उपेंद्र कुशवाहा की विदाई जदयू की रीति के अनुकूल ही होगी, इन दिग्गजों को भी कभी नहीं दिखाया गया बाहर का रास्ता – दैनिक जागरण (Dainik Jagran)

Arun AsheshPublish Date: Wed, 25 Jan 2023 05:32 PM (IST)Updated Date: Wed, 25 Jan 2023 05:32 PM (IST)

अरुण अशेष, पटना। जदयू में विदाई की पुरानी रीति है। विदा होने वाले नेता पहले नेतृत्व के निर्णयों पर प्रश्न खड़े करते हैं। कुछ दिन बहस चलती है। उसके बाद नेता अपनी इच्छा से विदा हो जाते हैं। यह नहीं होता है कि नेतृत्व सीधे बाहर का रास्ता दिखा दे।

इसी रीति से दल के संस्थापकों में रहे जार्ज फर्नांडिस से लेकर शरद यादव और बाद में शामिल हुए प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह विदा हुए। बीच की अवधि में पार्टी से बाहर गए कुछ और बड़े नाम वाले नेताओं को जोड़ दें तो शकुनी चौधरी और शिवानंद तिवारी की विदाई का स्मरण किया जा सकता है।

समता पार्टी के समय से ही इसी प्रक्रिया से नेताओं की विदाई होती रही है। इस समय जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा लाइन में हैं। समता पार्टी के संस्थापक जार्ज फर्नांडिस और जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव अब नहीं हैं। लेकिन, ये दोनों भी नेतृत्व के साथ असहमति के कारण ही पार्टी से विदा हुए थे।

यूं हुई थी जार्ज की विदाई

पार्टी का टिकट नहीं मिलने के कारण जार्ज 2009 में लोकसभा का चुनाव निर्दलीय लड़ गए थे। मुजफ्फरपुर में उनकी जमानत भी नहीं बच पाई थी। हालांकि, उसी साल वे संक्षिप्त अवधि के लिए जदयू के राज्यसभा सदस्य भी बने। उसके बाद जार्ज कभी जदयू की मुख्यधारा में शामिल नहीं हुए।

शरद यादव से लेकर राजीव रंजन तक

नेतृत्व से असहमति के कारण शरद यादव की राज्यसभा सदस्यता समाप्त करवा दी गई थी। वे जदयू में रहते हुए नेतृत्व के निर्णयों को चुनौती दे रहे थे। वर्तमान अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह का भी बीच में नेतृत्व से मतभेद हुआ था। 2010 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जदयू के विरोध में प्रचार किया था।

वह डेढ़ साल बाद फिर पार्टी की मुख्यधारा में शामिल हुए। समता पार्टी और जदयू के नेताओं के अलगाव और पुनर्मिलन की लंबी सूची है। सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह भी उसमें शामिल रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा दो बार अलग हुए। दो बार शामिल हुए। अब वे अलग होते हैं तो यह तीसरा अलगाव होगा।

आरसीपी सिंह की राह पर उपेंद्र कुशवाहा

उपेंद्र कुशवाहा के जदयू में बने रहने की संभावना इसलिए अभी नहीं नजर आ रही है, क्योंकि कुछ महीने पहले पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह इसी तरह के परिदृश्य से दो-चार हुए थे। उन्होंने नीतीश को अपना नेता कहा था। राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह ऊर्फ ललन सिंह के नेतृत्व के प्रति अविश्वास प्रकट किया था। उपेंद्र भी ठीक इसी रास्ते पर चल रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की टिप्पणी भी पहले जैसी है कि लोग आते हैं। कुछ बनते हैं और चले जाते हैं।

Edited By: Yogesh Sahu

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