उपेंद्र कुशवाहा क्या नीतीश कुमार का साथ छोड़ बीजेपी के साथ जाएँगे? – BBC हिंदी

  • चंदन कुमार जजवाड़े
  • बीबीसी संवाददाता, पटना से

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बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार लगातार गठबंधन को एकजुट रखने में मशक्कत करते नज़र आ रहे हैं. कभी तेजस्वी यादव की पार्टी के नेता उनके ख़िलाफ़ मोर्चा खोलते हैं, तो कभी जेडीयू नेता, तो कभी ख़ुद तेजस्वी.

लेकिन इस बार तो मोर्चा उपेंद्र कुशवाहा ने खोला है, जो ख़ुद जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हैं. बिहार में सत्ताधारी जनता दल यूनाइडेड के अंदर चल रही खींचतान अब फ़ैसले पर पहुँचती नज़र आने लगी है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीधे शब्दों में उपेंद्र कुशवाहा को जवाब दे दिया है.

नीतीश ने कहा है, “किस किस को कहाँ बढ़ाएँ. जिसको जाना हो जितनी जल्दी जाना हो. जितना बोलना हो बोलिए और जिस दिन मन करे चले जाइए.”

मंगलवार को उपेंद्र कुशवाहा ने सार्वजनिक तौर पर ऐसा बयान दिया, जिससे उनकी ही पार्टी जनता दल यूनाइटेड के लिए असहज हालात पैदा हो गए हैं.

वो ऐसे बयान पार्टी के अंदर देते तो और बात होती, लेकिन सार्वजनिक मंच पर अपनी ही पार्टी को कमज़ोर बताने के मतलब कुछ और ही निकाले जा रहे हैं.

उपेंद्र कुशवाहा ने अपने ताज़ा आरोप में कहा है कि महागठबंधन बनते समय जेडीयू और आरजेडी में एक डील हुई थी, यह डील किसने की और क्या थी इसके बारे में पार्टी के बड़े नेताओं को बताना चाहिए.

उनका दावा है, “जेडीयू में में मेरे ख़िलाफ़ साज़िश हो रही है. दरअसल यह साज़िश मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ है क्योंकि मैं हर वक़्त नीतीश कुमार के साथ संकट के समय खड़ा रहता हूँ.”

उपेंद्र कुशवाहा ने ये भी आरोप लगाया है कि उनकी पार्टी के बड़े-बड़े नेता बीजेपी के संपर्क में हैं.

नीतीश कुमार का कुशवाहा से किनारा

उपेंद्र कुशवाहा और नीतीश कुमार

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ज़ाहिर है उपेंद्र कुशवाहा ख़ुद को हनुमान और नीतीश को राम भी बता रहे थे, लेकिन ‘विभीषण’ की तरफ़ इशारा भी कर रहे थे.

लेकिन अपनी ही पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष को नीतीश कुमार ने कोई महत्व नहीं दिया. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी पत्रकारों ने उपेंद्र कुशवाहा के आरोपों पर सवाल पूछा.

जवाब में उन्होंने कहा, “उपेंद्र कुशवाहा क्या बोलते हैं इससे कोई मतलब नहीं है.”

नीतीश का कहना है कि उनकी पार्टी का कोई नेता उनकी बात पर कुछ नहीं बोलेगा. उनके बाद, जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कुशवाहा पर हमला बोला है.

ललन सिंह ने कहा है- हमारी पार्टी के एक ही नेता बीजेपी के संपर्क में हैं और अब उनकी पहचान हो गई है.

सच ये भी है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पिछले दिनों दो तीन बार उन्होंने मिलने की कोशिश की थी. कुछ दिन पहले ख़ुद नीतीश कुमार ने इस बारे में कहा था.

विवाद की शुरुआत

तेजस्वी और नीतीश

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तमाम आरोप-प्रत्यारोपों के बीच ये जानना ज़रूरी है कि महागठबंधन का हिस्सा होने के बाद उपेंद्र कुशवाहा की नाराज़गी की आख़िर किस बात से शुरू हुई. बिहार की राजनीति में उपेंद्र कुशवाहा को एक महत्वाकांक्षी नेता के तौर पर देखा जाता है.

दिसंबर महीने में कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को महागठबंधन के भविष्य का नेता बताया था.

तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी बिहार सरकार में जेडीयू की साझेदार है. जानकारों की राय में गठबंधन में तेजस्वी के बढ़ते क़द से कुशवाहा परेशान है.

बिहार की राजनीति में उनके बयान को इस बात से जोड़ कर देखा गया कि बिहार तेजस्वी के भरोसे छोड़ कर नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति का रुख़ कर सकते हैं.

