अफगान में ड्रैगन क्यों ले रहा दिलचस्पी, क्या हैं मंसूबे; जानें चीन और तालिबान के गठजोड़ की 5 खतरनाक वजहें – Hindustan

अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता का स्वागत करने में सबसे ज्यादा तेजी चीन ने दिखाई है। चीन ने न तो अपने किसी राजनयिक को अफगानिस्तान से निकाला और न ही किसी तरह की विरोधी टिप्पणी की। बीते महीने अफगानिस्तान के एक बड़े हिस्से पर कब्जा करने के बाद तालिबान का एक प्रतिनिधमंडल चीन पहुंचा था, जहां साझा हितों पर चर्चा होने के अलावा तालिबान ने यह आश्वासन दिया था कि उनकी जमीन का इस्तेमाल चीन के खिलाफ नहीं होगा। चीनी सरकार और तालिबान के बीच बढ़ती नजदीकी भारत के लिए चिंता का सबब बन सकती है। कम से कम पांच ऐसी वजहे हैं जो चीन और तालिबान को करीब ला रही हैं।

1. चीन के रोड प्रोजेक्ट के लिए तालिबानी साथ जरूरी
चीन को वन बेल्ट, वन रोड प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए तालिबान की जरूरत भी पड़ेगी क्योंकि ये रास्ता अफगानिस्तान से होकर ही आगे बढ़ता है। यही कारण है कि चीन ने तालिबान पर दिए अपने बयान में कहा कि इस क्षेत्र में विकास के लिए अफगानिस्तान की नई सरकार की अहम भूमिका होगी।

2. उइगर मुस्लिमों पर तालिबान चुप्पी का वादा
तालिबानी नेता मुल्लाह अब्दुल गनी बरादर के नेतृत्व में तालिबानी प्रतिनिधिमंडल ने चीन के विदेशमंत्री वांग यी इन से बीजिंग में मुलाकात की थी। इस दौरान तालिबान ने चीनी विदेश मंत्री से यह वादा किया था कि वह अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल उइगुर चरमपंथियों के अड्डे के तौर पर नहीं होने देगा। दरअसल, दोनों देशों के बीच करीब 76 किलोमीटर की साझा सीमा है जो उइगर बाहुल्य शिनजियांग प्रांत से लगती है। बरादर वरिष्ठ तालिबानी नेता हैं और माना जा रहा है कि नई सरकार में उनकी बड़ी भूमिका रहेगी।

3. चीनी कंपनियों ने पाए अधिकार
अफगानिस्तान में प्राकृतिक तेल की खाने हैं, जिसकी खुदाई का अधिकार पहले ही चीनी कंपनियां ले चुकी हैं। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की इस संपदा पर नजर है जो उसे जल्द ही वैश्विक शक्ति बना सकती है। इस आर्थिक लाभ को देखते हुए चीन, तालिबान के साथ बेहतर संबंध बनाए रखना चाहता है। गौरतलब है कि यूएस जुलाजिकल सर्वे के मुताबिक, दुनिया की दुर्लभ खनिजों वाली जमीन का 35 फीसदी हिस्सा चीन के पास है।

4. बहुमूल्य खनिजों पर नजर
अफगानिस्तान में लीथियम और ऐसे दुर्लभ खनिजों का अकूत भंडार है जो बैटरी बनाने के लिए जरूरी है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक, अगले 20 साल में लीथियम के दाम 40 गुना बढ़ेंगे। ये खनिज स्मार्टफोन, टेबलेट और एलईडी के लिए जरूरी होते हैं जिन तक पहुंच होने पर चीन तकनीकी उपकरणों के मामले में महाशक्ति बन सकता है। अमेरिका ने 2010 में अफगानिस्तान में मौजूद सोना, आयरन, कोबाल्ट, कॉपर आदि की कुल कीमत 1000 डॉलर आंकी थी जो अब बढ़कर तीन लाख डॉलर हो गई है।

5. चीन से दोस्ती तालिबान को देगी पहचान
चीन ने कहा है कि वह अफगानिस्तान के पुनर्निमाण के लिए भी निवेश मुहैया कराएगा जो युद्ध के दौरान वहां हुआ है। इसके अलावा चीन जैसे बड़े एशियाई देश से मान्यता पाना तालिबान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैधता पाने में भी मदद करेगा। तालिबान प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने भी यह कहा था कि अगर चीन अफगानिस्तान में निवेश करता है तो तालिबान उसकी सुरक्षा की गारंटी देगा।

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