Budget 2023: इनकम टैक्स पर मोदी सरकार का वो फॉर्मूला जिसे लोग नहीं दे रहे भाव – Aaj Tak

देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज यानी एक फरवरी को नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम संपूर्ण बजट पेश करने जा रही हैं. इस साल सैलरीड क्लास को इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव की उम्मीदें हैं, क्योंकि इसमें पिछले कई सालों से कोई बदलाव नहीं किया गया है. साल 2020 में मोदी सरकार नई टैक्स व्यवस्था भी लाई थी, जिसमें इनकम टैक्स के स्लैब को कई भागों में बांट दिया गया था. लेकिन नए टैक्स स्लैब्स में सारे डिडक्शन (कर छूट) हटा दिए गए थे.

आयकर भरने वाले लोगों को मोदी सरकार की यह नई व्यवस्था ज्यादा पसंद नहीं आई है. अधिकतर लोग पुरानी इनकम टैक्स व्यवस्था पर ही टिके हुए हैं. इस बजट में एक्सपर्ट्स को उम्मीद है कि नई टैक्स व्यवस्था को और बेहतर बनाने पर जोर दिया जा सकता है, जिससे लोगों का आकर्षण इस ओर ज्यादा बढ़ जाए.

नरेंद्र मोदी सरकार ने एक अप्रैल, 2020 को इस नई टैक्स व्यवस्था का ऐलान किया था. इस व्यवस्था में कर योग्य आय में बिना किसी छूट (डिडक्शन) के नए टैक्स स्लैब बनाए गए थे. हालांकि, अधिकतर सैलरीड क्लास ने मोदी सरकार की इस नई व्यवस्था पर नहीं बल्कि पुरानी व्यवस्था पर ही भरोसा जताया. 

एक्सपर्ट के अनुसार, देश में सात करोड़ टैक्स देने वाले लोगों में से सिर्फ पांच लाख लोगों ने ही इस नई व्यवस्था को चुना है. वर्तमान में इस नई टैक्स व्यवस्था में सात इनकम स्लैब्स दिए गए हैं. जिसके अनुसार, जिनकी सालाना आय 2.5 लाख तक है, उन्हें कोई टैक्स नहीं देना पड़ता है. जबकि जो लोग 2.5 लाख से 5 लाख के बीच साल में कमा रहे हैं, उन्हें पांच फीसदी टैक्स लगता है लेकिन सरकार टैक्स रिबेट देती है. यानी कुल 5 लाख तक की सालाना आय पर कोई टैक्स नहीं लगता है. जिनकी सालाना आय 5 लाख से 7.5 लाख है, उन्हें 10 फीसदी टैक्स देना होता है. वहीं 7.5 से 10 लाख तक की सालाना आय पर 15 फीसदी आयकर देना पड़ता है.

सैलरीड क्लास ने क्यों नहीं जताया नई व्यवस्था पर भरोसा 
दरअसल, भारत में अधिकतर करदाता घर का किराया, होम लोन, पीएफ वगैराह में पैसा खर्च करते हैं. इसके साथ ही वह लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस भी भरते हैं. इसलिए उन्हें इस नई व्यवस्था का कोई खास फायदा नहीं होता है. बल्कि अगर वह इस नई व्यवस्था को चुनते हैं तो उन्हें पुरानी व्यवस्था की तुलना में ज्यादा टैक्स देना पड़ता है.

सरकार की इस नई टैक्स व्यस्था में सैलरीड क्लास को स्टैंडर्ड डिडक्शन, एचआरए और एलटीए जैसी कोई टैक्स छूट नहीं मिलती है.  इसके अलावा 80 सी के तहत ईपीएफ, एलआईपी, स्कूल फीस, पीपीएफ, होम लोन री पेमेंट, ईएलएसएस में मिलने वाली टैक्स छूट भी नहीं मिलती है. इससे उनकी कर योग्य आय बढ़ जाती है और उन्हें पुरानी व्यवस्था की तुलना में ज्यादा टैक्स देना पड़ता है. 

एक्सपर्ट के अनुसार, पिछले आठ सालों से स्टैंडर्ड डिडक्शन की लिमिट को नहीं बढ़ाया गया है. एक्सपर्ट का मानना है कि मौजूदा समय में सेक्शन 80 सी डिडक्शन की लिमिट को बढ़ाने और होम लोन पर लगने वाले ब्याज को कम करने की जरूरत है. वर्तमान में सैलरीड क्लास को 50 हजार का स्टैंडर्ड डिडक्शन दिया जाता है. यह डिडक्शन सालाना तौर पर उनकी सीटीसी पर लागू किया जाता है. 

वहीं सेक्शन 80 सी के अनुसार, टैक्स देने वाले शख्स को अलग-अलग निवेश में 1.5 लाख तक की छूट मिलती है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि मौजूदा समय में बढ़ती महंगाई को देखते हुए सरकार को इस लिमिट को बढ़ाकर 2.5 लाख कर देनी चाहिए.

हर साल बजट में सैलरीड क्लास और इनकम टैक्सपेयर्स की अनदेखी क्यों?
देश में हर साल जब बजट पेश किया जाता है तो उसमें अलग-अलग वर्ग को फायदा पहुंचाने के लिए बड़ी घोषणाएं की जाती हैं. जबकि सैलरीड क्लास अधिकतर खाली रह जाता है. इसके पीछे का एक कारण यह भी है कि देश में 10 फीसदी से भी कम वोटर आयकर भरते हैं. जबकि करीब 90 फीसदी वोटर इनकम टैक्स नहीं भरते हैं. जबकि नॉर्वे और स्वीडन जैसे देशों में 100 फीसदी वोटर्स इनकम टैक्स भरते हैं. वहीं अमेरिका में 70 फीसदी वोटर्स आयकर भरते हैं. 

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