जानकारों का राय है कि नीतीश के तेजस्वी को बिहार की सत्ता सौंपने के बयान से जेडीयू के कई नेताओं की महत्वाकांक्षा को झटका लगा होगा. उनमें सबसे ऊपर उपेंद्र कुशवाहा हो सकते हैं.

उसके बाद से कुशवाहा लगातार इस तरह के बयान दे रहे हैं, जो महागठबंधन के लिए असहज हालात पैदा कर रहे हैं.

मंगलवार को मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि जिस वक़्त नीतीश कुमार पर बार-बार हमले हो रहे थे, उस वक़्त वो ही सामने आकर उनका बचाव कर रहे थे.

उन्होंने नाम लिए बग़ैर आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह के बार-बार नीतीश कुमार को लेकर आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल का भी ज़िक्र किया.

लेकिन कुशवाहा के सुधाकर सिंह के बयानों के ख़िलाफ़ खड़े होने को अपना बड़ा काम भले ही बता रहे हों, हक़ीक़त यह है कि उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश के बचाव में उतरकर सुधाकर सिंह के बयानों को महत्व दे दिया.

इसके पहले न तो आरजेडी और न ही जेडीयू उनके बयानों को बहुत महत्व दे रही थी. तेजस्वी यादव ने तो सुधाकर सिंह के बयानों को ‘बीजेपी की भाषा’ बताकर ख़ारिज भी कर दिया था.

ये तो उनकी नाराज़गी की शुरुआत की कहानी है.ये नाराज़गी अभी दूर भी नहीं हुई थी कि नीतीश कुमार के दूसरे बयान ने उपेंद्र कुशवाहा को और ज़्यादा नाराज़ कर दिया.

दूसरे उप मुख्यमंत्री कुशवाहा?

उपेंद्र कुशवाहा

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कुछ ही दिन पहले बिहार में एक ख़बर चर्चा में आई कि बिहार सरकार में जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार हो सकता है और उपेंद्र कुशवाहा को दूसरे उप मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई जा सकती है.

उसके बाद नीतीश कुमार ने बिना पूछे इस मुद्दे पर बयान दिया था कि उनकी ऐसी कोई योजना नहीं है और बिहार में तेजस्वी यादव के अलावा दूसरा उपमुख्यमंत्री नहीं होगा. यह उपेंद्र कुशवाहा को नीतीश की तरफ़ से सीधा इशारा था.

वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण मानते हैं कि दूसरे उप मुख्यमंत्री वाली ख़बर कुशवाहा खेमे की तरफ़ से ही प्रचारित की गई होगी. लेकिन नीतीश कुमार ने इसे ख़ारिज कर दिया.

पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर कहते हैं, “ऐसा लगता है कि दूसरे उप मुख्यमंत्री वाला शगूफ़ा ख़ुद उपेंद्र कुशवाहा के लोगों ने छोड़ा होगा, लेकिन जब नीतीश ने इससे साफ़ मना कर दिया तो उपेंद्र कुशवाहा की महत्वाकांक्षा का झटका लगा.”

डीएम दिवाकर का मानना है कि तेजस्वी यादव के बराबर किसी और को उप मुख्यमंत्री बनाने का मतलब है कि उसकी ताक़त तेजस्वी के बराबर होनी चाहिए, जबकि कुशवाहा के पास कोई ताक़त नहीं है, वो अकेले हैं.

उपेंद्र कुशवाहा केंद्र की मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल में मंत्री भी रहे हैं.

एक बार फिर उनकी ‘पद से जुड़ी’ राजनीतिक महत्वाकांक्षा को ही नीतीश कुमार से दूरी की वजह माना जा रहा है.

दिल्ली में बीजेपी नेताओं से मुलाक़ात

उपेंद्र कुशवाहा और प्रेम रंजन पटेल

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लेकिन कई बात केवल जेडीयू से दूरी की नहीं. नीतीश कुमार के लिए कुशवाहा के बीजेपी से नज़दीकी भी चिंता का सबब है.

जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने बीबीसी से कहा- पार्टी ने उनको पूरा सम्मान दिया है लेकिन वो जिस तरह की बातें कर रहे हैं, इससे उनका एजेंडा साफ़ दिख रहा है, इस पर और क्या कहना है.

दरअसल पिछले हफ़्ते ही उपेंद्र कुशवाहा इलाज के लिए दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल में एडमिट हुए थे. इस दौरान बिहार बीजेपी के प्रवक्ता और पूर्व विधायक प्रेम रंजन पटेल उनके मिलने एम्स गए थे.

