाशित 9 कहानियों वाली उन्मादिनी 1947 में प्रकाशित 14 कहानियों वाली सीधे साधे चित्र हैं। कुल मिलाकर उन्होंने 46 कहानियां लिखीं। उस वक्‍त लड़कियों के साथ अलग तरह का व्‍यवहार किया जाता है। नारी के उस मानसिक दर्द को भी सुभद्रा ने अपनी रचनाओं में उतारा है।

रचनाओं की विशेषता
सुभद्रा कुमारी चौहान के जीवन के तरह ही उनका साहित्य भी सरल और स्‍पष्‍ट है। इनकी रचनाओं में राष्ट्रीय आंदोलन, स्त्रियों की स्वाधीनता, जातियों का उत्थान आदि समाहित है। कुल मिलाकर सुभद्रा का राष्ट्रीय काव्य हिंदी में बेजोड़ स्थान रखता है। अपनी रचनाओं के जरिए उन्होंने एक बहन, एक मां व एक पत्नी समेत सच्ची राष्ट्र भक्त के भाव व्यक्त किए हैं।

उनकी रचना ‘बिखरे मोती’ के पहले पेज किया गया निवेदन दिल को छू लेने वाला है। पढ़ें इसका छोटा सा टुकड़ा-
‘हृदय के टूटने पर आंसू निकलते हैं, जैसे सीप के फूटने पर मोती। हृदय जानता है कि उसने स्वयं पिघलकर उन आंसुओं को ढाला है। अतः वे सच्चे हैं। किंतु उनका मूल्य तो कोई प्रेमी ही बतला सकता है। उसी प्रकार सीप केवल इतना जानती है कि उसका मोती खरा है, वह नहीं जानती कि वह मूल्यहीन है अथवा बहुमूल्य। उसका मूल्य तो रत्नपारखी ही बता सकता है। मैं भूखे को भोजन खिलाना और प्यासे को पानी पिलाना अपना परम धर्म समझती हूं। ईश्वर के बनाए नियमों को मानती हूं।’

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Posted By: Monika Minal

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Source: Jagran.com

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