गेहूं निर्यात पर रोक वाले भारत के फैसले का क्या होगा असर? क्यों राज्यों और विदेशों में हो रहा विरोध – Aaj Tak

स्टोरी हाइलाइट्स

  • भारत के फैसले से खाद्यान्न संकट बढ़ने का खतरा
  • दुनिया के बड़े गेहूं निर्यातकों में से एक है भारत
  • 2021 में 19.3 करोड़ लोगों को था खाने का संकट

Wheat Export Ban: भारत ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है. ये रोक ऐसे समय लगी है, जब दुनियाभर में गेहूं की कीमतों में बेतहाशा तेजी आई है और रूस-यूक्रेन युद्ध से गेहूं की सप्लाई पर असर पड़ा है. 

निर्यात पर रोक लगाने के पीछे सरकार ने गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने का तर्क दिया है. सरकार का तर्क है कि पिछले एक साल में गेहूं और आटे की कीमतों में 14 से 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है, निर्यात पर रोक से कीमतों में काबू आने की उम्मीद है. 

हालांकि, केंद्र सरकार के इस फैसले की दुनियाभर ही नहीं, बल्कि देश में भी आलोचना शुरू हो गई है. पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल ने इस फैसले की आलोचना की है. बादल ने कहा कि इस फैसले से गेहूं की मांग में कमी आएगी और किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा. 

कांग्रेस ने भी सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे ‘किसान विरोधी’ बताया है. पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा कि गेहूं का उत्पादन कम नहीं हुआ है, बल्कि सरकार ने गेहूं की खरीद नहीं की है. अगर गेहूं की खरीद होती तो निर्यात पर रोक लगाने की जरूरत नहीं पड़ती.

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दुनियाभर में हो रही आलोचना

पहले कोरोना और फिर रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनियाभर में गेहूं की सप्लाई बाधित कर रखी थी और अब भारत ने भी गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है. ऐसे में भारत के इस फैसले की दुनियाभर में आलोचना हो रही है. G-7 देशों के समूह ने इसकी आलोचना की है. जर्मनी के कृषि मंत्री केम ओजडेमिर ने कहा है कि भारत के इस कदम से दुनियाभर में खाद्यान्न संकट बढ़ेगा. 

संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के चीफ इकोनॉमिस्ट आरिफ हुसैन ने बताया कि वो गेहूं की खरीद के लिए भारत से बात कर रहे हैं, क्योंकि रूस-यूक्रेन जंग से कई देशों को खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले ही वर्ल्ड फूड प्रोग्राम, IMF, वर्ल्ड बैंक और वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाजेशन (WTO) जैसी संस्थाओं ने सरकारों से गेहूं के निर्यात पर रोक न लगाने की अपील की थी, ताकि कीमतों को बढ़ने से रोका जा सके. 

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दुनिया पर क्या असर पड़ सकता है?

भारत दुनिया के सबसे बड़े गेहूं उत्पादकों में से एक है. लेकिन इस बार गेहूं के उत्पादन में गिरावट आने की बात कही जा रही है. देश में भी गेहूं और आटे की कीमत लगातार बढ़ रही है. इसलिए इस कीमत पर काबू पाने के लिए सरकार ने निर्यात पर रोक लगाई है. हालांकि, सरकार ने साफ किया है कि गेहूं का निर्यात उन देशों के लिए संभव होगा, जिनके लिए भारत सरकार अनुमति देगी. इसके अलावा निर्यात के जिन ऑर्डर के लिए 13 मई से पहले लेटर ऑफ क्रेडिट जारी हो चुका है, उनका एक्सपोर्ट करने की अनुमति होगी.

भारत में 2020-21 (जुलाई-जून) में करीब 110 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन हुआ है. भारत पड़ोसी मुल्कों को गेहूं सप्लाई करता रहता है. अभी श्रीलंका संकट में भी वहां के लोगों को खाने-पीने का सामान भारत भेज रहा है. इससे पहले पिछले साल अफगानिस्तान संकट के दौरान भारत ने 50 हजार टन गेहूं की सप्लाई करने की बात कही थी.

ग्लोबल फूड क्राइसिस की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 19.3 करोड़ से ज्यादा लोगों पर खाने का संकट है. ये संख्या 2020 की तुलना में 4 करोड़ ज्यादा है. वहीं, 53 देश ऐसे हैं, जिन्हें तत्काल मदद की जरूरत है. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 2022 में खाने का संकट 2021 की तुलना में और बढ़ सकता है.

पिछले साल जिन देशों में खाने का संकट रहा, उनमें से 70 फीसदी लोग सिर्फ 10 देशों के थे. इनमें कांगो, अफगानिस्तान, इथियोपिया, यमन, उत्तरी नाइजीरिया, सीरिया, सूडान, दक्षिणी सूडान, पाकिस्तान और हैती शामिल है. 

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि कोरोना महामारी के दो साल बाद बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था सुधर रही थी, लेकिन रूस-यूक्रेन जंग से यहां भी खाने का संकट खड़ा हो सकता है. बांग्लादेश दुनिया के सबसे बड़े गेहूं आयातक देशों में से एक है. बांग्लादेश रूस, कनाडा और भारत से हर साल 6 मिलियन टन गेहूं खरीदता है.

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