इस मुलाक़ात की तस्वीर सोशल मीडिया पर काफ़ी चर्चा में रही थी. यहीं से यह कयास लगाने शुरू हो गए थे क्या उपेंद्र कुशवाहा एक बार फिर से एनडीए में शामिल हो सकते हैं?

उपेंद्र कुशवाहा ने इस मुलाक़ात पर कहा कि इस बात को बिना मतलब के तूल दिया जा रहा है. मेरी तबियत ख़राब थी और कोई हालचाल लेने आया तो इसे बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है.

नचिकेता नारायण कहते हैं, “एम्स में बीजेपी नेताओं से मिलना सामान्य बात भी हो सकती है और कई बार इस तरह की मीटिंग नेताओं की तरफ़ से इशारा भी होता है कि उनके पास और भी विकल्प हैं. ऐसी मुलाक़ात की तस्वीरों का इस्तेमाल अपने लिए मोल-तोल करने के लिए भी किया जाता है.”

वहीं डीएम दिवाकर का मानना है कि उपेंद्र कुशवाहा ने बीजेपी नेताओं से बात की होगी, अब क्या बात हुई है ये वो ही बता सकते हैं.

लेकिन वो साथ ही जोड़ते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा के राजनीतिक जीवन को देखेंगे, तो वो कितनी बार यहाँ-वहाँ कर चुके हैं, इससे गिन पाना भी मुश्किल है. इसलिए उपेंद्र कुशवाहा का कहीं और जाना मायने नहीं रखता है.

डीएम दिवाकर का कहना है कि नीतीश ने उपेंद्र कुशवाहा को जेडीयू में शामिल कर अपना बड़प्पन दिखाया था. नीतीश ने जिस वक़्त ऐसा किया था, उस समय उपेंद्र कुशवाहा की राजनीतिक हैसियत ख़त्म हो चुकी थी.

वे कहते हैं, “उपेंद्र कुशवाहा के पास बचा क्या था. न तो लोकसभा में कोई सीट, न विधानसभा में. उनकी पार्टी के ज़िला स्तर के लोग भी आरजेडी में शामिल हो चुके थे. आरएलएसपी के नाम पर उपेंद्र कुशवाहा अकेले बचे हुए थे.”

साल 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय जेडीयू में कर दिया था.

नीतीश ने कुशवाहा के जेडीयू में शामिल होते ही उन्हें जेडीयू के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया था. बाद में उन्हें बिहार विधान परिषद का सदस्य भी बनाया गया.

वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण इसे दूसरी तरह से देखते हैं. उनका कहना है कि बिहार विधानसभा के 2020 के चुनावी नतीजों में ख़ुद नीतीश की पार्टी 2015 के मुक़ाबले कमज़ोर हुई थी.

नचिकेता कहते हैं, “नीतीश कुमार ने हर तबके के समर्थन के लिए उपेंद्र कुशवाहा को जेडीयू में शामिल कर लिया, लेकिन इसके लिए कुशवाहा को अपनी पार्टी आरएलएसपी को ख़त्म करना पड़ा था.”

बिहार की सत्ता में महागठबंधन के आए छह महीने भी पूरे नहीं हुए हैं, लेकिन गठबंधन के साझेदार नेताओं और पार्टियों के बीच बयानबाज़ी राज्य में एक और राजनीतिक उथल पुथल के संकेत दे रही है.

उपेंद्र कुशवाहा का राजनीतिक सफ़र

कुशवाहा और वीके सिंह

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उपेंद्र कुशवाहा ने राजनीतिक सफ़र समता पार्टी से ही शुरू किया था. साल 1999 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू और समता पार्टी अलग-अलग राजनीतिक दल थे. समता पार्टी में जॉर्ज फ़र्नांडिस और नीतीश कुमार जैसे नेता थे, जबकि जेडीयू में शरद यादव थे.

साल 2000 के बिहार विधानसभा चुनावों में मात खाने के बाद आरजेडी से मुक़ाबले करने के लिए समता पार्टी और जेडीयू का विलय किया गया था.

विलय के बाद पार्टी का नाम तो जेडीयू ही रखा गया. इस विलय के बाद बिहार विधानसभा में जेडीयू सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनी थी.

साल 2003 में जेडीयू ने बिहार विधासभा में उपेंद्र कुशवाहा को बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया था. इसके पीछे उनका मक़सद लालू के ‘एम-वाई’ समीकरण के मुक़ाबले ‘लव-कुश’ समीकरण खड़ा करना था, जिनमें कुर्मी, कोइरी, कुशवाहा जाति सभी शामिल थे.

वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण मानते हैं कि जेडीयू में नीतीश कुमार ही मुख्य नेता माने जाते रहे हैं और उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा को यह मौक़ा दिलाया था. उस दौरान केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी और जेडीयू उसका हिस्सा थी.

नरेंद्र मोदी को बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाने के बाद साल 2013 में नीतीश कुमार एनडीए से अलग हुए थे. इसी समय उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बनाई (आरएलएसपी) थी.

एनडीए में मंत्री

एनडीए की रैली

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कुशवाहा ने उस वक़्त बीजेपी से गठबंधन किया था और उनका फ़ैसला सही निकला. साल 2014 के लोकसभा चुनावों में आरएलएसपी को तीन सीटों पर जीत मिली थी.उसके बाद उपेंद्र कुशवाहा केंद्र सरकार में राज्यमंत्री भी बनाए गए थे. साल 2017 में आरजेडी से तालमेल नहीं बनने के बाद नीतीश कुमार एनडीए में वापस आ गए.

इसी दौरान उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए के लिए असहज स्थिति बना दी.

डीएम दिवाकर मानते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा को शिक्षा विभाग में राज्य मंत्री तो बना दिया गया, लेकिन उन्हें कोई काम नहीं दिया गया और वो पटना में आकर शिक्षा के मुद्दे पर धरना प्रदर्शन करने लगे.

कुशवाहा ने पटना के मिलर स्कूल में शिक्षा में सुधार के नाम पर एक मानव शृंखला भी बनवाई, जिसमें वो ख़ुद शामिल हुए थे. लेकिन इसमें एनडीए से कोई और नहीं, बल्कि आरजेडी से शिवानंद तिवारी शामिल हुए थे, जिसने बिहार में एक नई राजनीति की तरफ़ इशारा किया था.

2018 के अंत में कुशवाहा एनडीए से अलग हो गए और 2019 के लोकसभा चुनावों में वो बिहार में विपक्षी महागठबंधन के साथ आ गए. यहाँ उनका पूर्वानुमान फ़ेल हो गया.

आरएलएसपी को इन चुनावों में गठबंधन में पाँच सीटों पर चुनाव लड़ने को मिला, जिनमें से दो पर कुशवाहा ख़ुद लड़े, लेकिन दोनों सीटों पर हार गए.

इन चुनावों में उनकी पार्टी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. उसके बाद उपेंद्र कुशवाहा ने महागठबंधन का भी साथ छोड़ दिया.

बिहार में साल 2020 के विधानसभा चुनावों में उपेंद्र कुशवाहा ने मायावती की बीएसपी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन बनाया.

इन चुनावों में कुशवाहा ने ख़ुद को सीएम का चेहरा प्रोजेक्ट किया था. हालाँकि चुनावों में उनकी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली.

उसके बाद नीतीश कुमार ने उन्हें जेडीयू में शामिल कर लिया.

बीजेपी के लिए कुशवाहा का महत्व

एनडीए

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बिहार की राजनीति में उपेंद्र कुशवाहा ख़ुद बड़ी ताक़त नहीं रहे हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव और 2020 के विधानसभा चुनावों में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को कोई सीट नहीं मिली थी.

वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, “बीजेपी से लगतार उसके सहयोगी अलग हो रहे हैं. शिवसेना, अकाली दल और जेडीयू के अलग होने से बीजेपी के सामने एक सवाल रखा जा सकता है कि वो सहयोगियों के लिए सही पार्टी नहीं है, इसलिए वो उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए में वापस ले सकते हैं.”

नचिकेता नारायण मानते हैं कि कुशवाहा ख़ुद बीजेपी में शामिल होंगे, इसकी संभावना कम है, वो फिर से पार्टी बनाकर गठबंधन कर सकते हैं. हालाँकि ऐसा नहीं लगता है कि ये अगले कुछ दिनों में ही हो जाएगा.

वहीं डीएम दिवाकर का मानना है कि बिहार में कुशवाहा वोटर मुश्किल से तीन फ़ीसदी होंगे, हालाँकि अब बिहार में मंडल कमिशन वाली 1990 के दशक वाली जातीय राजनीति नहीं होती है, फिर भी अगर वो बीजेपी से जुड़ते हैं तो चुनावों के समय बीजेपी के पास दिखाने के लिए एक नेता होगा और वो जनता को संदेश दे सकती है कि हमारे पास भी लोग आ रहे हैं.

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