CAA Protest in UP : आरोपियों का पोस्‍टर लगाने पर बोला सुप्रीम कोर्ट- राज्‍य सरकार के पास यह अधिकार कहां से आया UP News – दैनिक जागरण

Publish Date:Thu, 12 Mar 2020 12:05 PM (IST)

लखनऊ, जेएनएन। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में लखनऊ में हिंसा के दौरान सरकारी तथा अन्य संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के आरोपियों की फोटो होर्डिंग्स तथा पोस्टर्स में लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर असहमति जताई है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के लखनऊ में हिंसा के दौरान तोड़फोड़ करने वाले आरोपियों के फोटो वाले होर्डिंग्स तथा पोस्टर्स को हटाने के निर्देश को चुनौती दी थी।

न्यायमूर्ति यूयू ललित और अनिरुद्ध बोस की अवकाश कालीन पीठ गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका पर सुनवाई की। शीर्ष अदालत की बेंच ने उत्‍तर प्रदेश सरकार से पूछा कि उन्‍हें आरोपियों का पोस्‍टर लगाने का अधिकार किस कानून के तहत मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी तक शायद ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसके तहत उपद्रव के कथित आरोपियों की तस्‍वीरें होर्डिंग में लगाई जाएं। कोर्ट ने कहा कि लखनऊ के विभिन्न चौराहा और मुख्य सड़क के किनारे होर्डिंग्स तथा पोस्टर्स में 57 से अधिक आरोपितों के फोटो लगे हैं। इस मामले का इलाहाबाद होई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को सभी होर्डिंग्स तथा पोस्टर्स को हटाने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने होर्डिंग्स पर कथित आगजनी करने वालों का ब्योरा देने के लिए कदम उठाया है। कोर्ट राज्य सरकार की चिंता को समझ सकता है लेकिन अपने फैसले को वापस लेने का कोई कानून नहीं है।

यूपी सरकार की इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका में एसजी तुषार मेहता ने कहा कि एक व्यक्ति विरोध प्रदर्शन के दौरान बंदूक चलाता है और कथित तौर पर हिंसा में शामिल होता है। ऐसा व्यक्ति निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकता है। 

सरकार ने लखनऊ में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों के पोस्टर लगाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए सरकार को प्रदर्शनकारियों के पोस्टर हटाने के आदेश दिए थे। सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान लखनऊ में हिंसा फैलाने वालों के पोस्टर लगाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।

प्रदेश सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की अवकाश कालीन पीठ ने आज सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट में होली की छुट्टियों के दौरान अवकाश कालीन पीठ अर्जेन्ट (तत्काल) मामलों की सुनवाई के लिए बैठी। यह पहला मौका है जबकि सुप्रीम कोर्ट में होली की एक सप्ताह की छुट्टियों को दौरान भी अवकाश कालीन पीठ बैठी। अवकाश कालीन पीठ सिर्फ गर्मी की छुट्टियों के दौरान ही बैठती थी। 

उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने दैनिक जागरण को बताया कि प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की है जिस पर गुरुवार को सुनवाई होनी है। अपील में दिए गए अपने आधारों का जिक्र करते हुए कहा कि पोस्टर में नाम और फोटो छापने को हाईकोर्ट का निजता के अधिकार का हनन बताया जाना ठीक नहीं है क्योंकि यह मामला निजता के अधिकार के तहत नहीं आता। यहां जो चीजें पहले से सार्वजनिक हैं उन पर निजता का अधिकार नहीं लागू होता। इस मामले में पहले से सारी चीजें सार्वजनिक हैं। दूसरा आधार अपील में मामले को जनहित याचिका बनाए जाने को लेकर है। यह मामला जनहित याचिका का नहीं माना जा सकता क्योंकि जनहित याचिका की अवधारणा उन लोगों के लिए लाई गई है जो किसी कारणवश कोर्ट आने में असमर्थ हैं उनकी ओर से जनहित याचिका दाखिल की जा सकती है। या फिर जिन मामलों में आबादी का बड़ा हिस्सा प्रभावित हो रहा हो जैसे पर्यावरण संरक्षण आदि मामलों में जनहित याचिका हो सकती है लेकिन मौजूदा मामला ऐसा नहीं है।

एडवोकेट जनरल ने कहा कि मौजूदा मामले में प्रभावित लोग कोर्ट जा सकते हैं और रिकवरी नोटिस के खिलाफ कुछ लोग कोर्ट गए भी हैं ऐसे में इस मामले को जनहित याचिका के तहत नहीं सुना जाना चाहिए। उन्होंने इस याचिका का और ब्योरा व आधार साझा नहीं किये। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत नौ मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार को तत्काल प्रभाव से पोस्टर हटाने का आदेश दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश में कहा था कि प्रदेश सरकार को ऐसे पोस्टर लगाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट ने पोस्टर लगाने को निजता के अधिकार का भी हनन कहा था।

हाईकोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान

लखनऊ में प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने की घटना का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था और फौरन इनको हटाने का आदेश दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा ने अपने आदेश में कहा था कि लखनऊ के जिलाधिकारी और पुलिस कमिश्नर 16 मार्च तक होर्डिंग्स हटवाएं। इसके साथ ही होर्डिंग हटाने की जानकारी रजिस्ट्रार को दें। कोर्ट ने इन दोनों अधिकारियों को हलफनामा भी दाखिल करने को कहा था।

हाई कोर्ट ने कहा था कि बिना कानूनी उपबंध के नुकसान वसूली के लिए पोस्टर में फोटो लगाना अवैध है। यह निजता के अधिकार का हनन है। बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए किसी की फोटो सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करना गलत है।

संपत्तियां होंगी जब्त

लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश ने कहा था कि प्रशासन ने इनकी फोटो लगी हुई होर्डिग्स उन इलाकों में लगवाई, जहां इन्होंने तोडफ़ोड़ की थी। आगे अगर पुलिस साक्ष्य उपलब्ध कराएगी तो बाकियों से भी वसूली होगी। सभी को नोटिस जारी होने की तिथि से 30 दिन का समय दिया गया है। यहां पर वसूली राशि जमा करने में असफल रहने की स्थिति में नामजद आरोपियों की संपत्तियां जब्त कर ली जाएंगी। हाई कोर्ट के फैसले के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि सरकार अभी हाई कोर्ट के फैसले का अध्ययन कर रही है। जो भी निर्णय लिया जाएगा प्रदेश की 23 करोड़ जनता के हित में लिया जाएगा। सोमवार को अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी ने भी लोकभवन में अफसरों के साथ बैठक की। बैठक में लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश, पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय और न्याय विभाग के अधिकारी भी मौजूद थे।

57 लोगों का लगाया गया पोस्टर

दिसंबर में लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा में कथित रूप से शामिल रहे 57 लोगों के नाम और पते के साथ शहर के सभी प्रमुख चौराहों पर कुल 100 होर्डिग्स लगाए गए हैं। सभी लोग राच्य की राजधानी लखनऊ के हसनगंज, हजरतगंज, कैसरबाग और ठाकुरगंज थाना क्षेत्र के हैं। प्रशासन ने पहले ही 1.55 करोड़ रुपये की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए इन सभी लोगों को वसूली के लिए नोटिस जारी किया है।

Posted By: Dharmendra Pandey

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