गौतम अदानी को एफ़पीओ क्यों रद्द करना पड़ा? – BBC हिंदी

  • दिनेश उप्रेती
  • बीबीसी संवाददाता

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भारतीय शेयर बाज़ार में इन दिनों अभूतपूर्व दांव चल रहे हैं और वो भी गौतम अदानी के नेतृत्व वाले अदानी समूह के इर्द-गिर्द.

पिछले हफ़्ते अमेरिकी रिसर्च एजेंसी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद से ही अदानी समूह के शेयरों की दुर्गति हो रही है.

बुधवार को देर शाम गौतम अदानी ने अचानक घोषणा की कि अदानी इंटरप्राइज़ेज़ का 20 हज़ार करोड़ रुपए का एफ़पीओ (भारत का अब तक का सबसे बड़ा एफ़पीओ) रद्द किया जा रहा है और जिन्होंने भी इसमें निवेश किया है, उन्हें उनकी रकम वापस लौटा दी जाएगी.

ये घोषणा चौंकाने वाली इसलिए थी कि मंगलवार को अदानी इंटरप्राइज़ेज़ का एफ़पीओ पूरी तरह सब्सक्राइब हो गया था.

ये अलग बात है कि इसमें रिटेल यानी आम निवेशकों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और रिटेल निवेशकों का हिस्सा सिर्फ़ 12 फ़ीसदी ही सब्सक्राइब हो सका.

यहाँ तक कि अदानी समूह के कर्मचारियों के लिए सुरक्षित रखे गए शेयर भी नहीं बिक सके और ये हिस्सा भी 53 फ़ीसदी के आस-पास ही सब्सक्राइब हो सका.

गौतम अदानी और उनके समूह की साख दांव पर थी और बाद में जिस तरह की ख़बरें मीडिया में आईं, उससे पता लगा कि कुछ बड़े संस्थागत निवेशकों और बड़े निवेशकों के बूते ही इस एफ़पीओ का बेड़ा पार लगाया गया है.

गौतम अदानी

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अदानी इंटरप्राइज़ेज़ ने क्या कहा?

स्टॉक एक्सचेंज को दी गई जानकारी और प्रेस विज्ञप्ति में कंपनी ने कहा, “असाधारण हालात और मार्केट में मौजूदा उतार-चढ़ाव को देखते हुए कंपनी अपने निवेशकों के हित सुरक्षित करना चाहती है. एफ़पीओ भले ही पूरी तरह सब्सक्राइब हो गया है, लेकिन अपने शेयरधारकों के हित में कंपनी इसे रद्द कर रही है. एफ़पीओ से मिली रकम को हम वापस करने जा रहे हैं.”

इस घोषणा के बाद एक बार फिर कयास लगाए जाने लगे कि अदानी समूह में शायद सब कुछ ठीक नहीं है.

अदानी की एफ़पीओ रद्द करने की घोषणा को कई लोग ब्लूमबर्ग पर आई उस रिपोर्ट के साथ जोड़कर देखने लगे, जिसमें कहा गया था कि स्विट्ज़रलैंड स्थित एक बैंक ने अदानी की कुछ कंपनियों के बॉन्ड्स की लैंडिंग वैल्यू ज़ीरो कर दी है.

अदानी

कुछ ही दिनों में बिगड़ गई पूरी कहानी?

दरअसल, अदानी इंटरप्राइज़ेज़ ने नवंबर में एफ़पीओ लाने की घोषणा की थी. तब शेयर बाज़ार में अदानी के शेयरों की धूम थी और इसी तेज़ी के बूते गौतम अदानी पहले भारत के और फिर एशिया के सबसे अमीर शख्स बने थे.

साल 2022 के जाते-जाते वो दुनिया के शीर्ष तीन अमीर लोगों में अपनी जगह बना चुके थे.

फिर 24 जनवरी 2023 को न्यूयॉर्क की एक छोटी सी निवेश फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की.

इस रिपोर्ट में अदानी समूह पर कंपनियों के शेयरों में कृत्रिम उछाल और अन्य वित्तीय गड़बड़ियों के संगीन आरोप लगाए गए थे.

इस ‘शॉर्ट सेलर’ ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि अदानी समूह की लिस्टेड कंपनियों की बाज़ार पूंजी को ‘बहुत अधिक बढ़ाया’ जा सके.

अदानी ने कुछ दिनों बाद ही 413 पन्नों का एक खंडन दस्तावेज़ जारी किया, जिसमें हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को ‘पूरी तरह झूठा’ और ‘भारत पर सोचा-समझा हमला’ बताया.

अदानी ग्रुप ने ये भी कहा कि वह हमेशा ही ‘सभी तरह के क़ायदे-क़ानूनों का पालन करती है.’

शुरू में ऐसा लगा कि समूह के इस जवाब से 20,000 करोड़ रुपए का एफ़पीओ लेकर शेयर बाज़ार में उतरी अदानी इंटरप्राइज़ेज़ पर मँडरा रहे संकट के बादल छँट जाएँगे, लेकिन शेयर पर तो हिंडनबर्ग का असर हो चुका था.

