24 घंटे में VRS और नई नियुक्ति भी… कौन हैं अरुण गोयल जिनको चुनाव आयोग भेजने पर घिर गई है केंद्र सरकार – Aaj Tak

अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्ति पर सवाल खड़े हो गए हैं. ये सवाल सुप्रीम कोर्ट ने उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से अरुण गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल मांगी है. सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच ने केंद्र सरकार से कहा कि वो बस ये देखना चाहते हैं कि इस नियुक्ति में कोई ‘Hanky Panky’ यानी गड़बड़झाला तो नहीं हुआ है.

सुप्रीम कोर्ट में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है. इसकी सुनवाई जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनुराधा बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच कर रही है.

बेंच ने कहा कि हम तो बस ये जानना चाहते हैं कि नियुक्ति के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई? अगर ये नियुक्ति कानूनी तौर पर सही है तो घबराने की क्या जरूरत है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बेहतर होता कि सुनवाई के दौरान ये नियुक्ति नहीं होती.

अरुण गोयल की नियुक्ति पर विवाद क्यों हो रहा है? सुप्रीम कोर्ट में किस मामले पर चल रही है सुनवाई? केंद्र सरकार का क्या है कहना? सिलसिलेवार तरीके से जानते हैं…

सबसे पहले सुनवाई किस बात की?

– सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर हुई थी. इसमें मांग की गई थी कि चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसा सिस्टम होना चाहिए.

– कॉलेजियम सिस्टम जजों की नियुक्ति के लिए होता है. कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के जज होते हैं, जो जजों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार को नाम भेजते हैं. केंद्र की मुहर के बाद जजों की नियुक्ति होती है.

– याचिकाकर्ता अनूप बरांवल ने याचिका दायर कर चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में भी कॉलेजियम जैसे सिस्टम की मांग की थी. 23 अक्टूबर 2018 को इस मामले को 5 जजों की संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया गया था.

– इसी मामले में जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली बेंच सुनवाई कर रही है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये भी टिप्पणी की कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में चीफ जस्टिस को भी शामिल किया जाना चाहिए. 

अब बात अरुण गोयल की नियुक्ति पर विवाद क्यों?

– चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार हैं. जबकि अनूप चंद्र पांडे चुनाव आयुक्त हैं. दूसरे चुनाव आयुक्त अरुण गोयल हैं. चुनाव आयुक्त का एक पद इस साल मई से ही खाली था, क्योंकि सुशील चंद्रा रिटायर हो गए थे.

– अरुण गोयल की नियुक्त पर विवाद इसलिए हो रहा है, क्योंकि चुनाव आयुक्त नियुक्त होने से एक दिन पहले ही उन्होंने वीआरएस यानी वॉलेंटरी रिटायरमेंट ले लिया था. गोयल इससे पहले हेवी इंडस्ट्रीज मिनिस्ट्री में सचिव थे. वो इसी साल 31 दिसंबर को रिटायर होने वाले थे.

– मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त के पद पर सरकारी सेवा से रिटायर अफसर को ही रखा जाता है. उनका कार्यकाल 6 साल या 65 साल की उम्र तक रहता है.

– अरुण गोयल की नियुक्ति पर याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने सवाल उठाए. भूषण ने कहा कि अदालत में सुनवाई शुरू होने के बाद सरकार ने जल्दबाजी में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की.

– प्रशांत भूषण ने कहा कि जिन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया है, वो गुरुवार तक केंद्र सरकार में सचिव स्तर के अधिकारी थी. अचानक से उन्हें वीआरएस दिया जाता है और एक दिन में ही उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया जाता है. 

– भूषण ने सवाल उठाया कि केंद्र सरकार एक ही दिन में नियुक्ति कर देती है और कोई नहीं जानता कि इसके लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई? इस पर जस्टिस जोसेफ ने भी कहा कि किसी व्यक्ति को वीआरएस लेने में तीन महीने लगते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

– सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से अरुण गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल मांगी है. अदालत ने कहा कि वो बस ये देखना चाहती है कि नियुक्ति के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई?

– कोर्ट ने कहा कि हम बस ये देखना चाहते हैं कि मैकेनिज्म क्या है? आप दावा कर रहे हैं कि सब कुछ सही है. लेकिन सुनवाई के बीच ही नियुक्ति की गई, इसलिए इसे आपस में लिंक किया जा सकता है.

– जस्टिस जोसेफ ने कहा कि हम बस देखना चाहते हैं कि नियम के तहत नियुक्ति हुई है या नहीं. लेकिन अगर फाइल डिसक्लोज नहीं करना चाहते तो हमें बताएं.

– कोर्ट ने ये भी टिप्पणी की कि कोई भी सत्ताधारी दल खुद को सत्ता में बनाए रखना चाहता है और मौजूदा सिस्टम के तहत ‘Yes Man’ नियुक्त कर सकता है.

– बेंच ने गुरुवार को कहा कि अरुण गोयल की नियुक्ति की प्रक्रिया को ‘बिजली की गति’ से मंजूरी मिल गई. एक दिन में उन्हें वीआरएस दे दिया गया. कानून मंत्रालय ने उनकी फाइल उसी दिन क्लियर कर दी. चार नामों का पैनल प्रधानमंत्री के पास रखा गया और 24 घंटे के भीतर राष्ट्रपति ने भी उसे मंजूरी दे दी.

– कोर्ट ने ये भी कहा कि हम अरुण गोयल की साख पर कोई सवाल नहीं उठा रहे हैं, बल्कि हम प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं.

केंद्र सरकार ने क्या कहा?

– केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने कहा कि सबकुछ 1991 के कानून के तहत हुआ है और अभी फिलहाल ऐसा कोई ट्रिगर पॉइंट नहीं है जहां अदालत को दखल देने की जरूरत पड़े.

– एजी वेंकटरमणी ने कहा कि अदालत को इतनी दूर जाने की जरूरत नहीं है और एक बड़े मुद्दे की सुनवाई के बीच एक अलग मामले की फाइल देखना भी सही नहीं है.

– उन्होंने कहा कि अगर अदालत को फाइलें दिखाने की जरूरत होगी तो हम दिखाएंगे. अगर कुछ गलत हुआ होगा तो एक अटॉर्नी जनरल के रूप में मैं अदालत के सामने इसे रखूंगा. लेकिन इस मामले को सिर्फ इसलिए नहीं देखना चाहिए क्योंकि किसी ने सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि ये पद मई से खाली था, जिसे अब भरा गया है.

कौन हैं अरुण गोयल?

– अरुण गोयल 1985 बैच के पंजाब काडर के आईएएस हैं. 1993 में गोयल भटिंडा के कलेक्टर बने. 1995 से 2000 तक लुधियाना के कलेक्टर रहे. 2010 तक गोयल पंजाब सरकार में अलग-अलग पदों पर रहे.

– 2011 में उनकी नियुक्ति केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय में संयुक्त सचिव के रूप में हुई. 2018 में संस्कृति मंत्रालय और 2020 में भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव बने. 

– इस साल 31 दिसंबर को वो रिटायर होने वाले थे, लेकिन महीनेभर पहले ही उन्हें वीआरएस दिया गया और चुनाव आयुक्त बनाया गया. भारी उद्योग मंत्रालय में वो 18 नवंबर तक सचिव रहे और 19 नवंबर को उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया. 21 नवंबर को उन्होंने कार्यभार भी संभाल लिया.

– मौजूदा मुख्य चुनाव राजीव कुमार फरवरी 2025 तक इस पद पर रहेंगे. उनके बाद अरुण गोयल मुख्य चुनाव आयुक्त बन सकते हैं. 

 

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