Kalyan singh died: नहीं रहे कल्याण सिंह, लंबी बीमारी के बाद लखनऊ में ली अंतिम सांस – News18 हिंदी

लखनऊ. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में भाजपा (BJP) की सरकार को मजबूत करने में राम मंदिर मुद्दे का बड़ा योगदान था. इसलिए सरकार लगातार इसे अपनी प्राथमिकताओं में रखा. 1991 में कल्याण सिंह (Kalyan Singh Passes Away) के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बन चुकी थी. कारसेवा शुरूू हो चुका था. कारसेवा होने से पहले बतौर मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दिया था. इसमें कहा गया था कि वे मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होने देंगे. लेकिन 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद ढहा दी. मस्जिद गिरने के तुरंत बाद कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. 7 दिसंबर, 1992 को केंद्र की नरसिंह राव सरकार ने उत्तर प्रदेश की सरकार को बर्खास्त कर दिया. सूबे में राष्ट्रपति शासन लग गया. 1993 के चुनाव में बीजेपी सरकार बनाने लायक सीटें नहीं ला पाई. ऐसे में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने मिलकर सरकार बनाई.

1996 में फिर से चुनाव हुए. उस दौरान सपा और बसपा अलग थे. अलग इसलिए थे, क्योंकि गेस्ट हाउस कांड हो चुका थ. जब चुनाव परिणाम आया तो बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. 173 सीटें बीजेपी के हिस्से आई, लेकिन सरकार नहीं बनी. फिर राष्ट्रपति शासन लगा और उसके बाद बीजेपी के सहयोग से बसपा नेता मायावती मुख्यमंत्री बनीं. समझौता हुआ था कि छह महीने बसपा और छह महीने भाजपा का मुख्यमंत्री रहेगा. मायावती के छह महीने पूरे हुए तो कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने. तारीख थी 21 सितंबर, 1997. लेकिन एक महीना भी नहीं बीता कि मायावती ने 19 अक्टूबर, 1997 को समर्थन वापस ले लिया. ऐसे में कल्याण सिंह का मुख्यमंत्री पद से हटना तय था.

दो दिन में साबित किया था बहुमत

इस बीच कुछ पार्टियों में तोड़फोड़ हुई. राज्यपाल रोमेश भंडारी बीजेपी के थे. उन्होंने कल्याण सिंह को दो दिन के अंदर बहुमत साबित करने को कहा. 21 अक्टूबर को कल्याण सिंह ने बहुमत साबित कर दिया. हालांकि उसके बदले उन्हें जंबो जेट मंत्रिमंडल बनाया जिसमें मंत्रियों की संख्या 90 से ज्यादा थी. इस दौरान विधानसभा में विधायकों ने एक दूसरे के ऊपर लात-जूते भी चलाए, कुर्सियां फेंकी और माइक फेंककर मारा. राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कोशिश की कि राष्ट्रपति शासन लग जाए, लेकिन उस समय के राष्ट्रपति केआर नारायणन ने मंजूरी देने से इनकार कर दिया. कल्याण सिंह का बतौर मुख्यमंत्री पहला और दूसरा कार्यकाल बिल्कुल अलग था. आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हुआ.

ये भी पढ़ें: Kalyan Singh in Memories: कल्याण सिंह को हुई थी एक दिन की जेल, राम मंदिर का देखा था सपना  

कल्याण सिंह ने तीन बार के सांसद गंगाचरण राजपूत, जो उनकी ही जाति के थे, उनको पार्टी से निकाल दिया जबकि उनको बीजेपी में लाने वाले कल्याण सिंह ही थे. संघ परिवार से आए राम कुमार शुक्ला को भी कल्याण सिंह ने बाहर का रास्ता दिखा दिया. जिस कल्याण सिंह को राज्यपाल रोमेश भंडारी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी, उन्हीं रोमेश भंडारी ने 21 फरवरी, 1998 को कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया. कल्याण सिंह की ही सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे जगदंबिका पाल को रात के साढ़े 10 बजे मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी.

फैसले के विरोध में बीजेपी के बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई लोग धरने पर बैठ गए. रात को ही हाईकोर्ट में अपील की गई. 22 फरवरी के दिन जगदंबिका पाल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे. इसी बीच हाईकोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को खारिज कर दिया. कहा कि कल्याण सिंह ही मुख्यमंत्री हैं. अब कल्याण सिंह सचिवालय पहुंचे तो जगदंबिका पाल पहले से ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे. किसी तरह से हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देकर उन्हें हटाया गया और फिर कल्याण अपनी जगह पर वापस आए. 26 फरवरी को फिर से बहुमत साबित करने को कहा गया. कल्याण सिंह ने बहुमत साबित कर दिया. जगदंबिका पाल कुछ घंटों के मुख्यमंत्री बनकर रह गए. आज वो भाजपा के सांसद हैं.

Related posts