पिटाई के बाद अदानी इंटरप्राइज़ेज़ का शेयर एफ़पीओ के इश्यू प्राइस से नीचे चला गया. ज़ाहिर है अब इसमें रिटेल निवेशकों को मुनाफ़ा नहीं दिख रहा था और उन्होंने एफ़पीओ में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.

इसे गौतम अदानी का असर या उनकी साख ही माना जाएगा कि कंपनी अबू धाबी के एक बड़े फ़ंड के अलावा कुछ बड़े निवेशकों, देसी-विदेशी बैंक और बीमा कंपनियों को ‘इन विपरीत हालात’ में भी एफ़पीओ के शेयर बेचने में कामयाब रही.

30 जनवरी को जहाँ एफ़पीओ सिर्फ़ 3 फ़ीसदी ही सब्सक्राइब हुआ था, वहीं अपने आख़िरी दिन यानी 31 जनवरी को ये 100 फ़ीसदी से भी अधिक सब्सक्राइब हो गया.

लेकिन कहानी में अभी ट्विस्ट आना बाकी था.

बुधवार को इधर लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट भाषण पढ़ रही थी और उनकी घोषणाओं पर बाज़ार भी हरे रंग से सराबोर था, लेकिन तभी ब्लूमबर्ग ने बताया कि यूरोप के एक नामी बैंक और वित्तीय संस्था क्रेडिट सुइस ने अदानी ग्रुप की कुछ कंपनियों के बॉन्ड्स की लैंडिंग वैल्यू ज़ीरो कर दी है.

बस इसके बाद अदानी समूह की कंपनियों के शेयरों में बिकवाली का जो दौर शुरू हुआ वो तभी थमा, जब बाज़ार में दिन का कारोबार खत्म हुआ.

गौतम अदानी

क्या होता है लैंडिंग वैल्यू ज़ीरो होने का मतलब?

दरअसल, कई बड़ी कंपनियाँ बाज़ार से पैसा उगाहने के लिए बॉन्ड्स जारी करती हैं, जिसमें वे निवेशकों को एक निश्चित रिटर्न की गारंटी देती हैं.

कई निजी बैंक किसी कंपनी के इन बॉन्ड्स के बदले अपने ग्राहकों को उधार देते हैं.

बाज़ार विश्लेषक आसिफ़ इक़बाल बताते हैं, “कई बैंक अपने ग्राहकों को ये पेशकश करते हैं कि अगर उनके पास किसी कंपनी के बॉन्ड्स हैं तो गिरवी रखने के एवज में वह उन्हें उधार दे सकती है. ये उधारी बॉन्ड्स की रकम का 70 से 80 फ़ीसदी तक हो सकती है. ज़ाहिर है इसके लिए बैंक उस कंपनी के वैल्युएशन और बैलेंसशीट को बारीकी से जाँचता है.”

ब्लूमबर्ग के मुताबिक़ अब क्रेडिट सुइस ने कहा है कि वह अपने ग्राहकों को अदानी समूह की कुछ कंपनियों के बॉन्ड्स गिरवी रखने पर कर्ज़ नहीं देगा, यानी क्रेडिट सुइस ने बॉन्ड्स की लेंडिंग वैल्यू ज़ीरो कर दी है.

इसका मतलब ये है कि जिन ग्राहकों ने पहले गिरवी बॉन्ड्स पर कर्ज़ लिया था, उन्हें कर्ज़ जारी रखने के लिए दूसरे कोलैटरल देने होंगे. अगर वो ऐसा करने में विफल रहते हैं तो बैंक उनके बॉन्ड्स बेचकर इसकी भरपाई कर सकता है.

रिपोर्ट के मुताबिक़ क्रेडिट सुइस ने अदानी समूह की अदानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकॉनोमिक ज़ोन, अदानी ग्रीन एनर्जी और अदानी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई लिमिटेड के बॉन्ड्स की लैंडिंग वैल्यू ज़ीरो की है.

हालाँकि कई दूसरे विदेशी बैंक भी अदानी समूह की कंपनियों के बॉन्ड्स की एवज़ में अपने ग्राहकों को कर्ज़ देते आए हैं. अभी तक उनके रुख़ में किसी बदलाव की कोई रिपोर्ट नहीं आई है.

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एफ़पीओ रद्द करने की दलील

कंपनी ने एक बयान जारी कर कहा, “आज (बुधवार को) स्टॉक मार्केट में कंपनी के शेयरों में गिरावट देखी गई. इस तरह की अभूतपूर्व स्थिति को देखते हुए बोर्ड ने ये तय किया है कि इस एफ़पीओ के साथ आगे बढ़ना नैतिक तौर पर ग़लत होगा. निवेशकों का हित हमारे लिए सर्वोपरि है, उन्हें हम किसी तरह के संभावित नुक़सान से बचाना चाहेंगे. ऐसे में बोर्ड ने इस एफ़पीओ के साथ आगे न बढ़ने का फ़ैसला किया है.”

