West Bengal Bypoll: क्यों ममता बनर्जी के लिए चुनाव जीतने से ज्यादा बड़ी है भवानीपुर की चुनौती – News18 इंडिया

कोलकाता. दो दिन बाद बंगाल (Bengal) में भवानीपुर उपचुनाव के लिए मतदान होगा. भवानीपुर (Bhabanipur) सीट से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) अपनी कुर्सी बचाने के लिए मैदान में हैं और इस उपचुनाव पर पूरे देश की निगाहें हैं. वे नंदीग्राम से विधानसभा चुनाव हार चुकी हैं, जबकि उनकी पार्टी को भारी बहुमत मिला था. ऐसे में यह चुनाव ममता बनर्जी के लिए सियासी इकबाल की लड़ाई है. ममता के खिलाफ मुकाबले में बीजेपी की प्रियंका टिबरेवाल हैं. उपचुनाव की प्रासंगिकता को देखते हुए एक ही सवाल है, क्या ममता अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचा पाएंगी. क्योंकि उपचुनाव के नतीजे आने वाले समय में देश की राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित कर सकते हैं.

ऐसा नहीं है कि देश में कोई भी मुख्यमंत्री उपचुनाव हारा नहीं है. अभी तक भारत में 1970 से केवल दो ही ऐसे मुख्यमंत्री हुए हैं, जो उपचुनाव हारे हैं. साल 1970 में उत्तर प्रदेश के त्रिभुवन नारायण सिंह और 2009 में झारखंड के शिबु सोरेन उपचुनाव में अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवा कर देश भर चर्चित हो चुके हैं.

भवानीपुर उपचुनाव की अहमियत
भवानीपुर का उपचुनाव कई मायनों में अहम है. ये चुनाव ममता बनर्जी और भारतीय जनता पार्टी के बीच एक तरह की प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गया है. ममता इसी साल हुए बंगाल विधानसभा चुनाव में  नंदीग्राम सीट में भाजपा उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी से हार चुकी हैं. इस लिहाज से उन्हें मुख्यमंत्री बने रहने के लिए चुनाव जीतना बहुत जरूरी है, वहीं भाजपा की कोशिश है कि वह ममता को मात देकर देश की सियासत में कोलाहल मचा दे.

ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) का पिछले कुछ सालों के चुनावों में वोट शेयर कम हुआ है. (फाइल फोटो)

पहले इसी सीट से लड़ चुकी हैं चुनाव
ममता के लिए भवानीपुर सीट नई नहीं हैं. इससे पहले वे 2011 और 2016 में यहां से विधायक के रूप में चुनी जा चुकी हैं. 2021 में उन्होंने भवानीपुर की जगह नंदीग्राम को चुना और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. ये भी कहा जाता है कि नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का फैसला ममता ने गिरते वोट शेयर के चलते लिया था, हालांकि उनकी पार्टी दावा करती है कि ममता ने नंदीग्राम में सुवेंदु अधिकारी को चैलेंज किया था.

शोभनदेव ने खाली की भवानीपुर सीट
बीजेपी ने इसी साल मार्च-अप्रैल में हुए विधासभा चुनाव में भी दीदी पर यह तंज कसा था कि वे भवानीपुर छोड़ कर अपनी हार से बचने के लिए नंदीग्राम आईं हैं. हालांकि टीएमसी नेता शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने भवानीपुर सीट पर जीत हासिल की. उन्होंने भाजपा उम्मीदवार रुद्रानिल घोष को हराया और 2016 के चुनाव की तुलना में अपनी पार्टी की जीत का अंतर भी बेहतर किया. शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने यही सीट अब ममता के लिए खाली की है.

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ममता बनाम प्रियंका
उपचुनाव में ममता का मुकाबला बीजेपी के नए चेहरे प्रियंका टिबरेवाल से है. टिबरेवाल एक वकील हैं और पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा और बलात्कार के मामलों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए जानी जाती हैं. बंगाल में कई जगहों पर चुनाव बाद हिंसा की घटनाएं हुई हैं, जिसका आरोप टीएमसी पर लगा है.

भवानीपुर को मिनी भारत कहा जाता है इसलिए वहां की जीत ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को राष्ट्रीय स्तर पर नई ऊंचाई दे सकती है. (फाइल फोटो)

गिरता रहा टीएमसी का वोट शेयर
ममता ने 2011 में भवानीपुर सीट से 77 प्रतिशत वोटों से सीपीआई-एम के उम्मीदवार को हराया था. 2016 में उनका वोट प्रतिशत केवल 48 प्रतिशत रह गया था, जबकि निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेसी उम्मीदवार के वोट 9 प्रतिशत बढ़कर 29 प्रतिशत हो गए थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी ममता की पार्टी के वोट भाजपा के मुकाबले केवल 3000 ही अधिक थे.

भवानीपुर उपचुनाव का है राष्ट्रीय महत्व
ममता के लिए ये उपचुनाव प्रदेश से ज्यादा राष्ट्रीय स्तर पर अहमियत रखते हैं. विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की बड़ी जीत ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रमुख भाजपा विरोधी चेहरा बना दिया. उनकी पार्टी देश में इकलौती पार्टी है, जो किसी प्रदेश में भाजपा पर इतना हावी है. इसके अलावा भवानीपुर को बंगाल में मिनी भारत भी कहा जाता है, क्योंकि यहां 40 प्रतिशत मतदाता गैर बंगाली समुदाय के हैं, जिसमें गुजराती, मारवाड़ी, पंजाबी और उड़िया प्रमुख हैं. भवानीपुर में जीत और वहां ममता की पार्टी का बढ़ा हुआ वोट शेयर राष्ट्रीय राजनीति में ममता की छवि को और मजबूत करेगा.

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