द सटैनिक वर्सेज़ समेत कई किताबों के लेखक सलमान रुश्दी पर शुक्रवार (12 अगस्त, 2022) को चाकू से हमला हुआ. उनकी हालत नाजुक बनी हुई है और वे अभी वेंटिलेटर पर हैं.
रुश्दी पर हमले की ख़बर दुनिया भर में सुर्खियों में छाई हुई है और साथ ही उनकी एक किताब का ज़िक्र भी हर जगह हो रहा है. ये किताब है ‘द सैटेनिक वर्सेज़’, जो 1988 में प्रकाशित हुई थी.
तब तक सलमान रुश्दी अपने दूसरे उपन्यास ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रेन’ (1981) के लिए बुकर पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके थे. 1983 में उनकी तीसरी किताब ‘शेम’ भी आ चुकी थी और फिर पांच साल बाद 1988 में आई ‘द सैटेनिक वर्सेज़’ ने पूरे इस्लामिक जगत में हलचल मचा दी.
सलमान रुश्दी की किताब ‘द सैटेनिक वर्सेज़’ के कुछ हिस्सों पर ईशनिंदा का आरोप था. 80 के दशक के उत्तरार्ध में आई इस किताब को लेकर ब्रिटेन समेत दुनिया के कई देशों में विरोध प्रदर्शन हुए.
बीबीसी ने इस किताब के प्रकाशन के बाद सलमान रुश्दी से बात की थी. पढ़ें उस इंटरव्यू में सलमान रुश्दी से क्या सवाल पूछे गए थे और उन्होंने उसका क्या जवाब दिया था.
सलमान रुश्दी क्या धर्म में विश्वास करते हैं?
इस किताब में बंबई से लंदन और छठी सदी के मक्का के बारे में लिखा गया है. जब सलमान रुश्दी से पूछा गया कि क्या वो धर्म में विश्वास करते हैं तो उन्होंने कहा ये मेरे लिए मिडनाइट चिल्ड्रेन के एक किरदार दादा जी की तरह है.
वे कहते हैं, “मेरे लिए भगवान में विश्वास कुछ उसी तरह है जैसे कि मिडनाइट चिल्ड्रेन के एक पात्र जो कि दादा जी हैं उनके लिए था. वे ईश्वर के अस्तित्व में अपना विश्वास खो रहे थे और उनका कहना था कि उनके अंदर जहां भगवान हुआ करते थे वहां एक छेद हो गया है.”
“मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है. मैं पहले धार्मिक हुआ करता था. जब मैं छोटा था. लेकिन मेरे मन में कई सवाल भी उठते रहते थे.”
“अगर आप बंबई जैसे शहर में बड़े हो रहे हैं तो आप हर धर्म के लोगों के बीच में बड़े होते हैं. मेरे दोस्त सभी धर्मों के थे. आप ईसाई स्कूल में जाते हैं. वहां केवल दो प्रतिशत ईसाई बच्चे होते हैं लेकिन वहां आप ईसाइयों के अनुसार प्रार्थना करते हैं, जिनके शब्द शुरू शुरू में आपको पता तक नहीं होते.”
“तो मैं ये बिल्कुल भी नहीं कह सकता हूं कि धर्म सच में मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता है लेकिन दूसरी ओर मैं धार्मिक बिल्कुल भी नहीं हूं.”
द सैटेनिक वर्सेज़ के किरदारों पर सलमान रुश्दी ने क्या कहा?
द सैटनिक वर्सेज़ में दो मुख्य किरदार हैं, जिबरील फरिश्ता और सलादीन चमचा. ये दोनों भारतीय मुस्लिम पृष्ठभूमि से आते हैं.
सलमान कहते हैं, “फरिश्ता दक्षिण भारतीय फ़िल्मों में धार्मिक किरदार निभाने वाले कैरेक्टर पर आधारित है. वो फ़िल्मों में भगवान का किरदार निभाते हैं.
इस किताब में सलादीन चमचा का एक किरदार है जिनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है और वो ब्रिटेन में आ कर गिरते हैं और उन्हें यहां अप्रवासी के तौर पर बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है. क्या उनका किरदार आपके अपने अप्रवासी के दौर से मिलता है?
इस पर सलमान ने कहा, “निश्चित रूप से, उनके चरित्र का चित्रण मेरे अपने अनुभव से मैंने लिया है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वो पूरी तरह से मेरा किरदार ही है. वो ऐसा किरदार है जो जहां रहे वहीं से जुड़ा हुआ महसूस करता है, चाहे बंबई हो या लंदन, लेकिन साथ ही वो कहीं का रहने वाला नहीं है.”
“लंदन में लोगों ने उसका यहां से जुड़ाव मुश्किल बना रखा है लेकिन उसकी तीव्र लालसा इंग्लिश मैन बनने की है.”
उसने अपने पहनावे से लेकर हर तौर तरीक़े में ख़ुद को इंग्लिश मैन दिखाने की कोशिश की लेकिन वो इंग्लिश मैन से अधिक कार्टून कैरेक्टर के जैसा दिखता है. उसने अपना रूपांतरण किया लेकिन वो एक दयनीय शैतान के रूप में बदल गया.
सलमान रुश्दी की मां ने इंग्लैंड आने से पहले उनसे क्या कहा था?
सलमान रुश्दी कहते हैं, “अगर मुझे इस उपन्यास के बारे में एक शब्द में कहना होगा तो मैं कहूंगा कि ये पूर्ण रूप से रूपांतरण के बारे में है, बदलाव के बारे में है.”