कंपनी ने कहा कि एक बार बाज़ार में ठहराव आ जाए उसके बाद कंपनी अपनी कैपिटल मार्केट स्ट्रैटेजी पर फिर से विचार करेगी.

क्या होता है एफ़पीओ और क्यों लाती हैं कंपनियां?

एफ़पीओ यानी फॉलो ऑन पब्लिक ऑफ़र- जो कंपनी पहले से ही शेयर बाजार में लिस्टेड है, वो मौजूदा शेयरधारकों और दूसरे निवेशकों के लिए नए शेयरों की पेशकश करती है.

ये शेयर बाज़ार में मौजूद शेयरों से अलग होते हैं. ज़्यादातर मामलों में इन्हें कंपनी के प्रमोटर्स ही जारी करते हैं.

यानी आईपीओ की प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही कोई कंपनी एफ़पीओ लाती है. एफ़पीओ के ज़रिए शेयर बेचने का मक़सद कंपनी की विस्तार योजनाओं के लिए रकम जुटाना या कर्ज़ चुकाना होता है.

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आगे क्या हैं मुश्किलें?

ये सही है कि अदानी समूह कई ऐसे प्रोजेक्ट्स की मालिक है जो बेशकीमती हैं. वो भारत के कई बड़े बंदरगाहों का संचालन करते हैं, भारत ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका और इसराइल में भी कई पोर्ट्स चलाने के ज़िम्मेदारी उन पर है.

सीमेंट, बिजली ट्रांसमिशन, हवाई अड्डे और अनाज के गोदामों के मामले में भी अदानी का अच्छा-खासा दबदबा है.

अदानी समूह के सामने सबसे बड़ी चुनौती निवेशकों का भरोसा बनाए रखने की है. विदेशी निवेशक भी किसी तरह का जोखिम उठाने के मूड में नहीं हैं.

भारतीय शेयर बाज़ारों का पिछला हफ़्ता अन्य उभरते बाज़ारों के मुक़ाबले नुक़सान वाला रहा.

एनएसई पर मौजूद आँकड़ों के मुताबिक़ सिर्फ़ दो कारोबारी सत्रों 27 जनवरी और 30 जनवरी को ही वैश्विक फंड्स ने 12 हज़ार करोड़ रुपए के शेयरों की बिकवाली की है.

एयूएम कैपिटल के रिसर्च प्रमुख राजेश अग्रवाल कहते हैं, “अदानी समूह को लेकर अभी चौतरफ़ा नकारात्मक ख़बरें आ रही हैं, ऐसे में समूह के लिए सबसे बड़ी चुनौती निवेशकों की घबराहट को दूर करना होगा.”

एफ़पीओ रद्द होना और एक के बाद एक ख़बरें कंपनी के ख़िलाफ़ आना. क्या इससे अदानी समूह के भविष्य में निवेश पर असर पड़ेगा?

इंफ्राविज़न फाउंडेशन के मैनेजिंग ट्रस्टी विनायक चटर्जी कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि इससे कंपनी की साख या उसकी भविष्य की निवेश योजनाओं पर असर पड़ेगा. इंफ्रा एक्सपर्ट होने के नाते में लंबे समय से इस समूह को देख रहा हूँ. मैंने पोर्ट्स, एयरपोर्ट्स, सीमेंट और अक्षय ऊर्जा से जुड़े उनके कई प्रोजेक्ट्स देखे हैं जो मज़बूत, स्थायी और अच्छा पैसा दे रहे हैं. उन पर शेयर बाज़ार के उतार-चढ़ाव का कोई असर नहीं है.”

विनायक कहते हैं, “जो कंपनियाँ अदानी के प्रोजेक्ट्स में निवेश कर रही हैं, वो अपने सेक्टर की एक्सपर्ट हैं. उन्हें अच्छी तरह से पता है कि अदानी समूह किस सेक्टर में कैसा काम कर रहा है.”

अदानी समूह को लेकर उठे सवालों के बीच शेयर बाज़ार की नियामक संस्था सेबी को लेकर भी सवाल पूछे जा रहे हैं. कुछ एक्सपर्ट का कहना है कि जब किसी कंपनी या समूह पर इतने आरोप लग रहे हैं तो सेबी जाँच तो शुरू कर ही सकती है.

स्वतंत्र रिसर्च एनालिस्ट हेमिन्द्र हज़ारी कहते हैं, “मैं हैरान हूँ कि अभी तक सेबी या सरकार ने इस बारे में कुछ नहीं कहा है. निवेशकों की घबराहट दूर करने के लिए उन्हें बोलना चाहिए. जब शेयर बाज़ार आपके ख़िलाफ़ होता है तो निवेश संस्थाएँ बेहद सावधानी बरतने लगती हैं और अपना निवेश बढ़ाने से बचती हैं.”

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