नीतीश नहीं, तेजस्वी यादव के लिए सिरदर्द बने थे सुधाकर सिंह, हैरान करने वाला है लालू फैमिली का पूरा प्लान! – Navbharat Times

पटना: उठा-पटक की राजनीति का गवाह बनता महागठबंधन की सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। समझौते के आधार पर पड़ी महागंठबंधन की नींव अब अपने ही बोझ से डगमगाने लगी है। कार्तिकेय सिंह के इस्तीफे के बाद कृषि मंत्री सुधाकर सिंह का इस्तीफा तो अभी इस खेल की शुरुआत भर है। पर इतना तो अभी लगने लगा है कि महागठबंधन की सरकार बने अभी लगभग दो महीने हुए हैं, पर अभी तक जो हालात सामने आए हैं, उसे देखकर तो यही लगता है जेडीयू और आरजेडी के नेतृत्व का कमान संभाले नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दबाव की राजनीति के शिकार हो रहे हैं।

बयानों के दबाव में थे नीतीश!
साफ सुथरी राजनीति के लिए जाने जाने वाले नीतीश कुमार पर तो दबाव उसी दिन से बढ़ गया था जब एक साथ बीजेपी ने बयानों की बौछार करते मंत्री बने कार्तिकेय सिंह, सुधाकर सिंह, सुरेंद्र यादव, रामानंद यादव पर आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने का मामला उठा दिया था। नीतीश कुमार की राजनीति का यह इतिहास रहा है कि आपराधिक मामले में जिस किसी का नाम आया उस मंत्री से त्याग पत्र ले लेते रहे हैं। चाहे वह जेडीयू के जीतनराम मांझी हों या आरएन सिंह। या फिर बीजेपी के ही रामाधार सिंह थे, सबसे इस्तीफा ले लिया था। मगर महागंठबंधन की सरकार में यह होना तो था नहीं। कार्तिकेय सिंह ने इस्तीफा तब दिया जब उनका बेल टूटने वाला था। लेकिन शेष तीन अभी भी सरकार में शामिल हैं।

सुधाकर सिंह के आहत करने वाले बयान
सबसे पहले सुधाकर सिंह ने अपने उस बयान से सीएम नीतीश कुमार को नाराज कर दिया, जिसमें एक सिरे से कृषि रोड मैप को नकार दिया। दूसरा हमला कृषि मंत्री रहे सुधाकर सिंह ने बीज निगम को 200 करोड़ के घोटाले में लपेटते हुए यह कह डाला कि उन्नत बीज के नाम पर भारी घोटाला हुआ है। इससे किसान को कोई फायदा नहीं। नाराजगी की तीसरी वजह जो गया कृषि मंत्री रहे सुधाकर सिंह का वह बयान जिसमें उन्होंने इथेनॉल नीति को गलत साबित करते साफ कह डाला कि चावल और मक्का से इथेनॉल प्राप्त करने की नीति मेरे कार्यकाल में नही चलेगी।

नाराजगी की सबसे बड़ी वजह हो गई बाजार समिति की पुनर्स्थापना की बात। और हद तो तब हो गई जब उन्होंने राज्य भर के किसानों का पंचायत बुलाने की बात कह कर नीतीश कुमार को चुनौती दे डाली। खराब तो नीतीश कुमार को तब भी लगा था जब अधिकारियों को चोर कह डाला था जनता को घुस खोरों को जूता से पीटने का आदेश दे डाला था।

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इन सब हरकतों से नीतीश कुमार की परेशानी बढ़ रही थी। उनके पूरे जीवन काल की यूएसपी को कठघरे में खड़ा किया जा रहा था। तेजस्वी यादव को भी लगने लगा कि यह गठबंधन की सरकार के लिए यह ठीक तो नहीं ही है। साथ ही ऐसी हरकत जारी रहे तो नीतीश कुमार अपने वादे से भी मुकर सकते हैं।

दबाव में तेजस्वी भी!
डेप्युटी सीएम तेजस्वी यादव कृषि मंत्री के बयानों से दुखी तो जरूर थे, लेकिन दवाब में वह तब आ गए जब पार्टी फोरम पर ही उन्हें सीएम बनाने की बात कई कोणों से उछाली जाने लगी। सकते में वह तो तब आ गए जब शिवानंद तिवारी ने सीएम की गद्दी छोड़ आश्रम खोलने के लिए कह दिया। इन सब बातों से जेडीयू के भीतर भारी प्रतिक्रिया होने लगी कि ये लोग जबरन सीएम की कुर्सी हथियाना चाहते हैं। इनमें सब्र नाम की चीज नहीं है।

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तेजस्वी यादव तब बहुत ज्यादा दबाव में आ गए जब राष्ट्रीय अध्यक्ष जगतानंद सिंह ने 2023 में तेजस्वी को सीएम बनाने की बात कह दी और यह भी कह दिया कि नीतीश कुमार विपक्षी एकता की यात्रा को अंजाम देंगे।

प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के इस बयान के बाद तेजस्वी यादव के साथ साथ जेडीयू के शीर्ष नेतृत्व भी भारी दबाव में आ गए। खुद तेजस्वी यादव भी भरी दबाव में आ गए कि जो नीतीश कुमार बार-बार मुख्यमंत्री बनाने की बात कह रहे हैं वह इन बयानों के बाद इरादा कहीं बदल न दें। वैसे भी यह एक तरह से अथारिटी पर सवाल उठ खड़ा हुआ था। सो, इस्तीफा दिलाना तेजस्वी यादव को अपने भविष्य के लिए भी करना ही था।

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बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने इस प्रकरण पर साफ कहा है कि इस्तीफा दिया नहीं, लिया गया है। इस्तीफा नहीं दिलाते तो डेप्युटी सीएम का सीएम बनने का सपना भी अधूरा ही रह जाता।

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