“यह उस बदलाव के बारे में है जब आप दुनिया के किसी एक हिस्से से दूसरे में जाते हैं. इसका प्रभाव व्यक्ति विशेष, समूह, जाति या संस्कृति पर पड़ता है और यह उससे आए बदलाव के विषय में है.”
“ये उस बदलाव के बारे में जब दुनिया में किसी धर्म को लेकर नए विचार आते हैं.”
सलमान रुश्दी से जब ये पूछा गया कि उन्होंने किताब में रग्बी के दौरान नस्लवाद से हुए सामना के बारे में लिखा है. क्या उन्हें इससे धक्का लगा और आश्चर्य हुआ?
इस पर सलमान ने कहा, हां मुझे लगा.
उन्होंने एक वाकया बताया, “मेरी मां ने मुझसे इंग्लैंड आने से पहले यहां के लोगों के बारे में दो चीज़ें कही थीं. पहला ये कि, वो पॉटी करने के बाद अपने नितंब की केवल पेपर से सफ़ाई करते हैं. दूसरा, वो दूसरे के छोड़े गए नहाने के पानी से भी स्नान करते हैं. तो मुझे लगा कि ये तो हो ही नहीं सकता, ये तो जंगली लोगों की तरह है. फिर जब मैं यहां बोर्डिंग स्कूल में आया तो यहां मुझसे दूसरे छात्रों के छोड़े गए गंदे पानी को बाथरूम में शेयर करने को कहा गया. टॉयलेट में केवल पेपर हुआ करता था. तब जाकर लगा कि मां जो कह रही थीं वो बिल्कुल सही था.”
विरोध क्यों हुआ?
ईरान में तब के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी खमैनी के कट्टरवाद की इस किताब में आलोचना की गई है.
सलमान कहते हैं, “मैंने उन चीज़ों को अपने काल्पनिक उपन्यास में लिया है जिनके बारे में सुन कर लगता है कि वो वस्तुतः वैसी नहीं हैं.”
“जब मैं यूनिवर्सिटी में इतिहास पढ़ रहा था और प्रारंभिक इस्लामिक इतिहास मेरा प्रमुख विषय था. तो मैंने पाया कि पैग़ंबर मोहम्मद की (सभी नहीं बल्कि) कुछ अजीब कहानियां मौजूद हैं जो प्रलोभन की कहानियों की तरह हैं. जिसमें मोहम्मद को किसी तरह के सौदे का प्रस्ताव दिया जाता है. ऐसा लगता है कि समझौता करने का किसी तरह का प्रलोभन दिया जाता है.”
रुश्दी की इस किताब का विरोध कई चीज़ों को लेकर था लेकिन लेकिन दो वेश्या किरदारों को लेकर ख़ास विरोध हुआ. इनका नाम पैग़ंबर मोहम्मद की दो पत्नियों के नाम पर था.
रुश्दी कहते हैं कि हम कहानियों में वो चीज़ें लिखते हैं जो वास्तविकता में नहीं होतीं जैसे कि घोड़े का उड़ना. ये काल्पनिक चीज़ें हैं जो हमारे मन में चलती हैं लेकिन वास्तव में नहीं होतीं.
वे कहते हैं, “साफ़ तौर पर अरेबियन नाइट्स की कहानी सच नहीं हैं.”
सलमान रुश्दी भगवान, देवदूत, शैतान, जिन जैसी चीज़ों पर यकीन करते हुए बड़े हुए लेकिन वास्तविकता जीवन में गाय, भैंस, बैलगाड़ी, गाड़ियां दिखीं लेकिन कभी भूत-प्रेत नहीं दिखे.
सलमान रुश्दी कहते हैं, “अब मैं भारतीय नहीं हूं और लंबे समय तक मैं ख़ुद को ये समझाता रहा कि वो ऐसा नहीं है. वो अब भी मेरा घर है. ये अब भी विदेश है. जब मैं वहां (भारत) जाऊंगा तो ऐसा होगा कि मैं अपने घर जा रहा हूं.”
“मैं बंबई को जिस तरह अपना घर मानता हूं उस तरह दुनिया के किसी और जगह को नहीं मानता. लेकिन मैंने ख़ुद को ये समझाना शुरू किया कि मुझे ख़ुद को ऐसा कहते रहने से रोकना होगा. ये ऐसी कल्पना है जो अब मेरे लिए उपयोगी नहीं है. वास्तविकता ये है कि मुझे ऐसे देखना चाहिए कि वो अब मेरा घर नही है, ये मेरा घर है. और अब मैं दोबारा अपने उस घर पर नहीं जा सकता.”
‘द सैटेनिक वर्सेज़’ के प्रकाशित होने के बाद दुनिया भर में इसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन में 59 लोग मारे गए. इसमें इस किताब को अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद करने वाले कुछ अनुवादक भी शामिल हैं.
किताब के पब्लिश होने के एक साल बाद ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खुमैनी ने सलमान रुश्दी के ख़िलाफ़ मौत का फ़तवा जारी किया. जान से मारे जाने की धमकियों की वजह से ख़ुद सलमान रुश्दी 9 साल तक छिपे रहे.
बाद में ख़ुद सलमान रुश्दी ने कहा, “वो बहुत डरावना समय था और मुझे अपने साथ साथ अपने परिवार के लिए डर लग रहा था. मेरा ध्यान बंटा हुआ था और कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं.”